अग्नि आलोक
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*ज़मीर की sleep tongue*

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(निद्रा में ज़बान)

शशिकांत गुप्ते

दानव राज रावण का भाई कुम्भकर्ण ब्रह्माजी से इंद्रासन माँगने लगा तो उसके मुख से इंद्रासन की जगह निंद्रासन (सोते रहने का वरदान) निकला जिसे ब्रह्मा जी ने पूरा कर दिया परंतु बाद में जब कुम्भकर्ण को इसका पश्चाताप हुआ तो ब्रह्मा जी ने इसकी अवधि घटा कर एक दिन कर दिया जिसके कारण,कुंभकर्ण छः महीने तक सोता रहता फिर एक दिन के लिए उठता और फिर छः महीने सो जता।
यह वाकिया त्रेतायुग का है।
इस वाकिये से यह ज्ञात होता है,ज़बान फ़िसलने (Slip of tongue) की बीमारी त्रेतायुग में थी। कुंभकर्ण छः महीने अर्थात 180 दिनों तक सोता था,एक ही दिन के लिए जागता था, पुनः छः महीने के लिए निद्रासन में चला जाता था।
कल युग में सिर्फ 77 दिनों में निद्रा टूटती है। सिर्फ 103 दिनों का ही अंतर।
कुंभ कर्ण राक्षस था,लेकिन उसमें संवेदनाएं थी, कथा में लिखा है कि,निद्रा से उठते ही उसने राजधर्म निभाया। सीताजी के हरण के लिए रावण पर क्रोध किया। कुंभकर्ण ने न्याय संगत विरोध करने के लिए विभीषण की सराहना की थी।
रावण को उसके सचिव ने सुमति और कुमति क्या होती है,समझाया था।
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥

जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥3॥
त्रेतायुग में पुराण निगम मतलब वेद सम्मत नियम के अनुसार न्याय होता था।
त्रेता युग में लंका के निवासी सभी असुर ही थे।
तुलसीबाबा ने लिखा है।
जो हर तरह के निकृष्ट दर्जे के कार्य करते हैं वे सभी निशाचर हो हैं।
जिन्ह के यह आचरण भवानी,ते जानेहु निशिचर सब प्राणी
कुलयुग में मानव की योनि में जन्म लेने वाले असुरों की तादाद बढ़ती जा रही है।
ये असुर बेखौफ होकर सारे राह नग्नता का तांडव कर रहें हैं।
जिम्मेदार कौन? प्रश्रय किसका?
यह प्रश्न जांच के फाइलों में कैद होकर रह जाएंगे?
शब्दों को ब्रह्म कहा गया है।
तुलसीबाबा रचित इन पंक्तियों का स्मरण होता है।
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी सो नृप अवसि नरक अधिकारी
काश काश काश यही तो कह सकते हैं?
अंत में यही कहना है,जो शायर
कमाल अहमद सिद्दीक़ी ने अपने शेर में फरमाया है
कुछ लोग जो ख़ामोश हैं ये सोच रहे हैं
सच बोलेंगे जब सच के ज़रा दाम बढ़ेंगे

दुर्भाग्य से इनदिनों सच बोलना भी तिजारत हो गया है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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