अग्नि आलोक
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कहानी : कमजोर नस*

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 मीना राजपूत

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शिखा और राजीव की शादी क्यों नहीं हुई?

   _मैं जवाब में खामोश रही तो उस ने प्यार से मेरा गाल थपथपा कर कहा, ‘‘मुझे तुम आज से अपनी बड़ी बहन समझो. मैं कभी तुम्हारा अहित नहीं करूंगी.’’_

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      किरण से मेरी पहली मुलाकात राजीव से शादी होने के करीब 6 महीने बाद हुई थी. वह अपनी भाभी के साथ स्कूल आई थी. तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले उस के भतीजे समीर की मैं क्लास टीचर हूं.

     _‘‘मैं किरण हूं. राजीव और मैं कालेज में साथसाथ पढ़े हैं और हम बहुत अच्छे दोस्त भी थे,’’ उस की भाभी जब दूसरी टीचर से मिलने चली गई तो उस ने मुसकराते हुए अपना परिचय मुझे दिया था._

उस का नाम सुनते ही मेरा दिमाग एक बार को सुन्न सा हो गया. एकदम से समझ में ही नहीं आया कि मैं आगे क्या बोलूं.

    उस ने मेरी चुप्पी का गलत अर्थ लगाया और बिदा लेते हुए बोली, ‘‘कभी राजीव को ले कर घर जरूर आना. बाय.’’

   ‘‘उसे यों जाते देख कर मैं चौंकी और फिर हड़बड़ाती सी बोली, ‘‘मैं अकेले में आप से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘श्योर,’’ उस का जवाब सुन कर मैं कुरसी से उठी और उसे हौल के एक कोने में ले आई. फिर मैं ने इधरउधर की बातें करने में समय नष्ट किए बिना उस से सीधा सवाल पूछा, ‘‘तुम ने राजीव से शादी क्यों नहीं करी?’’

     ‘‘मुझे राजीव से शादी क्यों करनी चाहिए थी?’’ उस ने मुसकराते हुए उलटा सवाल पूछा.

     ‘‘क्योंकि तुम दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. राजीव विजातीय थे तो क्या हुआ? तुम्हें अपने मातापिता की इच्छा के खिलाफ जा कर उन से शादी करनी चाहिए थी.’’

‘‘क्योंकि उन्होंने आज भी तुम्हारी तसवीर को दिल में बसा रखा है. तुम से जुड़ी यादों के कारण मैं कभी उन के दिल की रानी नहीं बन पाऊंगी,’’ मैं गुस्सा हो उठी थी.

    ‘‘क्या मेरे साथ जुड़ी यादें तुम्हारे व राजीव के प्यार में बीच में आ रही है?’’ वह चौंक पड़ी.

     ‘‘हां, उन्होंने सिवा प्यार की गरमाहट के मुझे सबकुछ दे रखा है,’’ न चाहते हुए भी मेरा गला भर आया था.

‘‘यह तो राजीव बहुत गलत कर रहा है,’’ उस ने सहानुभूति भरे अंदाज में मेरा कंधा पकड़ कर दबाया.

    ‘‘तुम ने अपने मातापिता की क्यों सुनी? जब प्यार किया था तो शादी क्यों नहीं करी?’’

    उस ने कुछ देर खामोश रहने के बाद जवाब दिया, ‘‘इन सवालों के जवाब देने मैं तुम्हारे घर आती हूं.’’

‘‘नहीं, तुम्हारा मेरे घर आना ठीक नहीं रहेगा,’’ मैं एकदम घबरा उठी.

    क्या तुम्हें डर है कि अगर मैं ने तुम्हारे घर आनाजाना शुरू कर दिया तो तुम कहीं राजीव को पूरी तरह से ही न खो दो?’’

     मैं जवाब में खामोश रही तो उस ने प्यार से मेरा गाल थपथपा कर कहा, ‘‘मुझे तुम आज से अपनी बड़ी बहन समझो. मैं कभी तुम्हारा अहित नहीं करूंगी.’’

‘क्या तुम और राजीव मिलते रहते हो?’’

  ‘‘तुम्हारे सब सवालों के जवाब अगली मुलाकात में तुम्हारे घर आ कर दूंगी.’’

   ‘‘कब आओगी?’’

‘‘जल्द ही,’’ उस ने मुझ से हाथ मिलाया और अपनी भाभी की तरफ चली गई.

मैं ने राजीव को किरण से हुई इस मुलाकात की जानकारी शाम को दी तो उन्होंने सब से पहला सवाल यह पूछा, ‘‘कैसी लगी किरण की पर्सनैलिटी तुम्हें?’’

  ‘‘तुम बिना बात गुस्सा हो रही हो. अरे, वह मुझ से प्यार जरूर करती थी पर अब हमारे बीच कोई चक्कर नहीं चल रहा है.’’

   ‘‘चक्कर नहीं चल रहा है पर आप उसे भूले भी कहां हैं,’’ मेरा मूड खराब होता जा रहा था.

‘‘तुम सचसच बताओ कि क्या उस जैसी शानदार शख्सीयत को कोई भुला सकता है?’’ उन्होंने गहरी आह सी भरी.

  ‘‘यह बिडंबना ही है कि मेरी सेवा और समर्पण की आप की नजरों में कोई कीमत नहीं है,’’

   मैं बुरी तरह से चिड़ उठी, ‘‘आप मेरी यह बात कान खोल कर सुन लो. मैं बिलकुल नहीं चाहती हूं कि उस का मेरे घर में आनाजाना शुरू हो.’’

‘‘किसी का दिल ईर्ष्या की आग में जलने की बू आ रही है,’’ मेरा मजाक सा उड़ाते ये कमरे से बाहर चले गए और मैं देर तक किलसती रही.

     अगले रविवार सुबह 11 बजे के करीब किरण अपनी 2 सहेलियों शिखा व नेहा के साथ अचानक हमारे घर आ पहुंची. ये दोनों भी कालेज में राजीव के साथ पढ़ी थीं. इन के आते ही घर का माहौल तो एकदम से खुशनुमां हो गया, पर मैं खिंचीखिंची सी बनी रही.

    ‘‘राजीव, जितनी तुम तारीफ फोन पर करते थे, वंदना तो उस से कहीं गुणा ज्यादा सुंदर और स्मार्ट है,’’ शिखा के मुंह से मेरी तारीफ सुन कर राजीव खुश हो गए.

‘‘तुम्हारी तो लौटरी निकल आई इै इतनी अच्छी पत्नी पा कर. इसी बात पर आज पार्टी हो जाए?’’ नेहा की आंखों में भी मैं ने अपने लिए प्रशंसा के भाव साफ देखे.

   ‘‘बिलकुल हो जाए,’’ राजीव ने फौरन खुशी से जवाब दिया.

    ‘‘मिठाई में हमारी पसंद याद है या भूल गए हो?’’ किरण ने बड़ी अदा से पूछा.

     ‘नेहा को रसमलाई, शिखा को रसगुल्ले और तुम्हें काजू की बरफी पसंद है. मैं कुछ नहीं भूला हूं.’’

‘‘तो किस की पसंद की मिठाई खिलाओगे?’’

‘‘मेरी.’’

‘‘मेरी.’’

‘‘नहीं, मेरी.’’

‘‘अरे, परेशान मत होओ.

मैं तीनों की पसंद की मिठाई ले आता हूं.’’

‘‘यह हुई न बात. तुम बिलकुल नहीं बदले हो. कितना बड़ा दिल है तुम्हारा,’’ किरण के मुंह से अपनी तारीफ सुनते ही राजीव ने विजयी भाव से मेरी तरफ देखा.

    ‘मैं अभी गया और अभी आया,’’ कह वे एकदम बाजार जाने को उठ खड़े हुए.

   ‘‘अभी रुको. थोड़ी देर बाद सब साथ चलेंगे. पहले तुम्हारी जानेमन वंदना के हाथ की बनी चाय तो पी लें.’’

‘‘चाय तो मैं अभी बना कर लाती हूं पर मुझे इन की जानेमन समझने की भूल न करें. इन की जानेमन तो कोई और है,’’ अपनी शिकायत बताने के बाद मैं रसोई में जाने को उठ खड़ी हुई.

    ‘‘लगता है कालेज में इस के सिर के ऊपर हर लड़की से प्रेम करने का जो भूत सवार रहता था, वह अभी भी उतरा नहीं है,’’ शिखा की इस टिप्पणी पर वे तीनों खिलखिला कर हंसीं.

      किरण ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे किचन में जाने से रोका और अपने पास बैठाते हुए बोली, ‘‘हमें जाने की कोई जल्दी नहीं है. चाय कुछ देर बाद पी लेंगे. वैसे सहेलियां आज बहुत समय बाद राजीव के हाथ की बनी चाय पी जाए तो

कैसा रहेगा?’’

   राजीव तो चाय बनाने को फौरन तैयार हो गए थे. वे तीनों उन के साथ रसोई में चली आई. वहां उन्होंने मुझे कोई काम नहीं करने दिया.

   कुछ देर बाद ही रसोई में बहुत शोर मचने लगा.

   ‘‘अरे, इतनी ज्यादा चाय की पत्ती मत डालो.’’

‘‘अरे, अभी से चीनी क्यों डाल रहे हो?’’

    ‘‘कैसे भोंदू हो गए हो जो ढंग की चाय बनाना भी भूल गए हो. लगता है वंदना कोई काम तुम से नहीं कराती है.’’

  ‘‘आज पकौड़े बना कर नहीं खिलाओगे?’’

   ‘‘पकौड़ों को रहने दें… हमें पेट खराब नहीं करना है.’’

वे तीनों राजीव का खूब मजाक उड़ा रही थीं. लेकिन उन का व्यवहार बहुत दोस्ताना था. कभीकभी मुझे भी अपनी हंसी रोकना मुश्किल हो जाता था.

   कुछ देर बाद हम सब ड्राइंगरूम में बैठ कर राजीव द्वारा बनाई गई चाय का आनंद ले रहे थे. चाय अच्छी बनी थी और सब के मुंह से अपने काम की प्रशंसा सुन वे फूले नहीं समा रहे थे.

    ‘‘राज, आज एक बढि़या सा गाना भी हो जाए,’’ किरण के मुंह से निकला तो बाकी दोनों भी गाना सुनाने के लिए उन के पीछे पड़ गई.

‘‘अब प्रैक्टिस नहीं रही है. मैं नहीं गा पाऊंगा,’’ राजीव ने गाने से बचने की कोशिश करी.

   ‘‘मेरी खातिर गाओ न,’’ किरण ने बड़ी अदा से जोर डाला तो ये गाना गाने को सचमुच तैयार हो गए और कमरे में एकदम से वे तीनों हल्ला मचाने लगीं.

  ‘‘कौन सा गाना सुनाओगे?’’

   ‘‘जब मुझ से इश्क लड़ा रहे थे तब ‘चौहदवीं का चांद हो…’ सुनाया था. आज वही सुना दो.’’

‘‘नहीं, पार्क में मेरे साथ घूमते हुए मेरी तारीफ में जो ‘तेरे हुस्न की क्या तारीफ करूं…’ गीत गुनगुनाते थे वही सुना दो.’’

‘‘नहीं, वह मेरी पसंद का गाना सुनाइगा.’’

  कुछ देर बाद जब राजीव ने किरण की पसंद का गाना गाया तो हम सब की हंसतेहंसते हालत खराब हो गई. उन से न सुर सध रहा था, न ताल. आवाज कहीं की कहीं जा रही थी.

       वे बारबार रुक जाते थे पर उन तीनों ने पीछे पड़ कर गाना पूरा करवा ही लिया. गाना खत्म कर के इन्होंने मुझे सफाई सी दी, ‘‘मैं कालेज के दिनों में अच्छा सिंगर होता था. कुछ दिन रियाज करने के बाद देखना मैं कितना बढि़या गाने लगूंगा.’’

‘‘यह राजीव लड़कियों में भी सब से पौपुलर युवक होता था हमारे कालेज का, वंदना.’’

    ‘‘जब यह लड़कियों पर अनापशनाप खर्चा करने को हमेशा तैयार रहता था तो पौपुलर कैसे न होता?’’

    ‘‘मुझे इस ने कम से कम 20 फिल्में तो दिखाई ही होंगी.’’

‘‘मैं ने 50 देखी होंगी.’’

‘‘मैं ने 100 से ऊपर.’’

‘‘तू तो खास सहेली थी न इस की.’’

     वे राजीव की पुरानी बातें याद कर खूब देर तक हंसती रहीं और फिर अचानक किरण ने कहा, ‘‘अब चलो भी. देर हो रही है. मेरा बेटा और पति लंच करने को तैयार बैठे होंगे.’’

‘‘ऐसे कैसे जाओगी? अभी तो तुम लोगों ने मनपसंद मिठाई भी नहीं खाई है,’’ राजीव बाजार जाने को फौरन उठ खड़े हुए.

    ‘‘मिठाई फिर कभी खा लेंगे. अभी तो तुम बस कोल्ड ड्रिंक ही पिला दो अपने हाथों से ला कर,’’ किरण ने राजीव को रसोई की तरफ जबरदस्ती धकेल दिया.

     वे चले गए तो किरण ने संजीदा हो कर मुझ से कहा, ‘‘मैं ने राजीव से शादी क्यों नहीं करी, अब जल्दी से अपने सवाल का जवाब सुनो, वंदना. हमारे आज के व्यवहार से तुम्हें अंदाजा हो गया होगा कि राजीव को हम ने मनोरंजन के माध्यम से ज्यादा कभी कुछ नहीं समझा था. उस जैसे सीधेसादे लड़केलड़कियों के अच्छे दोस्त बन ही जाते हैं पर उस से शादी करने का विचार कभी हम में से किसी के दिल में आया ही नहीं था.

‘‘मैं इस के साथ बस फ्लर्ट करती थी पर जब यह सीरियस हो गया तो मुझे मजबूरन अपनी मम्मी को बीच में लाना पड़ा था. वे विजातीय लड़के से मेरी शादी करने को बिलकुल तैयार नहीं हैं, यह कह कर मैं ने अपनी जान छुड़ाई थी.

   ‘‘अब मेरी एक बात ध्यान से सुनो. अगर तुम हमारी तरह इसे अपनी उंगलियों पर नचाना चाहती हो तो इस की एक कमजोर नस मैं तुम्हें बताती हूं. यह दूसरों की नजरों में खास बने रहने को कुछ भी करेगा और कहेगा. इस के डींग मारने वाले व्यवहार से नाराज व दुखी रहने के बजाय तुम इस की झूठीसच्ची तारीफ कर के इस से कुछ भी करा सकती हो.’’

      राजीव के लौट आने के कारण वह आगे और कुछ नहीं कह पाई थी. कोल्ड ड्रिंक पीने के बाद उन तीनों ने बारीबारी से मेरा माथा चूमा और खूब होहल्ला मचाते हुए अपनेअपने घर चली गईं.

उन के जाते ही राजीव ने मुझ से छाती चौड़ी करते हुए पूछा, ‘‘तुम्हें बुरा तो नहीं लग रहा है न?’’

    ‘‘किस बात का?’’ मैं ने उन की आंखों में प्यार से झांक कर पूछा.

    ‘‘यही कि मेरी चाहने वालियों की आज भी कोई कमी नहीं है.’’

     ‘बिलकुल भी नहीं. आप हो ही इतने स्मार्ट,’’ पहले वाले अंदाज में नाराज हो कर मुंह फुलाने के बजाय मैं ने इन के गले में प्यार से बांहें डाल कर यह जवाब दिया तो इन का चेहरा खिल उठा.

_‘‘वैसे आज की तारीख में ये सब तुम्हारे सामने कुछ भी नहीं हैं,’’ इन के मुंह से यों उलटी गंगा बहती देख मैं मन ही मन खुशी से झूम उठी और मन ही मन किरण को धन्यवाद दिया जिस ने मुझे इन की कमजोर नस पकड़वा दी थी._

   (चेतना विकास मिशन)

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