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कहानी : मेरा फैसला

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सुधा सिंह

एक बड़े से बरगद के पेड़ के नीचे पंचायत लगी थीI  पूरा गांव इकट्ठा हुआ था। सब आपस में  खुसर फुसुर कर रहे थे। कोई मुंह छुपा कर हंस रहा था तो कोई  व्यंग्य कर रहा था …किसी के चेहरे पर मायूसी और दया थी तो किसी के चेहरे पर क्रोध  कुंठा और चिंता के मिले-जुले भाव थे। सरपंच और पंच भी चिंता मग्न थे पर कोई ना कोई फैसला तो लेना ही था। पंचायत में दोनों पक्ष  अपनी अपनी बातें कह रहे थे।

रामदीन- सरपंच जी … रमुआ ने तो मेरी बेटी की जिंदगी  ही बर्बाद कर दीI  अब कौन  उससे ब्याह करेगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के लायक ही नहीं रहा।

कालिका (रमुआ का पिता)-  क्यों फालतू की बातें करते हो… मेरे बेटे ने कुछ नहीं किया है ….तेरी बेटी के तो रंग ढंग पहले से ही सही नहीं थे ….मेरे बेटे पर डोरे डाला करती थी…. आज आखिर त्रियाचरित्र दिखा ही दियाI

  रामदीन-  मुंह संभाल कर बात कर कालिका I क्या मेरी बेटी झूठ बोल रही है …..और रही बात तेरे बेटे की… तो वह कितना दूध का धुला है… यह बात तो पूरा गांव जानता है …एक नंबर का आवारा और अय्याश है…. शहर जाकर जो गुण ढंग उसने सीखे हैं… यह उसी का नतीजा हैI

  रमुआ – अरे ओ काका… मेरे ऊपर उंगली उठाने से पहले अपनी लड़की को भी संभाल लिया होता…. पता नहीं कहांँ मुंह काला करके आई है और तुम दोनों बाप बेटी मेरे माथे पर उसका पाप मड़ना चाहते होI

संगीता की मां -अच्छा …यह तो पहले सोचना था ना ….अब तुम्हारी हरकत की वजह से तो आसपास के 10 गांव तक लड़की को  ब्याहना मुश्किल हो जाएगाI 

रमुआ की मां -तो क्या मेरे बेटे ने दुनिया भर का पाप अपने सर लेने का ठेका ले रखा हैI  तेरी लड़की के लक्षण तो मुझे पहले ही सही नहीं लगते थेI  मेरा लड़का तो गऊ है गऊ I

  रामदीन- देख  रमुआ… गलती की है तूने …तो शादी तो तुझे करनी ही पड़ेगी…. आखिर अब मेरी बेटी का हाथ कौन थामेगा…. सरपंच जी आप कुछ कहते  क्यों नहीं?

सरपंच = अब आप लोग शांत हो जाओ… हम  पंच आपस  में विचार-विमर्श कर आपको फैसला सुनाते हैंI

इन सबके बीच संगीता चुपचाप सब के आरोप ,लांछन और बातें सुन रही थी।  उसे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि उसके साथ यह सब क्या हो रहा है। वह तो अगले साल 12वीं पास करके आगे पढ़ाई के सपने सजा रही थी और आज उसकी जिंदगी का फैसला यह चंद गांव के लोग बिना उसकी पीड़ा या मत जाने ही कर रहे हैं।  रमुआ ने अपराध किया  है या नहीं… इससे किसी को कोई मतलब नहीं है बल्कि संगीता का चरित्र कितना उज्जवल है या  कितना मैला है …इसका प्रमाण पत्र देने में सब जुट गए हैं । संगीता बोलना तो बहुत कुछ चाहती है पर वह जड़ हो गई थी… उसे उम्मीद है कि पंच उसके हित का कोई फैसला देंगे और  रमुआ को दंड… ताकि वह जीवन में कभी फिर ऐसा अपराध करने की सोच भी ना सके । उसने एक नजर  रमुआ पर डाली… उसके चेहरे पर कोई ग्लानि  या अपराध बोध का भाव नहीं था बल्कि जैसे उसका चेहरा किसी जीते हुए शिकारी जैसा दिखाई पड़ रहा था जो बाजी पहले ही  जीत चुका है ।

  तभी सरपंच बोलना शुरू करते हैं …”दोनों पक्षों की बातों से  यह तो साबित है कि  रमुआ ने संगीता के साथ गलत किया है और इसकी सजा भी  रमुआ को मिलनी चाहिएI”…. इतना सुनकर संगीता का चेहरा चमक उठा I  कम से कम पंचों को तो ऐसा लगा कि  रमुआ ने अपराध किया है लेकिन आगे जो उसने सुना उसे सुनकर वह अवाक रह गई I पंचों ने फैसला दिया कि ”  क्योंकि रमुआ ने संगीता के साथ बलात्कार किया है तो  अब रमुआ को ही संगीता से विवाह भी करना पड़ेगा I”

रामदीन, कालिका या रमुआ की तरफ से कोई प्रतिक्रिया आ पाती ….उससे पहले ही संगीता चिल्ला उठी …..उसका चेहरा क्रोध की अग्नि में जल रहा था…”

“बस्स्स करो…. क्या तमाशा लगा रखा है यह ….यही न्याय कर रहे हो…. घंटों की बहस बाजी सुनकर यही फैसला दिया कि मैं इस बलात्कारी से शादी कर लूं I आप चाहते हैं मैं  उस जानवर से शादी कर लूं  जिसे मेरी इज्जत की कोई परवाह नहीं थी। आप के इस फैसले से तो यह विजेता हो गया और मेरी पीड़ा और इच्छा का क्या? क्या मैं इस इंसान को कभी अपना  पाऊंगी… जिस ने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया …मेरे सपनों को कुचल दिया और मेरी इज्जत को भरे बाजार तार-तार कर दिया I बलात्कार की सजा  रमुआ को देने के बजाय मुझे उम्र कैद की सजा सुना दी I इसमें मेरा क्या कसूर था कि इस  वहशी की हवस का शिकार मैं बनी। यह कैसा नियम है कि बलात्कार करने वाले से ही शादी करनी पड़ेगी वरना समाज जीने नहीं देगा। अगर पागल कुत्ता काट लेता है तो उसे गोली मार देते हैं जीवन भर के लिए उसे पाल नहीं लेते। मुझे आपका यह फैसला कतई मंजूर नहीं है  I मैं एक अपराधी के साथ शादी करके जीवन भर खुद कुंठा से भरा जीवन जीने के बजाय अविवाहित रहना ज्यादा पसंद करूंगी। आपके विचार में इससे भी अधिक कठोर दंड है तो उससे  रमुआ को दंडित करिए….

  पंचगण संगीता की  बात सुनकर सन्न रह गए क्योंकि इससे पहले उन्होंने इससे कठोरतम दंड कभी किसी बलात्कारी को दिया ही नहीं था I 

किसी को समझ नहीं आ रहा था कि वह संगीता के सवाल का क्या जवाब दें लेकिन  संगीता अब संतुष्ट थी …उसे पता था कि अब कोई उसके चरित्र पर उंगली नहीं उठाएगा और ना ही उसके जीवन का फैसला करने का हक किसी और के हाथ में है ….गांव के सभी लोग आपस में खुसर पुसर कर रहे थे लेकिन अब संगीता के चरित्र का कोई प्रमाण पत्र नहीं मांग रहा था I

पंचगण ने काफी विचार-विमर्श करने के बाद यह फैसला दिया कि रमवा को आजीवन गांव से निष्कासित किया जाता है।  रमुआ का अपने परिवार के किसी चल या अचल संपत्ति से कोई वास्ता नहीं होगा और  उसके परिवार या इस गांव का कोई भी व्यक्ति यदि उसे आर्थिक रूप से सहयोग करने का प्रयास करेगा तो उसे भी गांव से निष्कासित कर दिया जाएगा I

संगीता के सम्मान के सामने  का यह दंड  तो कुछ भी नहीं था लेकिन रमुआ के अपराध  की सजा अब संगीता को नहीं भोगनी पड़ेगी I 

संगीता के चेहरे पर अब जीत का भाव था…. वही  रमुआ के चेहरे पर अब चिंता तथा अवसाद के भाव दिखाई दे रहे थे.

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