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लघु-कहानी : सम्राट और नट

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        आरती शर्मा 

ऋषि ने पूछा : ‘प्रारब्ध को मानते हो!’

 ‘मैं कर्मयोगी हूँ, मैं नहीं मानता!’ : राजा ने बहुत आत्मविश्वास से उत्तर दिया।

तब ऋषि ने राजन को एक कथा सुनायी :

     एक राजा भेस बदल कर मंत्री संग अपने राज्य के दौरे पर निकला।

     बाजार में उसने देखा कि एक जगह खूब भीड़ लगी हुई है। कारण जानने के लिए दोनों वहाँ जा पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा कि एक नट खेल दिखा रहा है। लोग अपने सारे काम-धाम छोड़ कर मंत्रमुग्ध उसे देख रहे थे।

    राजा और मंत्री भी उसे देखने के लिए खड़े हो गए थोड़ी ही देर में राजा भी नट की भाषा कौशल पर मोहित हो गया।

‘बोलने की क्या कला है!’ राजा मंत्रमुग्ध हो कर बोला।

‘निःसन्देह! महाराज!’ 

‘यह तो मुझसे भी अच्छा बोलता है!’ राजा नट की कला पर अब पूरी तरह से सम्मोहित हो गया था।

मंत्री को अब समझ न आये कि वह इसका उत्तर क्या दे! वैसे राजा बात सही कह रहा था!

लोग आते जा रहे थे। भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। नट की बातों पर कभी भीड़ ताली बजाती, तो कभी आँखें फाड़ें किसी चमत्कार की आशा में दम साधे उसका  खेल देखती।

‘क्या कहते हो! उसकी पोटली में नेवला है!’ राजा ने मंत्री से पूछा। नट एक पोटली को हिला-हिला कर उसे नेवला बता रहा था।

      ‘अरे कहाँ महाराज! यह तो हाथी के दाँत हैं, दिखाने के कुछ और खाने के कुछ और!’ मंत्री ने जवाब दिया।

‘लेकिन लोगों को देखो! कितने विश्वास से उसे देख रहे हैं! ये नट नेवले की जगह विकास भी कहता,तब भी लोग ऐसे ही विश्वास करते!’ 

‘यही तो कला है महाराज!’ 

    ‘यह तुम मुझे क्या बताते हो!’ राजा मुस्कुराते हुए बोला। 

‘क्षमा करें महाराजा!’ मंत्री भी मुस्कुराया। वह जानता था कि राजा क्या संकेत कर रहा था।

नट धाराप्रवाह बोल रहा था। उसकी भंगिमा देखते ही बनती थी। उसने खेल दिखाते हुए अच्छा-खासा समय ले लिया था, मगर पोटली से नेवला अभी तक नहीं निकला था। और कमाल की बात इस बात को लेकर भीड़ में कोई बैचैनी भी नहीं दीखती थी।

     ‘देख रहे हो इस नट को! इसके जादू को!’ राजा नट के टैलेंट पर पूरी तरह से फ्लैट हो गया था।

‘जादू तो है ही, पर जनता भी भोली है महाराज!’ मंत्री ने विमर्श को एक नया कोण दिया।

‘जनता इतनी भी भोली नहीं! हर दिन हर बार उसे कुछ नया खेल दिखाना पड़ता है, नहीं तो वह एक नट को छोड़कर दूसरे नट का खेल देखने लगती है!’ राजा ने भी विमर्श का एक नया कोण प्रस्तुत किया।

      तभी भीड़ में से एक आदमी बोला,’ओय!नेवला नहीं तो कम से कम चूहा ही निकाल दे!’ उसकी बात पर लोग हँसने लगे। 

‘निकालने को तो मैं पूरा का पूरा साँप निकाल दूँ! पर तूने चूहा कहा,तो जरा अपनी जेब देख ले!’ नट बहुत नाटकीय अंदाज में बोला।

उस आदमी ने अपनी जेब टटोली। उसमें से वाकई एक चूहा निकला। आदमी उछल पड़ा। घबराये हुए आदमी को देखकर भीड़ ने जोरदार ताली बजाई। और नट को अब सम्मोहित होकर नहीं श्रद्धा से देखने लगे।

‘देख रहे हो!’

‘जी, महाराज!’

‘क्या!’

‘यही कि ये चूहे वाला आदमी नट का ही आदमी है! इस तरीके से आपने कितने विरोधियों, जनआंदोलनों को निपटाया है।’ मंत्री ने पूरी व्याख्या प्रस्तुत कर दी।

      ‘इस नट को अगर प्रायोजक मिल जाये तो ये कहाँ से कहाँ पहुँच जाये!’ यह कहकर राजा न जाने कहाँ खो गया।

‘इसमें क्या शक है महाराज!’ ‘पर हर कोई इतना भाग्यशाली नहीं होता!’ यह बात मंत्री ने अपने मन में कही।

‘आओ अब चले!’

‘जैसी महाराज की इच्छा!’

दोनों चल पड़े। नट अभी खेल दिखा रहा था। भीड़ जमी हुई थी। लोग मजे ले रहे थे।

‘तुम्हें क्या लगता है नेवला निकलेगा!’ राजा ने यह प्रश्न एक फिर पूछा।

‘अरे कहाँ महाराज!’

‘फिर!’

‘फिर क्या महाराज! अंत में ये नट  तेल,तावीज,चूरन कुछ न कुछ बेचेगा। बेचने के पीछे ही यह सब नौंटकी है!’ मंत्री ने बहुत विश्वास से जवाब दिया।

‘लेकिन असली खेल वह नहीं था,जो हमने देखा!’

‘फिर महाराज!’ मंत्री ने राजा की बात समझ न आई।

‘जरा अपनी जेब तो देखो!’

मंत्री ने अपनी जेब चेक की। जेब कट चुकी थी।

‘स्याला! ये है असली खेल!’ मंत्री अचरज से बोला।

‘जानते हो जेबकतरा भी उसका ही है! दृश्य से ज्यादा अदृश्य से कमाई होती है!’

     ‘मेरी तो कटी पर आपकी बच गई… इस बात का संतोष है मुझे!’

मंत्री की बात सुनकर राजा हंसने लगा।

‘आपकी भी कट गई महाराज! यह कहते हुए मंत्री रुक गया।

‘यार मैं भी सामने चलते तमाशे में खो गया था!’ राजा चलता रहा।

‘खेल रोचक हो तो नट का काम आसान हो जाता है।’  मंत्री राजा के साथ कदम ताल मिलाया।

‘निसंदेह!’ यह कहकर अब राजा रुक गया।

‘अपने से ज्यादा टैलेंटेड को देख कर जलन और खतरा क्यों महसूस होता है!’ राजा खोया-सा बोला । उसका टोन बिल्कुल बदला हुआ था। अब मंत्री इसका क्या जवाब देता। फिर भी उसने जवाब दिया।

     ‘पिछले सौ सालों में और आने वाले हजार सालों में आप के जैसा कोई न हुआ है और न ही होगा!’  मंत्री ने राजा की महिमा गाई।

    ‘नहीं भई! आज इस नट को देखकर मेरा आत्मविश्वास हिल गया। ऐसा करो!कल इसे ठोंक दो!’

‘महाराज!’ मंत्री थोड़ा-सा कन्फ्यूज हुआ।

   ‘अरे भाई कल किसने देखा है! कल को इसे कोई तगड़ा प्रायोजक मिल गया तो फिर… इसका टैलेंट तो हम लोगों ने देख ही लिया है!’

‘जो आज्ञा महाराज!’ मंत्री को अब किसी प्रकार का कोई कन्फ्यूजन नहीं रहा। दोनों वापस महल आ गए।

अगले दिन वो नट किसी को दिखा नहीं। अलबत्ता, राजा को लोगों ने पूरे जोशोखरोश से भाषण देते सुना।

कथा सुनाने के बाद ऋषि बोले,’अब बोलो! राजन!’

‘क्या बोलूँ अब! आप ने तो मेरा भी आत्मविश्वास डिगा दिया! चलूँ और देखूँ! कहीं मेरे राज्य में कोई नट तो नहीं है!‘

यह कहते हुए राजा तेजी से रथ पर सवार हो गया।

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