राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के तीसरे प्रत्याशी की हार के बाद अब पार्टी को अपनी सियासी रणनीति भी बदलनी पड़ेगी। इस बदली हुई रणनीति का फायदा समाजवादी पार्टी को मिलता है या नहीं यह तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे। लेकिन सियासी गलियारों में चर्चा इसी बात की हो रही है कि समाजवादी पार्टी को पीडीए के लिए और ज्यादा आक्रामक रणनीति बनानी होगी। ताकि समाजवादी पार्टी पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों बीच यह संदेश दे सके कि उनका साथ किसने छोड़ दिया है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जिस तरह से समाजवादी पार्टी से ताल्लुक रखने वाले अगड़ी जातियों के विधायकों ने सपा को धोखा दिया, वही पीडीए की धारणा को मजबूत करेगा। अखिलेश यादव ने इसी लाइन पर ट्वीट करते हुए अपने इशारे भी स्पष्ट कर दिए हैं…
सियासी जानकारों का कहना है कि समाजवादी पार्टी राज्यसभा चुनाव में अपने तीसरे प्रत्याशी आलोक रंजन को चुनाव भले ही न जितवा सकी हो, लेकिन सियासी राह पर पीडीए की धारणा को मजबूत कर गई है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जिस तरह से समाजवादी पार्टी से ताल्लुक रखने वाले अगड़ी जातियों के विधायकों ने सपा को धोखा दिया, वही पीडीए की धारणा को मजबूत करेगा। अखिलेश यादव ने इसी लाइन पर ट्वीट करते हुए अपने इशारे भी स्पष्ट कर दिए हैं। अखिलेश यादव ने अपने ट्वीट में कहा था कि राज्यसभा की तीसरी सीट दरअसल सच्चे साथियों की पहचान करने की परीक्षा थी। यह जानने की कि कौन-कौन दिल से पीडीए के साथ और कौन अंतरात्मा से पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों के खिलाफ है। अब सब कुछ साफ है, यही तीसरी सीट की जीत है।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के ट्वीट के बाद आगे की पूरी सियासी संरचना सपा में तैयार होने लगी है। समाजवादी पार्टी से ताल्लुक रखने वाले नेताओं के मुताबिक जिस तरीके से भारतीय जनता पार्टी ने पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों का साथ देने वाली सपा के विधायकों को तोड़ा है, वह स्पष्ट करता है भाजपा पीडीए को आगे नहीं बढ़ने देना चाहती है। यही वजह है कि पीडीए की लड़ाई लड़ने वाली पार्टी के अगड़े नेताओं को भाजपा ने तोड़ लिया है। और उन नेताओं ने भी समाजवादी पार्टी की मुहिम छोड़ कर जाने से स्पष्ट संकेत भी दे दिए हैं।
हालांकि समाजवादी पार्टी के इस बयान और अखिलेश यादव के ट्वीट पर कुछ अन्य सियासी जानकारों की राय अलग है। वरिष्ठ पत्रकार बृजेंद्र शुक्ला का कहना है कि अखिलेश यादव ने आलोक रंजन के लिए इतने सियासी तीर चलाए हैं, जो पीडीए से नहीं हैं। ऐसे में यह कहना कि पीडीए के लिए वह अपने विधायकों की परीक्षा ले रहे थे, यह गलत है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पीडीए की बात करते हुए जब राज्यसभा के लिए प्रत्याशियों का नाम घोषित किया था, सियासत तभी समाजवादी पार्टी में चरम पर पहुंच गई थी। कई विधायकों और नेताओं ने अखिलेश पर हमला भी बोला था। बदायूं से चार बार के सांसद रहे समाजवादी पार्टी के नेता सलीम शेरवानी ने पार्टी तक छोड़ दी थी।