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*कहीं प्रदेश अध्यक्ष के लिए अनुभवहीन व्यक्ति का चयन तो नहीं कर देंगे सुरेश सोनी जी?*

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*मध्‍यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष के चयन के लिए मोहन यादव ने सुरेश सोनी जी के दम पर शुरू किया जोड़ तोड़*

*बीजेपी प्रदेश अध्‍यक्ष के लिए सुरेश सोनी जी और मुख्‍यमंत्री के बीच नर्मदा किनारे हुई थी चर्चा*

*विजया पाठक*

मध्यप्रदेश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के पद के नाम पर संशय लगातार बना हुआ है। हर कोई केवल इस बात की प्रतिक्षा में है कि कब पार्टी आलाकमान प्रदेश अध्यक्ष पद के संभावित लोगों के नामों में से किसी एक नाम पर मुहर लगाये। लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा है। जानकारों के अनुसार पिछले कुछ समय से भाजपा शीर्षस्थ नेताओं का एक खास समूह चौंका देने वाले फैसले लेकर चर्चा में आ गया है। ऐसे में अब उम्मीद यह भी लगाई जा रही है कि पार्टी नेता मध्‍यप्रदेश अध्यक्ष पद के नाम को लेकर फिर से सभी को चौंका सकते हैं। सूत्रों के अनुसार प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए नाम के चयन की जिम्मेदारी एक बार फिर संगठन के वरिष्ठ प्रतिनिधियों को दी गई है। इनमें एक बार फिर सामने नाम आया है वरिष्ठ प्रचारक और संघ के प्रमुख पदों पर रह चुके सुरेश सोनी जी का। सूत्रों के हवाले से खबर है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के लिए सुरेश सोनी जी और मुख्यमंत्री के बीच फरवरी के आखरी सप्‍ताह में खातेगांव के पास नर्मदा किनारे चर्चा हुई थी।

*भीष्‍म पितामह की तरह हैं सुरेश सोनी जी*

सुरेश सोनी जी संगठन में भीष्‍म पितामह की तरह हैं। इनके मार्गदर्शन और अनुभव को संगठन में काफी तवज्‍जों दी जाती है। पिछले कई दशकों से सुरेश सोनी जी संगठन में कार्यरत हैं। सुरेश सोनी जी मूलतः प्रदेश के राजगढ़ जिले से रहे हैं। इस नाते उन्हें प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों की परख अच्छी है। ऐसे में अब उम्मीद लगाई जा रही है कि प्रदेश अध्यक्ष पद संगठन का होने के नाते उसके नाम पर अंतिम मुहर सुरेश सोनी जी की सहमति के बाद ही लगेगी।

*कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच तालमेल आवश्यक*

मेरा जन्म राजगढ़ जिले में हुआ। ऐसे में मुझे उस जिले और वहां की राजनीतिक समीकरणों की समझ है। लेकिन जैसे ही मुझे जब यह संकेत मिले कि प्रदेश अध्यक्ष पद के लिये नाम का चयन का जिम्मा सुरेश सोनी जी को सौंपा गया है तो मुझे वह समय याद आ गया जब डेढ़ वर्ष पहले सुरेश सोनी जी को प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिये नाम का चयन की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन सुरेश सोनी जी ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में मोहन यादव का चयन किया। मुझे सुरेश सोनी जी की समझदारी पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं है लेकिन जिस ढंग से उन्होंने बगैर जाने परखे मोहन यादव के नाम को हरी झंडी दी उसके बाद अब चिंताएं और बढ़ गई कि आखिर कैसे व्यक्ति को सोनी जी ने प्रदेश की कमान सौंप दी। जहां तक बात प्रदेश अध्यक्ष पद की है तो यह बात समझने वाली है कि अध्यक्ष पद कार्यकर्ता और राजनेताओं के बीच तालमेल बैठाने का मुख्य अंग है। ऐसे में अब सोनी जी से उम्मीद है कि वे अध्यक्ष पद के लिये उसी व्यक्ति के नाम को हरी झंडी दें जो सत्ता और संगठन के बीच बेहतर तालमेल के साथ कार्य करने में सक्षम हो।

*मोहन यादव के चयन पर उठे सवाल*

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर जब डॉ. मोहन यादव के नाम का चयन हुआ तो उस समय सभी भौंचक रह गये। किसी को समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर मोहन यादव के नाम पर फैसला कैसे हो गया। क्योंकि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद जब मोहन यादव के अतीत के पन्ने पलटे गये तो समझ आया कि मोहन यादव के नाम का चयन गलत हो गया। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार जब आलाकमान ने मोहन यादव के नाम के चयन पर सुरेश सोनी जी से सवाल किया तो वह भी जबाव नहीं दे सके और आलाकमान ने निर्णय लिया कि पार्टी के निर्णय को इतना जल्दी बदलना उचित नहीं होगा इसलिए पार्टी ने मोहन यादव को मुख्यमंत्री के तौर पर आगे बढ़ाया। जाहिर है कि मोहन यादव के ऊपर जमीनों के हेरा-फेरी करने, भ्रष्टाचार करने सहित अनेकों गंभीर आरोप लगे हैं जिसके ऊपर से धीरे-धीरे हम पर्दा उठाते जा रहे हैं।

*अपने करीबी को अध्यक्ष पद दिलवाना चाहते हैं मोहन*

सूत्रों के अनुसार वर्तमान समय में जिन नेताओं के नाम प्रदेश अध्यक्ष पद के लिये चल रहे हैं उनमें कैलाश विजयवर्गीय, डॉ. नरोत्तम मिश्रा प्रमुख हैं। लेकिन देखा जाए तो दोनों ही नेता वरिष्ठता के क्रम में मोहन यादव से कई गुना आगे हैं। ऐसे में मोहन यादव बिल्कुल नहीं चाहते कि नरोत्तम मिश्रा या फिर कैलाश विजयवर्गीय को प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान सौंपी जाए। वहीं, जानकारी के अनुसार मोहन यादव किसी अपने करीबी नेता को प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान दिलवाना चाहते हैं जो उनकी बात सुनकर चले इससे सत्ता से लेकर संगठन तक उनकी धमक रहे। मोहन यादव प्रदेश अध्‍यक्ष के लिए ऐसे नाम की तलाश में हैं जो उनके इशारों पर चले। लेकिन पार्टी आलाकमान को ऐसा बिल्कुल नहीं होने देना चाहिए।

*मुश्किल में आ सकते हैं आगामी चुनाव*

प्रदेश अध्यक्ष के ऊपर सबसे बड़ा दायित्व होता है प्रदेश के अंदर होने वाले चुनावों की रणनीति तैयार करना। ऐसे में अगर मोहन यादव ने अपनी मनमर्जी अनुसार अपनी तरह बगैर अनुभवी राजनेता का प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चयनित किया तो वह दिन दूर नहीं जब भाजपा को प्रदेश में आगामी चुनाव में बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। और अगर ऐसा होता है तो भाजपा की हार और सत्ता गंवाने का सबसे बड़ा जिम्मेदार अगर कोई होगा तो वह मोहन यादव होंगे। इसलिए पार्टी आलाकमान को बड़ी ही सूझबूझ के साथ इस बार प्रदेश अध्यक्ष पद का चयन करना होगा।

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