अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

….तो कई राज्य जल्द ही दिवालिया हो जाएंगे

Share

वोटरों को मुफ्त माल बांटकर वे अपने लिए थोक वोट पटाना चाहते हैं। वे क्या-क्या बांट रहे हैं, उसकी सूची बनाने लगें तो यह पूरा पन्ना ही भर जाएगा। शराब की बोतलों और नोटों की गड्डियों की बात को छोड़ भी दें तो वे खुले-आम जो चीजें मुफ्त में बांटते हैं, उनका खर्च सरकारी खजाना उठाता है।

उर्दू में एक कहावत है कि माले-मुफ़्त और दिले-बेरहम! इसे हमारे सभी राजनीतिक दल चरितार्थ कर रहे हैं याने चुनाव जीतने और सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए वे वोटरों को मुफ्त की चूसनियाँ पकड़ाते रहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे रेवड़ी संस्कृति कहा है, जो कि बहुत सही शब्द है। असली कहावत तो यह है कि ‘अंधा बांटे रेवड़ी, अपने-अपने को देय’ लेकिन हमारे नेता लोग अंधे नहीं हैं। उनकी तीन आंखें होती हैं। वे अपनी तीसरी आंख से सिर्फ अपने फायदे टटोलते हैं। इसलिए सरकारी रेवड़ियां बांटते वक्त अपने-पराए का भेद नहीं करते। उनकी जेब से कुछ जाना नहीं है।

वोटरों को मुफ्त माल बांटकर वे अपने लिए थोक वोट पटाना चाहते हैं। वे क्या-क्या बांट रहे हैं, उसकी सूची बनाने लगें तो यह पूरा पन्ना ही भर जाएगा। शराब की बोतलों और नोटों की गड्डियों की बात को छोड़ भी दें तो वे खुले-आम जो चीजें मुफ्त में बांटते हैं, उनका खर्च सरकारी खजाना उठाता है। इन चीजों में औरतों को एक हजार रु. महीना, सभी स्कूली छात्रों को मुफ्त वेश-भूषा और भोजन, कई श्रेणियों को मुफ्त रेल-यात्रा, कुछ वर्ग के लोगों को मुफ्त इलाज और कुछ को मुफ्त अनाज भी बांटा जाता है। इसका नतीजा यह है कि देश के लगभग सभी राज्य घाटे में उतर गए हैं। कई राज्य तो इतने बड़े कर्जे में दबे हुए हैं कि यदि रिजर्व बैंक उनकी मदद न करे तो उन्हें अपने आपको दिवालिया घोषित करना पड़ेगा। इन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस सहित लगभग सभी दलों के राज्य हैं। तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश पर लगभग साढ़े छह लाख करोड़, महाराष्ट्र, पं. बंगाल, राजस्थान, गुजरात और आंध्र प्रदेश पर 4 लाख करोड़ से 6 लाख करोड़ रु. तक का कर्ज चढ़ा हुआ है। इन राज्यों की हालत श्रीलंका-जैसी है। उसका कारण उनकी रेवड़ी-संस्कृति ही है।

इसे लेकर जनहित याचिकाएं लगाने वाले प्रसिद्ध वकील अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय के दरवाजे खटखटा दिए। अदालत के जजों ने चुनाव आयोग और सरकारी वकील की काफी खिंचाई कर दी। वित्त आयोग इस मामले में हस्तक्षेप करे, यह अश्विनी उपाध्याय ने कहा। चुनाव आयोग ने अपने हाथ-पांव पटक दिए। उसने अपनी असमर्थता जता दी। उसने कहा कि मुफ्त की इन रेवड़ियों का फैसला जनता ही कर सकती है। उससे पूछे कि जो जनता रेवड़ियों का मजा लेगी, वह फैसला क्या करेगी? मेरी राय में इस मामले में संसद को शीघ्र ही विस्तृत बहस करके इस मामले में कुछ पक्के मानदंड कायम कर देने चाहिए, जिनका पालन केंद्र और राज्यों की सरकारों को करना ही होगा। कुछ संकटकालीन स्थितियां जरूर अपवाद-स्वरूप रहेंगी। जैसे कोरोना-काल में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज बांटा गया। वैसे ये रेवड़ियां जनता को दी जाने वाली शुद्ध रिश्वत के अलावा कुछ नहीं हैं।

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें