अग्नि आलोक
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सूनी आंखों  में  कुछ  ख्वाब  उभार आया हूं

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सरल कूमार वर्मा

सूनी आंखों में कुछ ख्वाब उभार आया हूं
एक दिल का दर्द दूसरे में उभार आया हूं

सोचा था मुफलिसी में जीत गया हूं सबसे
मगर कुछ रईसों से बाज़ी हार आया हूं

वो डरे हुए है जो मशहूर थे सच कहने में
उनके दिलों- दिमाग से बोझ उतार आया हूं

गुनाह करता तो मशहूर हो जाता जरूर मगर
अपनी कमाई बदनामी में और धार लाया हूं

जिन्हे वहम था पाकीजा मोहब्बत का उनकी
आंखो के आइने में खुद को उभार आया हूं

बेसुध हुआ है रुपया पीकर अमृत इस कदर
उसकी सेहत को डालर से नजर उतार आया हूं

अब लोगो में न हीरे मिलते हैं न जौहरी “सरल”
मै लोहे से सोने- चांदी का पानी उतार आया हूं
सरल कूमार वर्मा
उन्नाव,यूपी
9695164945

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