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डॉ. अम्बेडकर और लोहिया के वो पत्र

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 एक दौर में डॉ. आम्बेडकर और डॉ. लोहिया ने भी एक दूसरे के नजदीक आने की कोशिश की थी। सन् 1955 से 56 के बीच डॉ. आम्बेडकर और राम मनोहर लोहिया के बीच कई बार संवाद हुआ और जिसमें दोनो नेता एक मंच पर आने को तैयार दिख रहे थे।बात 10 दिसंबर 1955 की है। जब डॉ. राम मनोहर लोहिया ने हैदराबाद से डॉ. भीम राव आम्बेडकर को पहली बार पत्र लिखा। इस पत्र में लोहिया ने यह इच्छा जताई थी कि डॉ. अंबेडकर देश भर की जनता की आवाज बनकर उभरें। वो पत्र कुछ यूं था-

अशोक दास

प्रिय डॉक्टर अंबेडकर, मैनकाइंड (अखबार) पूरे मन से जाति समस्या को अपनी संपूर्णता में खोलकर रखने का प्रयत्न करेगा। इसलिए आप अपना कोई लेख भेज सकें तो प्रसन्नता होगी। आप जिस विषय पर चाहें लिखिए। हमारे देश में प्रचलित जाति प्रथा के किसी पहलू पर आप लिखना पसंद करें, तो मैं चाहूंगा कि आप कुछ ऐसा लिखें कि हिंदुस्तान की जनता न सिर्फ क्रोधित हो बल्कि आश्चर्य भी करे। मैं चाहता हूं कि क्रोध के साथ दया भी जोड़नी चाहिए। ताकि आप न सिर्फ अनुसूचित जातियों के नेता बनें बल्कि पूरी हिंदुस्तानी जनता के भी नेता बनें। मैं नहीं जानता कि समाजवादी दल के स्थापना सम्मेलन में आपकी कोई दिलचस्पी होगी या नहीं। सम्मेलन में आप विशेष आमंत्रित अतिथि के रूप में आ सकते हैं। अन्य विषयों के अलावा सम्मेलन में खेत मजदूरों, कारीगरों, औरतों और संसदीय काम से संबंधी समस्याओं पर भी विचार होगा और इनमें से किसी एक पर आपको कुछ बात कहनी ही है।’
– सप्रेम अभिवादन सहित, आपका राम मनोहर लोहिया।

बाद में डॉक्टर अंबेडकर ने डॉ. लोहिया को जवाबी पत्र लिखा। डॉ. आम्बेडकर ने लिखा-

‘प्रिय डॉक्टर लोहिया, आपके दो मित्र मुझसे मिलने आए थे। मैंने उनसे काफी देर तक बातचीत की। अखिल भारतीय शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन की कार्यसमिति की बैठक 30 सितंबर, 56 को होगी और मैं समिति के सामने आपके मित्रों का प्रस्ताव रख दूंगा। मैं चाहूंगा कि आपकी पार्टी के प्रमुख लोगों से बात हो सके, ताकि हम लोग अंतिम रूप से तय कर सकें कि साथ होने के लिए हम लोग क्या कर सकते हैं। मुझे खुशी होगी अगर आप दिल्ली में मंगलवार दो अक्तूबर 1956 को मेरे आवास पर आ सकें। अगर आप आ रहे हैं तो कृपया तार से मुझे सूचित करें ताकि मैं कार्यसमिति के कुछ लोगों को भी आपसे मिलने के लिए रोक सकूं।’
आपका, बी.आर.अंबेडकर।

बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर ने इस बीच लोहिया को पांच अक्तूबर को एक और पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने एक और पत्र का हवाला दिया-

‘आपका 1 अक्तूबर 56 का पत्र मिला। अगर आप 20 अक्तूबर को मुझसे मिलना चाहते हैं तो मैं दिल्ली में रहूँगा। आपका स्वागत है। समय के लिए टेलीफोन कर लेंगे।’
आपका बी.आर. अंबेडकर

सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने वाले दोनों नायकों की मुलाकात जब तय मानी जा रही थी, तब होनी को कुछ और मंजूर था। छह दिसंबर 1956 को डॉ. अंबेडकर ने इस दुनिया को ही अलविदा कह दिया, जिस कारण लोहिया और आम्बेडकर की बहुप्रतीक्षित मुलाकात मुलाकात नहीं हो सकी। माना जाता है कि अगर यह मुलाकात हो गई होती तो न केवल सामाजिक न्याय की लड़ाई का आज रंग-रूप कुछ और होता बल्कि देश की राजनीति की दिशा भी दूसरी होती।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।

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