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शिशुपाल की 100 गलतियां और मनोज मुंतशिर के चंद डायलाॅग 

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अमित मंडलोई

…. लोग भावुक होकर आंखें भिगो रहे थे, जब उसने लिखा तेरी मिट्‌टी में मिल जावां, मैं गुल बन के खिल जावां। लोग तालियां बजा रहे थे, जब उसने लिखा कौन तूझे यूं प्यार करेगा, जैसे मैं करती हूं। लोग अपने रिश्तों की मिठास महसूस कर रहे थे, जब उसने लिखा तेरे संग यारा खुशरंग बहारा, तू रात दिवानी मैं जर्द सितारा। 

तेरे रश्क ए कमर पर साथी गीतकारों, साहित्यकारों ने भले सवाल उठाए, मगर चाहने वालों ने तो उसे भी हाथोंहाथ लिया और महीनों तक उसी में डूबे रहे। लोग तब भी उसके शब्दों में भीगे, जब उसने कहा-कैसे हुआ तू इतना जरूरी, कैसे हुआ। जब उसने कहा कि मेरी नजर से देखो जरा तो जैसे लोग निहाल हो गए। अगाध प्रेम में डूबे ये शब्द मानो लोगाें की रूह तक पहुंच रहे थे। लोग इनमें डूब जाते और हर शब्द पर मर मिटने को तैयार हो जाते। 

लोग तब भी गर्व से सीना फुलाने लगे, जब उसने कहा कौन है वो कौन है, कहां से वो आया। गीत क्या एक-एक डायलॉग पर पूरा हिंदुस्तान ही बाहुबली हो गया। लोग तब भी तालियां पीट रहे थे, जब उसने प्रचलित इतिहास पर सवाल उठाए। वीरों के बलिदान को नई परिभाषा देने की कोशिश की। लोग तब भी अभिभूत थे, जब उसने भाषा को सींखचों के पीछे खींचा- औरत शब्द को घिनौना बताया।

उसकी इन कोशिशों ने उसे सुनहरे पर्दे से लेकर राजनीति के मंचों तक में चमकता-दमकता सितारा ही नहीं बल्कि पूरा नक्षत्र ही बना डाला। अब भी वही व्यक्ति है, वही शब्द है, लेकिन इस बार लोग तालियां नहीं बजा रहे। कोई नहीं कह रहा कि कल उसने क्या किया था। सब सवाल उठा रहे हैं या कहें कीचड़ उछाल रहे हैं। राम चरित पर ऐसे शब्द, ऐसे वाक्य ये कतई मंजूर नहीं है। चंद डायलॉग में सबकुछ मुंतशिर हो गया। 

ये लोगों का अपने आराध्य के प्रति समपर्ण तो है ही कि वे अपने राम और राम भक्त के बारे में जरा भी अभद्रता बर्दाश्त नहीं कर सकते। साथ ही यह एक सबक भी है कि भगवान कृष्ण ने 100 गलतियों तक धैर्य रखने के बाद शिशुपाल का सिर धड़ से अलग किया था। अब एक गलती भी आपका सारा गौरव धड़ से अलग करने के लिए काफी है। सार्वजनिक जीवन में कितना ही बचिए, एक फिसलन और फिर गर्त ही गर्त है। न जाने अब मनोज को इस मुंतशिर को समेटने में कितना वक्त लगेगा। 

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