जय विनायक ओझा
ईवीएम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 100 फीसदी वीवीपैट पर्चियों की गिनती की मांग को लेकर दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने इसमें अतिरिक्त सुरक्षा उपाय का आदेश भी दिया। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता शामिल थे, उन्होंने ये आदेश सुनाया। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स Vs भारतीय चुनाव आयोग और अन्य से जुड़े ‘ईवीएम केस’ में कोर्ट ने अहम फैसला दिया। दो जजों की बेंच ने एडीआर की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से मतदान की वैधता को बरकरार रखा, इसके साथ ही दो अतिरिक्त सुरक्षा उपाय करने का भी आदेश दिया।
याचिकाकर्ता कौन थे, उनकी मांग क्या थी?
ईवीएम-वीवीपैट से जुड़े मामले में एक गैर सरकारी संगठन एडीआर याचिकाकर्ता थी। उन्होंने कहा कि या तो ईवीएम से वोटिंग प्रक्रिया को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाना चाहिए या इसमें काफी बदलाव किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अगर ईवीएम से वोटिंग को जारी रखना है तो मतदाता को वीवीपैट पर्ची दी जानी चाहिए। जिससे वह इसे मतपेटी में डाल सकें या फिर देश में सभी वीवीपैट पर्चियों की ईवीएम टैली के साथ गिनती की जानी चाहिए। वर्तमान में, प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच रैंडमली सेलेक्ट ईवीएम से दी गई इलेक्ट्रॉनिक टैली को VVPAT पर्चियों से मिलाकर वेरिफिकेशन किया जाता है। इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ताओं ने उस नियम को चुनौती दी, जिसके अनुसार मतदाता को केवल तभी फिजिकल वेरीफिकेशन के लिए अपील की अनुमति है, जब उसे लगता है कि उसकी ओर से डाले गए वोट और VVPAT पर्ची में कोई विसंगति है। उन्होंने ये भी याचिका में कहा कि केवल एक मतदाता नहीं कोई भी इलेक्टोरल रीकाउंट का अनुरोध करने में सक्षम होना चाहिए।
कोर्ट ने क्यों खारिज की याचिका?
जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि मतदाताओं को अपने वोट दर्ज करवाने और उनकी गिनती करवाने का मौलिक अधिकार है। हालांकि, इस अधिकार को सुरक्षित करने के विभिन्न तरीके हैं और यह मानने का कोई कारण नहीं है कि याचिकाकर्ताओं ने जो तरीके सुझाए हैं वही सही प्रक्रिया है। उन्होंने बताया कि मतदान के अधिकार की प्रकृति ऐसी है कि इसका सार्थक प्रयोग तभी किया जा सकता है, जब पूरी चुनावी प्रक्रिया सही हो। उन्होंने इस संभावना का जिक्र किया कि याचिकाकर्ताओं के कुछ सुझाव वास्तव में VVPAT पर्चियों के दुरुपयोग की संभावना और देश में बैलट पेपर के इतिहास को देखते हुए चुनावों की अखंडता को कम कर सकते हैं। उन्होंने यह भी माना कि इस अधिकार को सुरक्षित करने के लिए 100 फीसदी VVPAT पर्चियों की गिनती करना अनावश्यक है। ऐसा इसलिए क्योंकि मतदाता को पहले से ही ट्रांसपैरेंट विंडो में पर्ची देखने और उसके डाले गए वोट से अंतर होने पर तुरंत इसे चुनौती देने की अनुमति है। इसके साथ कोर्ट ने किसी भी मतदाता की ओर से भौतिक सत्यापन के लिए पूछने की संभावना को भी खारिज कर दिया गया, ऐसा करने से ‘भ्रम और देरी’ होगी।कोर्ट ने अतिरिक्त सुरक्षा पर क्या आदेश दिए?
सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि वर्तमान चुनावी प्रक्रिया पर संदेह का कोई संकेत नहीं है। हालांकि, अदालत ने ‘चुनाव प्रक्रिया की अखंडता को और मजबूत करने’ के लिए दो अतिरिक्त उपाय करने का आदेश दिया। पहला, VVPAT की सिंबल लोडिंग यूनिट्स (एसएलयू), जो यह सुनिश्चित करती हैं कि VVPAT पर्ची पर छपा वोट मतदाता की ओर से दबाए गए बटन के अनुरूप है, इस्तेमाल के बाद सील कर दी जाएंगी। फिर रिजल्ट की घोषणा के बाद 45 दिनों के लिए ईवीएम के साथ एक स्ट्रांगरूम में इन्हे रखा जाएगा। दूसरा, सुप्रीम कोर्ट ने किसी निर्वाचन क्षेत्र में दूसरे या तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवार के लिखित अनुरोध पर ईवीएम के सत्यापन की मांग का अधिकार दिया है। यह भी पहली बार हुआ है। दूसरे या तीसरे स्थान पर आने वाले उम्मीदवार प्रत्येक संसदीय क्षेत्र के किसी भी विधानसभा क्षेत्र में 5 फीसदी ईवीएम में मेमोरी सेमीकंट्रोलर के सत्यापन की मांग कर सकते हैं। यह सत्यापन उम्मीदवार की ओर से लिखित अपील के बाद होगा। ऐसा ईवीएम बनाने वाले इंजीनियरों की एक टीम के जरिए किया जाएगा। उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों को जांच के लिए उपस्थित होने का अधिकार होगा। उम्मीदवार को इस कदम के लिए खर्च उठाना होगा, लेकिन अगर छेड़छाड़ पाई जाती है, तो उसका खर्च वापस कर दिया जाएगा।\
दोनों जजों के फैसले में कोई अंतर था?
जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस संजीव खन्ना से सहमत थे, लेकिन उन्होंने दो अतिरिक्त निर्देश जारी किए। पहला, मौलिक अधिकार के उल्लंघन का संदेह मात्र ही सुप्रीम कोर्ट में जाने का आधार नहीं हो सकता। दूसरा, न्यायिक सिद्धांत, ईवीएम की अखंडता के बारे में बार-बार उठाए जाने वाले दावों को रोकता है, क्योंकि इन मशीनों की सुरक्षा पहले ही पेश की जा चुकी है।
चुनावी प्रक्रिया के बारे में SC ने क्या कहा?
जस्टिस खन्ना और जस्टिस दत्ता, दोनों ने चुनावों के संचालन पर संदेह करने वालों के लिए कड़े शब्द कहे। ईवीएम की अखंडता सुनिश्चित करने के लिए पहले से ही उठाए गए उपायों की विस्तृत समीक्षा के बाद जस्टिस खन्ना ने ‘निराधार चुनौतियों’ को लेकर चेतावनी दी। जस्टिस दत्ता ने और भी कठोर तर्क देते हुए सिस्टम पर ‘अंधाधुंध अविश्वास’ पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि पेपर बैलेट पर वापस लौटने के लिए याचिकाकर्ताओं की अपील उनकी ‘सच्चाई की कमी’ को दर्शाती है। कुल मिलाकर, कोर्ट ने मतदाता के वोट को दर्ज करने और उसे गिनने के साधन के तौर पर ईवीएम की त्रुटिहीन अखंडता पर ध्यान केंद्रित किया।
(लेखक विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के प्रोजेक्ट फेलो हैं)