अग्नि आलोक
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कहानी: पडोसी..

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खट खट…..खट खट….कौन है ….पता नहीं कौन है इतनी रात गए ….बडबडाते हुए सावित्रीदेवी ने दरवाजे के बीच बने झरोखे से झांककर देखा …..अरे रमा तुम ….इतनी रात गए जानती भी हो दो बज रहे है क्या है…. आंटीजी वो……वो बाबूजी की तबीयत खराब हो रही है उन्हें बडे अस्पताल लेकर जाना होगा …. आंटीजी अंकलजी से कहिए ना वो अपनी गाडी से उन्हें…बात बीच मे काटते हुए सावित्रीदेवी बोली …. बेटा वो इनकी भी तबीयत खराब है बडी मुश्किल से दवाई देकर सुलाया है ऊपर से गाडी भी ठीक नहीं है तो तुम चौक पर चली जाओ वहां कोई आटो टैक्सी मिल जाएगी ….. क्या चौक पर….. रमा की आँखें भीगी हुई थी रात दो बजे चौक पर ….. मां बाबूजी ने कभी आठ बजे के बाद घरसे नही निकलने दिया कारण अक्सर मां बाबूजी उसे समझाते रहते थे बेटा ये वक्त असामाजिक तत्वों के बाहर घूमते हुए शिकार करने का ज्यादा होता है …. लेकिन आज….आज तो मुझे जाना ही होगा …मां को ढाढस बंधाकर आई हूं …..मुझे बेटी नही बेटा मानते है मेरे मां बाबूजी तो मैं कैसे पीछे हट सकती हूं…..लेकिन मन मे अक्सर अकेली लडकियों के साथ होती वारदातों की खबरें रमा के मन की आशंकाओं को और बढा रही थी ….लेकिन वो हिम्मत करते हुए अपनी गली से बाहर सडक की ओर जाने लगी….अरे रुको….कौन हो तुम….पीछे से आवाज सुनाई दी….रमा ने घबराकर पीछे की ओर देखा तो गली के नुक्कड़ पर महीने भर पहले रहने आए नये पडोसी जो कि रिक्शा चलाते है को खडा पाया ….अरे तुम तो हमारी गली के दीनानाथ भैया की बिटिया हो ना ….कहां जा रही हो इतनी रात गए…काका वो…. बाबूजी की तबीयत खराब है अस्पताल लेकर जाना है कोई सवारी ढूंढने ….. क्या ….दीनानाथ भैया की तबीयत खराब है बिटिया तुम घर चलो वापसी…. कहकर वह जंजीर से बंधे अपने रिक्शा को खोलने लगे….रमा तुरंत घर पहुंची बाबूजी को सहारा देकर उठाने की कोशिश कर ही रही थी कि रिक्शेवाले काका अंदर आ गए ….आओ दीनानाथ भैया ….सहारा देते हुए दीनानाथ जी को पकडते हुए रिक्शेवाले ने कहा……अरे बिटिया …. भाभीजी…. कुछ नहीं है सब ठीक है …अभी डाक्टर के पास पहुंच जाएंगे……पिछली सीट पर तीनों को बिठाकर रिक्शा पर तेजी से पैडल मारकर खींचने लगा……*

*अस्पताल पहुंचकर रमा के साथ साथ डाक्टरों के आगे पीछे भागते हुए दीनानाथ जी को भर्ती कराया ….देखिए थोडा बीपी बढा हुआ था ….. डाक्टर ने उन्हें दवाओं सहित थोड़ा आराम करने के लिए कहा…..बेड के पास बैठी रमा को शाम की वो तस्वीरे आँखों के आगे नजर आ रही थी जब बगलवाली सावित्री आंटी अंकलजी के साथ खिलखिलाकर गाडी से उतरी थी ….तब ना तो गाडी खराब थी और ना अंकलजी की तबीयत…. बस …..देखिए ये इंजेक्शन मंगवा लीजिए डाक्टर ने एक पर्ची रमा की ओर बढाते हुए कहा….यहां लाइए डाक्टर साहब ….कहकर रिक्शा वाले ने पर्ची पकड ली …. तुम मम्मी पापा के साथ रहो हम अभी लेकर आए बिटिया…..और वह बाहर की ओर तेजी से निकल गया…रमा एकटक उसकी और देखती रही…..एक छोटा सा चद्दर वाले मकान में रहनेवाला रिक्शा वाला …. गली मे सभी के घर दो तीन मंजिला थे सभी के घरो मे मार्बल पत्थरों की सजावट थी तो किसी के यहां टाइल्स की …. बस वही एक घर अजीब सा लगता था झोपड़ी नुमा सीमेंट की चद्दरों से ढका हुआ ….कुछ ही देर मे….लो डाक्टर साहब…. अचानक रिक्शेवाले की आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की …..डाक्टर ने इंजेक्शन लगाया …. और आराम करने के लिए कहकर चला गया ….सुबह छ बजे तक डाक्टर ने चार बार बीपी चेक किया तकरीबन सभी समय सुधार था सो डाक्टरों ने दीनानाथ जी को घर जाने की अनुमति दे दी ….वापसी भी रिक्शे पर लेकर रिक्शावाला बडी सावधानी से घरतक छोडकर जैसे ही चलने को हुआ रमा ने बटुआ निकालकर पांच सौ का नोट उसकी और बढाया…. लीजिए काका….ये क्या कर रही हो*

*बिटिया…..हम इनसब कामों के पैसे नही लेते ….. मतलब….. ये तो आपका काम है ना काका ….लीजिए …बिटिया….. हमारे परिवार के जीवन यापन के लिए हम सुबह से शामतक उस ऊपरवाले की दया से मेहनत करके कमा लेते है ज्यादा का लालच नही वो इंतजाम किए देता है हमारे पेट का और वैसे भी हम एक गली मे रहते है ऐसे हम और आप पडोसी हुए और वो पडोसी किस काम का जो ऐसी स्थिति में भी साथ ना दे ….. कहकर रमा के सिरपर हाथ रखकर वो चलने लगा …..रमा भीगी हुई आँखें पोछते हुए ऊपरवाले की ओर देखकर बोली …. आप जैसे भगवान रुपी पडोसी ईश्वर हर घर के पास रहे….*

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