अग्नि आलोक
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कहानी :बुद्धिजीवी !

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~डॉ. विकास मानव

_एक एयर कंडीशंड कमरे में  कुछ बुद्धिजीवी बैठे  बातें कर रहे थे। बातें नहीं कर रहे थे बल्कि बहस कर रहे थे क्योंकि वे कभी बातें नहीं करते थे, सदा बहस करते थे।_
     वे लगभग आमने-सामने होकर समाज , मानवता और अपने शत्रु को पहचानने की कोशिश कर रहे थे। यह कोशिश  बड़े सिद्धांतों के आधार पर की जा रही थी और सिद्धांतों की विवेचना में काफी अंतर आ रहा था।
_चुनौती बहुत बड़ी थी. उनका अस्तित्व ही संकट  में था. इसलिए वे काफी गंभीर थे।_

एयर कंडीशंड कमरे में उन्हें चाय, काफी, नाश्ता सब कुछ नियमित रूप से मिल रहा था। उन्हें यह चिंता नहीं थी की बुनियादी जरूरतें कैसे पूरी होंगी।
चार – पांच सेवक उनकी सेवा में लगे हुए थे। वे पलक झपकते में उनकी जरूरतों को पूरा कर रहे थे।
बहस का मुद्दा जटिल और इतना महीन था कि वह सब की पकड़ में इस तरह आ रहा था जैसे हाथी को अंधे पहचानते हैं।

हर बुद्धिजीवी इस बहुत ही महत्वपूर्ण, उत्तेजक लेकिन संश्लिष्ट सिद्धांत की व्याख्या करने की कोशिश कर रहा था। उनमें से हर विद्वान एक दूसरे से असहमत था। उन्हें यह याद नहीं था कि वे कब एक दूसरे से सहमत थे।
धीरे धीरे कमरे की एयर कंडीशनिंग कम होने लगी। कुछ देर बाद एक बुद्धिजीवी ने कहा – एयर कंडीशनर बंद हो गए हैं।
पहले तो उसकी बात को अनसुना कर दिया गया जब उसने दोबारा कहा तो उसे दूसरे बुद्धिजीवियों ने डांटा और कहा – हम इतनी महत्वपूर्ण बहस कर रहे हैं और आप छोटी सी सुविधा पर ध्यान दे रहे हैं।”

सेवकों को इशारा किया गया और वे एयर कंडीशनिंग ठीक करने की कोशिश करने लगे।
कुछ देर बाद कमरे में बहुत गर्मी हो गई। सेवकों ने बताया की बाहर से कुछ किया गया है।
एक सेवक ने कमरे से बाहर निकलने की कोशिश की तो पता चला दरवाजा बाहर से बंद कर दिया गया है।
बहस इतनी ‘शार्प’ और उत्तेजना पूर्ण हो गई थी की कोई बुद्धिजीवी उसे छोड़ना न चाहता था। जब कि उन्हें मालूम था कि कमरे के बाहर का वातावरण अंदर की तुलना में ज़्यादा तनावपूर्ण है।
बहस बहुत तीखी और उग्र होती चली गई। हद यह हो गयी कि उनमें से कुछ बुद्धिजीवी एक दूसरे पर शारीरिक हमला करने लगे। कुछ घायल हो गए । घायलों को कोने में बिठा दिया गया लेकिन बहस जारी रही।

अचानक कमरे की लाइट चली गई लेकिन बहस फिर भी जारी रही।
तर्क दिया गया कि बहस करने के लिए रोशनी की कोई जरूरत नहीं है।
अब अचानक कमरे का दरवाजा खुला और हाथों में हथियार और मशालें लिए हुए कुछ लोग कमरे में घुस आए।
बुद्धिजीवी यह बहस करने लगे हैं कि इन लोगों का इरादा क्या है? कैसे आए हैं? किस तरह आए हैं? आए हैं या किसी ने भेजा है? आज भेजा है तो इससे पहले क्यों न भेजा था?
फिर भेजने वाले के वर्ग चरित्र पर बहस होने लगी। इस पर भी बहस हुई कि भेजने वाले कैप्टालिस्ट हैं या क्रोनी कैप्टालिस्ट हैं ? यह उनके विरुद्ध है राष्ट्रीय षड्यंत्र है या अंतरराष्ट्रीय? और अगर अंतरराष्ट्रीय है तो कारपोरेट जगत से उसका क्या संबंध है?
किसी बुद्धिजीवी ने उन लोगों से नहीं पूछा कि तुम यहां क्यों आए हो? जो लोग कमरे में घुस आए थे वे बहुत साधारण, कम पढ़े लिखे लोग लग रहे थे और कोई बुद्धिजीवी उनसे बात नहीं करना चाहता था क्योंकि उन्हें डर था कि वे उनकी भाषा नहीं समझेंगे।

वे धीरे धीरे अपने हथियार लिये आगे ।
सेवक उनसे भिड़ गए । भयानक लड़ाई होने लगी ।लेकिन बुद्धिजीवी बहस करते रहे। धीरे धीरे सभी सेवक मार डाले गए पर बुद्धिजीवी बहस करते रहे।
बुद्धिजीवयों ने कहा – हमारे पास समय बहुत कम बचा है। इसलिए वह बहुत मूल्यवान है।हम अपने मूल्यवान समय को किसी बड़े काम में लगाना चाहते हैं और चूंकि शत्रु को पहचानने से अच्छा और बड़ा कोई दूसरा काम नहीं है इसलिए हम बहस को जारी रखना चाहते हैं।”
उन्होंने बुद्धिजीवियों को देखा. वह पूरी तरह बहस में डूबे हुए थे. यह समझने में देर नहीं लगी कि वे बहुत पढ़े-लिखे, समझदार हैं. उनको फ़ायदा या नुक़सान पहुंचाने से ऊपर उठे हुए लोग हैं।
हत्यारे भी समझ गए कि उनको मारना या न मारना बराबर है। अब वे खड़े हैं, बहस जारी है।
🔥चेतना विकास मिशन :

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