अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

*ईवीएम पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले… बिल्ली सौ चूहे खाकर हज को चली!*

Share

विजय दलाल

*ईवीएम की वीवीपेट पर्ची की 100 % समानांतर गणना और मिलान की याचिका पर माननीय न्यायाधीशों ने यह उपदेश दे कर कि चुनाव आयोग और उसके द्वारा सम्पन्न चुनाव पर आप आंख मीच कर विश्वास करें। उसका परिणाम जनता ने देख लिया कि छुट्टे सांड की तरह चुनाव के पहले दो चरणों में सुरक्षा संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना तो 

की ही साथ ही नया कारनामा कर डाला। लोकसभा के पहले आम चुनाव (जबकि किसी भी तरह तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी) से लेकर 2019 तक के चुनाव में वोट पड़ने की  सही संख्या और प्रतिशत एक या दो दिन के अंतराल के बाद समाचार पत्रों में छपकर जनता के पास पहुंच जाता था। आज जो काम आधुनिक तकनीकी सुविधाओं के कारण कुछ घंटों में हो सकता है वह काम 11 दिन में भी चुनाव आयोग से नहीं हुआ? वो भी विपक्ष की मांग बाद हुआ वो भी अधुरा आंकड़े केवल प्रतिशत में? कुल डले वोटों की संख्या उसमें भी गायब? *एक और कारनामा वोटिंग के पश्चात घोषित कुल वोटों की प्रतिशत संख्या में 5.75 % बढ़कर?*

*सुरत के मामले में चुनाव आयोग द्वारा चुनाव घोषित होने की तारीख के पहले नतीजा घोषित कर नोटा पर वोट डालने के अधिकार को छीन लेना।?*

*चुनाव का यह तर्क वोटर के नागरिक अधिकार कि वो किसी भी प्रत्याशी को पसंद नहीं करता है उसका चुनाव नतीजे पर असर हो या न हो उससे छीनने का संवैधानिक अधिकार चुनाव आयोग को किसने दिया?*

प्रश्न सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश गण से है कि जनता मान ले कि ऐसा जो भी हुआ है वह ठीक है?*

***********************

*दूसरा सुप्रीम कोर्ट के फैसले का महत्वपूर्ण भाग?*

*मैं कोई कम्प्यूटर का विशेषज्ञ तो छोड़िए बहुत ही अल्प कामचलाऊ जानकारी रखने वाला हूं लेकिन कोई भी कम्प्यूटर आपरेटर , टीवी और मोबाइल का उपयोग करते हुए कामन सैंस से इतना तो कह ही सकता है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिकाकर्ताओं द्वारा  ईवीएम की गड़बड़ी संबंधी सबूत मांगना केवल एक मज़ाक से ज्यादा कुछ भी नहीं था?*

*मेरे द्वारा दि.26/04/2024 की सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सुनवाई के समय मांगे गए सबूतों के बारे में लिखा था कि ऐसे सबूत कैसे पेश किए जा सकते हैं इसमें तो केवल चुनाव आयोग का व्यवहार और उसका पर्ची की गणना और मिलान को टालने के मामले में बार बार के झूठ ही आधार हो सकते हैं ऐसा पोस्ट में लिखा था।*

यह सवाल उठाया गया था। अब आप इसी विषय पर कम्प्यूटर साइंस के विशेषज्ञ की राय जानिए।

*दूसरा फैसले का यह हिस्सा भी देश की जनता के साथ कितना बड़ा मजाक है जिससे यही धारणा स्थापित होती है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस निर्णय में या तो ध्यान रखा या अनपढ़ समझा कि एक तो देश की कितनी आबादी कम्प्यूटर साइंस की आंतरिक गहरी जानकारी रखती है? देश के 144 करोड़ में से एक करोड़ भी नहीं होंगे जिन्होंने बर्न्ट या बर्न्ड मेमोरी शब्द सुना भी हो ? और उस पर भी प्रश्न यह है कि उसकी पैसा तो छोड़िए बगैर पैसे के भी जांच हो तो क्या हासिल होगा?*

*माननीय न्यायाधीशों ने यह निर्णय देते हुए कम्प्यूटर साइंस के विशेषज्ञों से स्वतंत्र राय जानना चाही या चुनाव आयोग या मशीन बनाने या असेंबल करने वाले इंजीनियरों जहां बहुमत में बीजेपी के डायरेक्टर बैठे हुए हैं उनकी सलाह को ऐसे के ऐसे टीप दिया?*

*माननीय महोदय हमें मालूम है आपका यह तरीका की सरकार का काम हो जाने दो उसके बाद हम फिर कह देंगे यह सब गैर कानूनी था!*

*जैसा कि आपने चुनावी बांड के मामले में किया यहां तक की चुनावी तारीख और पार्लियामेंट का अंतिम सेशन के खत्म होने का इंतजार किया और इसके लिए वैसे ही देर से आए फैसले को 115 दिन के लिए सुरक्षित रख लिया।*

*किस मुंह से हेमंत सोरेन के मामले में जमानत के मामले में हाई कोर्ट के दो माह रखें सुरक्षित फैसले जिसका भी हाई कोर्ट को चुनाव खत्म होने का ही इंतजार है , कहेगा कि आपने फैसले को इतने लंबे समय तक सुरक्षित क्यों रखा?**  *और सरकार का मकसद कि चुनाव के दौरान आप पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के दोनों ही मुखियाओं को अपनी पार्टी के लिए प्रचार करने का मौका न मिले!*

 

Add comment

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें