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आत्मा विहीन शरीर?

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शशिकांत गुप्ते

चुनाव के दौरान,चुनावी नतीजों के बाद, और दलबदल करते समय हमारे देश के जनप्रतिनिधियों की अंतरात्मा जागृत होती है।
आत्मा ही परमात्मा है। अंतरात्मा जागृत होती है।
आश्चर्य होता है,यह जानकर की आत्मा में विराजित परमात्मा भी स्वार्थी होता है?
एक बहुत ही व्यवहारिक प्रश्न जेहन में उपस्थित होता है,कि झूलते पुल के टूटने से लगभग डेढ़ सौ लोगों की आत्मा ने उनका शरीर छोड़ दिया,तब हमारे जनप्रतिनिधियों की अंतरात्मा क्यों जागृत नहीं होती है?
विपक्ष में रहते सत्तापक्ष पर भ्रष्ट्राचार का आरोप लगाते समय,आत्मा चीखती चिल्लाती है। आश्चर्य होता है,जब भ्रष्ट्राचार में आकंठ डूबे व्यक्ति के साथ गलबहियां करते समय आत्मा इतनी उदार क्यों हो जाती है?
विपक्ष में रहतें हुए महंगाई डायन नज़र आती है। सत्ता प्राप्त करते ही डायन,प्रमिका कैसे बन जाती है।
विपक्ष में रहते हुए सिर्फ विपक्षी दल ही नहीं उसके सहयोगी भी,समर्थक भी महंगाई से त्रस्त होतें हैं। यहाँ तक की सदी के नायक का खिताब प्राप्त और विदेशी नागरिकता प्राप्त अभिनेता भी अपने बेशकीमती वाहनों में ईंधन डलवाने के लिए बैंक से ऋण लेने तक कि सोचने लगते हैं?जैसे सत्ता परिवर्तन होता है,इन्ही लोगों की अंतरात्मा से महंगाई पलायन कर देती है।
महंगाई को भूल कर इनकी आत्मा,आम के सवाल को एहमियत देने लगती है।
विकास,विश्वास, और सबका साथ देने वाले से जो शारीरिक रूप से सशक्त है (छप्पन इंच) ऐसे व्यक्ति से बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा जाता है? आम चूस कर खाया जाता है,या काट कर?
अहम प्रश्न लेखक के जेहन में उपस्थित हैं। क्या शोषित समाज का शोषण, मतलब शोषित समाज का खून चुसना कब बंद होगा? क्या किसी अबला के देह शोषण के बाद उसके मृत देह को जल समाधि देने की जुर्रत करने वालों को सज़ा दिलवाने के लिए हमारे जन प्रतिनिधियों की आत्म जागृत होगी?
आमजन को दो करोड़ रोजगार प्रति वर्ष और पन्द्रहलाख प्रति व्यक्ति देने का वादा सहज ही जुमले में परिवर्तित करतें समय आत्मा कहाँ गायब हो जाती है?
इस लेख पर अपनी समीक्षा प्रेषित करते हुए, सीतारामजी ने कहा,आत्माओं को जागृत मत करों।
भूत पिशाच निकट नहीं आवे
महावीर जब नाम सुनावे

सीतारामजी ने इस चौपाई का दिन में इक्कीस बार पाठ करने की सलाह दी।
साथ ही यह भी कहा कि,पत्थर दिल में आत्मा खोजना समय नष्ठ करना है?

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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