अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

कहानी : अच्छे दिनों की आस

Share

 स्वेता पाण्डेय (सिद्धार्थनगर)

   गांव में एक चौधरी साहब रहते थे। तो उसी गांव में राय साहब भी रहते थे। चौधरी साहब के पास सौ बकरियां थीं और राय साहब के पास पच्चीस। इन दोनों के बराबर गांव में किसी तीसरे की कोई हैसियत नहीं थी।

       दोनों कहीं मिलते तो दुआ सलाम होता। एक दूसरे के हाल-चाल लेते-देते। सब कुछ ठीक ही चल रहा था, मगर एक दिन क्या हुआ चौधरी साहब राय साहब को शक की निगाह से देखने लगे। धीरे-धीरे उनका शक घृणा की सूरत में बदलने लगा।

       ऐसे कैसे हुआ , तो गांव में कुछ लोगों का कहना था कि चौधरी साहब के सगे-संबंधियों ने ही उनके कान भर दिए हैं। उनका यह विचार था कि राय साहब के पास भी बकरियां हैं, तो वे चौधरी साहब की उतनी इज्जत नहीं करते, जितनी गांव के बाकी लोग करते हैं।

        राय साहब चौधरी साहब को दिल से नहीं मानते हैं। वो मानने का ढोंग करते हैं। दूसरे, राय साहब की बकरियां चौधरी साहब की बकरियों की अपेक्षा ज्यादा बच्चे बियातीं हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो वो दिन दूर नहीं कि इस गांव में राय साहब का रुतबा होगा! इस तरह की बातें चौधरी साहब के कानों में डाली गईं। वहीं कुछ लोग इस बात से सहमति नहीं रखते थे।

        उनके अनुसार जब से गांव में सत्संग हुआ है, तभी से चौधरी साहब की नजर बदली है। सत्संग वाले ने ही कुछ समझाया-बुझाया है। सत्संग वाले ने चौधरी साहब को यह कहकर भड़काया है कि राय साहब इस गांव के नहीं हैं। उनके पुरखे बाहर से आकर बसे थे। वे गांव के सगे हो ही नहीं सकते।

अब कारण जो भी हो,मगर यह बात गांव वालों ने महसूस की कि चौधरी का मन राय साहब के प्रति खट्टा हो गया। 

बहरहाल,अब मामला यह था कि चौधरी साहब राय साहब को नीचा दिखाने की तरह तरह से तरकीबें भिड़ाते। राय साहब कहीं मिल जाते तो उनसे कन्नी काट जाते।

      जिस रात चौधरी साहब राय साहब की बकरियों को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित थे,संजोग से उसी रात गांव में बाघ आया और राय साहब की एक बकरी उठा ले गया। सुबह यह खबर जंगल की आग की तरह फैली। यह खबर सुनते ही चौधरी साहब के मुंह से जो पहला शब्द निकला वह था,’चौबीस!’ 

        इस घटना के बाद चौधरी साहब की खुशी का ठिकाना न रहा। अगर उनका बस चलता तो पूरे गांव में मिठाई बंटवा देते। उस दिन उनसे जो भी मिलने आया भर पेट नाश्ता करके ही गया।

कुछ दिन बाद फिर सब सामान्य हो गया। गांव में उत्तेजना और चौधरी साहब की खुशी खत्म-सी हो गई। अभी चौधरी साहब बेचैन होते ही कि बाघ राय साहब की एक बकरी को फिर उठा ले गया। 

       ‘अब बची तेईस!’ यह बोलते ही चौधरी साहब के बदन में खुशी की लहर दौड़ गई। उनको इतनी खुश मिली कि जिसका कोई जवाब नहीं! चौधरी साहब ने महसूस किया कि यह खुशी कुछ अलग ही टाइप की खुशी है। ऐसी खुशी उन्होंने पहले कभी महसूस नहीं की थी। और इधर राय साहब ने बकरियों की रखवाली बढ़ा दी।

       रात को वे पहरेदारी करने लगे। मगर बाघ उनसे ज्यादा चतुर निकला। इस बार उसने दिन में ही घात लगाई और एक बकरी को उठा ले गया। अब राय साहब के लिए असहनीय था। वह सीधे पहुंचे चौधरी साहब के पास। बोले,’चौधरी साहब आप अपनी बंदूक कुछ दिनों के लिए हमें दे दें!या हम दोनों साथ में पहरेदारी करें!’

जाहिर था,चौधरी साहब क्यों देने लगे! चौधरी साहब ने यह बात एक सिरे से नकार दी। राय साहब ने समझाया, ‘देखिए बाघ को तो बकरियों से मतलब है! आज मेरी गई तो कल आपकी भी जा सकती है! मान लो,कल को मेरी सारी बकरियां खत्म हो जाएं फिर वह आपकी बकरियों को निशाना बनाएगा!’ राय साहब ने फिर अपने पुराने संबंधों की दुहाई दी।

        गांव की भलाई का वास्ता भी दिया। मगर चौधरी साहब ने बंदूक की जगह ठेंगा दिखाया। राय साहब मिमियाते हुए चले गए।

कुछ दिनों बाद बाघ फिर आया। उसने एक बकरी को फिर शिकार बनाया। मगर इस बार फर्क यह था कि इस बार बकरी चौधरी साहब की थी। गांव के कई लोग जब चौधरी साहब के पास मातमपुर्सी के लिए आए तो देखा कि चौधरी साहब के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं। 

       फिर कुछ दिन सामान्य रहा। चौधरी साहब की एक बकरी और कम हो गई। बाघ ने अपना काम कर दिया। मातमपुर्सी के वक्त एक गांव वाला बोला,’चौधरी साहब यह तो बड़ा नुकसान हो गया! आपके पास अब  अट्ठानवे बकरियां बचीं। चौधरी साहब रौ में बोले,’ राय साहब की तो बाइस ही बचीं!’

        दिन बीतते गए। एक दिन चौधरी साहब अपने खेतों से आ रहे थे। उन्होंने देखा कि बाघ उनके दुआरे खड़ा है। संजोग से उस दिन उनके पास बंदूक भी थी। उन्होंने निशाना साधा। ट्रिगर दबाने ही वाले थे कि उनके मन ने कहा,’क्या कर रहा है पगले! इसी ने तो राय साहब की तीन बकरियों को मारा है! और तू इसे मारेगा! आज नहीं तो कल ये उसकी बची हुई बकरियों को भी खाएगा!’ चौधरी साहब ठिठक गए। उन्हें कुछ ही पलों में चुनाव करना था।

         बाघ के लिए इतना वक्त काफी था। वह अपना काम कर गया। साथ अपने एक बकरी को ले गया। चौधरी साहब ने इस घटना के बारे में किसी से नहीं कहा। 

उस दिन के बाद से चौधरी साहब बाघ की प्रतीक्षा करते। एक दिन उनकी प्रतीक्षा खत्म हुई। बाघ आया तो जरूर,मगर इस बार भी चौधरी साहब की बकरी को ले गया।

      इस दुख की घड़ी में कुछ गांव वालों ने चौधरी साहब को बंदूक की याद दिलाई, तो चौधरी साहब ने उनको मन ही मन गद्दार मान लिया। चौधरी साहब जब बाघ के नाम से राय साहब के चहेरे पर दहशत देखते,तो बाघ से उनकी रही-सही शिकायत भी दूर हो जाती। बकरे की अम्मा आखिर कब तक खैर मनाएगी!आज नहीं तो कल बाघ राय साहब की बकरियों को अपना निवाला जरूर बनाएगा!

        इधर चौधरी साहब उम्मीद से थे तो उधर बाघ का एक नियम सा बन गया था। कुछ दिनों के बाद बाघ आता और बकरी ले जाता। 

      आज बाघ ने चौधरी साहब की बकरी को फिर शिकार बनाया। उसी रात दो गांव वाले बातें कर रहे थे;

क्यों! चौधरी साहब के पास अब कितनी बकरियां बचीं!’

‘बयासी हैं अभी!’

‘चौधरी साहब को तो बहुत दुख होता होगा!’

‘नहीं रे!’

‘क्या बात कर रहा!’

‘सही कह रहा हूं!अभी उनको दुख होगा भी नहीं!’

‘क्यों!’

‘क्योंकि चौधरी साहब बाईस के बाद गिनती भूल गए हैं!’

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें