अग्नि आलोक
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मानव के नाम माटी की पाती

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डॉ. ‘ज्योति’

      हे मनुष्य !

मुझे पता है 21वीं सदी की आधुनिकता में तुम मुझे भूल चुके होl  मैं मिट्टी हूंl संपूर्ण विश्व मुझसे है और मैं विश्व के कण-कण में  विद्यमान हूंl न, न मैं ब्रह्म नहीं हूं, लेकिन इस ब्रह्मांड में यदि कहीं भी जीवन संभव है, तो मैं उसके लिए उत्तरदाई सबसे प्रमुख कारक हूंI

    मेरे  बिना वनस्पतियों एवं जीव,जंतुओं सहित समस्त चर – अचर एवं सजीव- निर्जीव वस्तुओं का अस्तित्व संभव नहीं हैl 

       बड़े बड़े महासागर हों या ऊंची पर्वत श्रृंखलाएं, सबका आधार मैं ही तो हूंl कभी कहीं रेगिस्तान हूं, तो कहीं नदी का एक सुंदर तट, कहीं ऊंची इमारतों से सजा हुआ शहर बसाती हूं तो कहीं श्मशान बन लोगों को रोते हुए भी देखती हूंl

       आदिकाल से आकाश, जल, वायु अग्नि और मैंने कितने ही युग परिवर्तित होते देखा हैl आदिमानव से लेकर आधुनिक मानव तक की विकास गाथा को हर पल जिया है मैंनेl प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक बड़े बड़े युद्ध हों या महाभारत का विशालतम नरसंहार सबकी प्रत्यक्ष रूप से साक्षी रही हूंl

     इतिहास के हर एक पन्ने को अपने सामने से गुजरते देखा हैl आज जो शिक्षित लोग रामचरितमानस पढ़कर उसमें प्रमाण ढूंढने की आकांक्षा रखते हैं, उन्हीं भगवान श्री राम के वन गमन की प्रत्यक्षदर्शी भी रहीl

     कौन भूल सकता है कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह में जब हो रहा था तो यज्ञ वेदिका की साक्षी मैं स्वयं रहीl

पता है जब तुम छोटे थे तो मैंने ही तुम्हें सरकना सिखाया थाl मैं अत्यधिक आनंदतिरेक हो जाती थी जब तुमने पहली बार चलना शुरू किया थाl लड़खड़ा कर गिरते हुए देखना फिर उठकर चलना इन सब को तुम्हारे माता-पिता ने तो कुछ पल या कुछ घंटे देखे, लेकिन मैं तो एक एक क्षण के शतांश तक की साक्षी रहीl

     जब तुम मुझे मुट्ठी भर कर मुंह में खाने के लिए दौड़ते तो खुद को रोक नहीं पाती थी और कभी पकड़े जाने पर तुम्हारी पिटाई होते देख मुझे अफसोस भी होताl शहर जाते वक्त का वह पल मै कैसे भूल सकती हूं जब सब कुछ छोड़ तुमने जेब में चुपके से मुझे ही भर लिया थाl

        लेकिन हर पल तुम्हारे साथ जीने के बावजूद तुमने कभी भी मेरी पीड़ा को नहीं समझाl तुम्हारे विकास की नित नई ऊंचाइयों की नींव तले मैं कितनी कमजोर हो चुकी हूं , क्या तुमने कभी महसूस किया ?

       प्राकृतिक खाद के बदले रासायनिक तत्वों को अधिक उत्पादन के लिए प्रयोग किए जाने पर भी मैं तकलीफ सहती रही, लेकिन इसका एहसास तक तुम्हें नहीं हुआl

        आज मुझे इसलिए भी तुम्हें  चेतावनी देनी पड़ रही है यदि समय रहते आज और अभी से तुम सचेत न हुए तो शायद जिस कथानक की प्रस्तावना विकास की कथा से शुरू हुई थी, उसका उपसंहार महाप्रलय से होl

मैं तुम्हें भयभीत नहीं कर रहीl तुम शिक्षित हो, तुम्हारे पास विवेक है, विश्लेषण करने की क्षमता है, आत्ममंथन करके यह जानने का प्रयास करो कि मैं कितनी दुर्बल होती जा रहीl मैं खुद को बचाने के लिए नहीं बल्कि  मानवता को बचाने के लिए चिंतित हूंl 

     क्योंकि मुझे तुम सब मानव अपने प्राणों से भी अधिक प्यारे होl मैं नहीं चाहती एक अति के बाद महाप्रलय की आंधी में सभ्यताएं फिर से नष्ट हो , क्योंकि एक नवीन सभ्यता को विकसित होने में कोई युग लग जाते हैंl मैंने तो सिंधु घाटी से लेकर आज तक यह जिया हैI (चेतना विकास मिशन).

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