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खतरे में है ‘प्रकृति का संतुलनकर्ता’पैंगोलिन

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जैसे ही सर्दियों का मौसम आता है, सभी जीव अपनी-अपनी तैयारी में व्यस्त हो जाते हैं। कुछ भोजन इकट्ठा करते हैं, जबकि अन्य अपने शरीर को सर्दी से सुरक्षित रखने के विशेष उपाय करते हैं। इस बीच, भारतीय पैंगोलिन, जिसे आमतौर पर “चिंटीखोर” के नाम से जाना जाता है, एक ऐसा अद्वितीय जीव है जो सबका ध्यान आकर्षित करता है। यह न केवल प्रकृति का एक मूल्यवान अंग है, बल्कि अपनी अद्भुत आदतों और जीवनशैली से विज्ञान और वन्यजीव प्रेमियों को भी आश्चर्यचकित कर देता है।

जब आप पहली बार भारतीय पैंगोलिन को देखते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी ने कवच पहने हुए छोटे डायनासोर को जीवंत कर दिया हो। इसके शरीर पर केराटिन से बने कठिन और मज़बूत शल्क होते हैं, जो इसे शिकारियों से सुरक्षित रखते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह शांत और शर्मीला जीव अपनी दुनिया में खोया रहता है, मानो ठंडी सर्दी की रातों का आनंद ले रहा हो।

पैंगोलिन का दैनिक जीवन

भारतीय पैंगोलिन दिन के बजाय रात का जीव है, जो दिन के समय गहरी मिट्टी में स्थित अपने बिल में विश्राम करता है। जैसे ही रात का अंधेरा छाता है, वह बाहर निकलकर भोजन की खोज करता है। ठंडी सर्दियों में, जब तापमान गिरता है, तो यह अपने ठिकाने को और गहरा कर लेता है, जिससे वह ठंडी हवाओं से बचा रहता है। इसका आश्रय न केवल ठंड से सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि शिकारियों से भी इसे सुरक्षित रखता है।

यह अपने आहार के लिए चुपचाप निकलता है, जिसमें मुख्य रूप से चींटियां और दीमक शामिल होते हैं। पैंगोलिन की लंबी और चिपकने वाली जीभ इन्हें पकड़ने में विशेष रूप से प्रभावी होती है। भोजन करने की उसकी प्रक्रिया अद्वितीय है; वह अपने शक्तिशाली पंजों का प्रयोग करते हुए दीमकों के बिल्लों और चींटियों के अंडों को बाहर निकालता है और फिर अपनी जीभ की मदद से उन्हें खाना शुरू करता है।

अब यह सोचने वाली बात है कि सर्दियों में, जब चींटियों और दीमकों की संख्या घट जाती है, तो वह क्या करता है। लेकिन पैंगोलिन का शरीर इस परिवर्तित परिस्थिति के लिए अनुकूलित है, जिससे वह सीमित भोजन के साथ भी जीवित रहने की क्षमता रखता है।

चिंटीखोर: प्रकृति का अद्भुत संतुलनकर्ता

पैंगोलिन को “प्रकृति का संतुलनकर्ता” कहना बिना वजह नहीं है। यह स्तनधारी जंगलों में चींटियों और दीमकों की जनसंख्या का नियंत्रण करता है। यदि पैंगोलिन न हो, तो ये छोटे जीव तेजी से Proliferate कर सकते हैं, जिससे फसलों और पेड़ों को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। इस प्रकार, पैंगोलिन का अस्तित्व न सिर्फ जंगलों, बल्कि कृषि क्षेत्रों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

हालांकि, आज यह अद्भुत प्राणी गंभीर खतरे का सामना कर रहा है। शिकार और अवैध व्यापार के कारण भारतीय पैंगोलिन की जनसंख्या निरंतर घटती जा रही है। इसकी खाल और शल्क का उपयोग पारंपरिक दवाओं और गहनों में होता है, जिससे यह शिकारियों के लिए एक प्रमुख लक्ष्य बन गया है। यह निंदनीय है कि इस शांति प्रिय जीव को मानव की लालच के कारण अपनी जान खोनी पड़ रही है।

पैंगोलिन के बारे में रोचक बातें

यदि आपको लगता है कि पैंगोलिन केवल चींटियों का सेवन करता है, तो आप गलत हैं। इसकी अन्य आश्चर्यजनक विशेषताएं भी हैं। अपने बचाव के लिए, पैंगोलिन अपने आपको एक गेंद की तरह लपेट लेता है। इसके कठोर कवच इसे शिकारियों से सुरक्षित रखने का एक प्रभावशाली उपाय है। यह अपनी लंबी जीभ का उपयोग करके अधिक खाना खा सकता है, जिसकी लंबाई कभी-कभी उसके शरीर से भी अधिक होती है! पैंगोलिन अपने पंजों का उपयोग करते हुए इतनी तेजी से जमीन में खुदाई करता है कि वह कुछ ही मिनटों में गहरी सुरंग बना लेता है।

पैंगोलिन को बचाने की जरूरत

भारतीय पैंगोलिन न केवल हमारी जैव विविधता का हिस्सा है, बल्कि यह पर्यावरण को संतुलित रखने में भी मदद करता है। हमें इस जीव को बचाने के लिए जागरूक होना होगा। सरकार और गैर-सरकारी संगठन इसे बचाने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन जब तक आम लोग इसमें भागीदारी नहीं करेंगे, तब तक यह अद्भुत जीव खतरे में रहेगा।

अगर हम इसे बचाना चाहते हैं, तो हमें इसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी फैलानी होगी। इसके प्राकृतिक आवास को बचाना और अवैध शिकार को रोकना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

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