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सरकार द्वारा संविधान के बुनियादी सिद्धांत कर दिए गए हैं धराशाई

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,मुनेश त्यागी

       77 साल पहले जब भारत एक लंबे संघर्ष के बाद अंग्रेजी साम्राज्यवाद की गुलामी की बेड़ियों को चकनाचूर करके आजाद हुआ था तो उस समय भारतीय संविधान का निर्माण किया गया था और उसमें बहुत सारे जनकल्याणकारी बुनियादी सिद्धांतों को शामिल किया गया था जिसमें जनता की सरकार, जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, गणतंत्र, समाजवाद, आपसी भाईचारा, न्याय, समता, समानता, बोलने लिखने की आजादी, ससम्मान जीने का अधिकार, धर्म की आजादी, सबको शिक्षा सबको रोजगार, उन्नत खेती, बेहतर मजदूरी, किसानों को फसलों का वाजिब दाम, सस्ता और सुलभ न्याय, आर्थिक समानता और बढ़ती आर्थिक विषमता का विनाश, जीने लायक वेतन और फेयर वेतन, साझी संस्कृति, धर्मांता का विनाश, ज्ञान विज्ञान की संस्कृति, मीडिया की आजादी, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, सरकारी एजेंसियों की निष्पक्षता और स्वतंत्रता और जनकल्याण की बुनियादी व्यवस्था स्थापित करने की बात की गई थी। 

     मगर आज आजादी के 77 साल बाद भी जब हम स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से भारत के संविधान के उपरोक्त मूल्यों का आकलन करते हैं तो हम पाते हैं कि पिछले तीस सालों में और विशेष रूप से पिछले दस सालों में, संविधान के उपरोक्त बुनियादी सिद्धांतों को धराशाई कर दिया गया है और अब सारी व्यवस्था पूरी जनता, किसानों, मजदूरों, छात्रों, नौजवानों, महिलाओं,  पिछड़ों, अभावग्रस्तों के जनकल्याण की नीतियों को छोड़कर, हमारी पूरी शासन प्रणाली और पूरा शासक वर्ग, चंद अमीरों के विकास और उनकी मुनाफाखोरी को आगे बढ़ाने की मुहिम में लगा हुआ है और उसका जन कल्याण की नीतियों को आगे बढ़ाने में कोई विश्वास नहीं रह गया है। इन बुनियादी मूल सिद्धान्तों की असली हकीकत इस प्रकार है,,,,,

जनता की सरकार,,,,,

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जब भारत का संविधान लागू किया गया था तो उस समय “हम भारत के लोगों” ने एक ऐसी सरकार की कामना की थी कि जो पूरी जनता की, किसानों मजदूरों की, छात्रों नौजवानों की, एससी एसटी ओबीसी यानी सारी जनता के कल्याण के लिए और विकास के लिए काम करेगी। वह उसकी हजारों साल पुरानी गरीबी शोषण जुल्म और अन्यायों को दूर करेगी और भारत को विकास के मार्ग पर आगे बढ़ाएगी, मगर यह सरकार जो जनता के विकास की बात करके दस साल पहले सत्ता में आई थी, उसने हम भारत के लोगों यानी किसानों मजदूरों छात्रों नौजवानों महिलाओं के लिए लगभग कुछ भी नहीं किया है और उनकी समस्त आशाओं पर पानी फेर दिया है। आज यह सरकार सिर्फ और सिर्फ सामंतो और पूंजीपति वर्ग के गठजोड़ की सरकार बन गई है और अब यह अपने चंद पूंजीपति दोस्तों के हितों को आगे बढ़ा रही है और केवल उनका ही विकास कर रही है। इस सरकार को किसी भी दशा में जनता की सरकार नहीं कहा जा सकता और इसने जनता और संविधान की उन तमाम आशाओं और आकांक्षाओं को धराशाई कर दिया है।

सम्प्रभुता,,,,

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भारत के संविधान में संप्रभुता की बात की गई है। मगर आज हम इस सरकार की नीतियां देख रहे हैं कि हमारा देश संप्रभु नहीं रह गया है। अब हमारी सरकार देश और दुनिया के बड़े-बड़े पूंजीपतियों का विकास करने में और उनकी मुनाफाखोरी बढ़ाने में लगी हुई है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां उसकी अधिकांश नीतियों का निर्धारण कर रही हैं। उसने अपनी जनकल्याण की नीतियां लगभग त्याग दी हैं। वह अपनी बहुत सारी नीतियों का निर्माण विदेशी आकाओं के इशारों पर उनके विकास, प्रभुत्व और मुनाफाखोरी के लिए कर रही है।

जनतंत्र,,,,,,

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हमारा संविधान जनतंत्र की बात करता है, मगर सरकार ने जनतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों से मुंह मोड़ लिया है और अब जनता के जनतांत्रिक अधिकारों पर, जनतंत्र के बुनियादी मूल्यों पर सबसे ज्यादा हमला हो रहा है। हमारा संविधान एक “मजबूत विपक्ष” की बात करता है, मगर यह वर्तमान सरकार विपक्ष मुक्त भारत की बात कर रही है और विपक्ष के बुनियादी अधिकारों पर तमाम तरह के हमले कर रही है और आज जनतंत्र के ऊपर सबसे बड़ा खतरा मंडरा रहा है। आज जनतंत्र के नाम पर हमारे देश में तानाशाही और धनतंत्र हावी हो गया है। आज हमारी इस पूरी व्यवस्था का और सरकार का, मजबूत विपक्ष में, जनतंत्र के मूल्यों को आगे बढ़ाने में और उन्हें सुरक्षित रखने में कोई विश्वास नहीं रह गया है। अब उसने जनता का गला घोंटने वाले फासीवादी तौर तरीकों को अपना लिया है और सरकार ने जनतंत्र के बुनियादी मूल्यों को धराशाई कर दिया है।

धर्मनिरपेक्षता,,,,

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हमारा संविधान धर्मनिरपेक्षता की बात करता है, मगर पिछले दस सालों का शासन बता रहा है कि भारत की सरकार का धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को सुरक्षित रखने और आगे बढ़ाने में कोई विश्वास नहीं है। उसने धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को पूरी तरह से नकार दिया है। धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के अनुसार भारतीय राष्ट्र और राज्य का कोई धर्म नहीं होगा, हमारा राष्ट्र और राज्य धर्मनिरपेक्ष होंगे, मगर सरकार ने संविधान के इस बुनियादी सिद्धांत को तिलांजलि दे दी है और अब वह अपनी धर्मनिरपेक्ष भूमिका को छोड़कर, धर्मांता के मार्ग पर आगे बढ़ रही है और राजनीति और देश के शासन सुशासन में धर्म का प्रवेश करा रही है। जबकि भारत का संविधान सरकार द्वारा किसी भी धर्म को अपनाने की सख्त मनाही करता है। सरकार ने धर्म विशेष को आगे बढ़ाकर संविधान और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों को धराशाई कर दिया है और वह उनके खिलाफ काम कर रही है।

समाजवाद,,,,,,

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भारत का संविधान समाजवादी समाज की स्थापना की बात करता है। समाजवादी व्यवस्था पूरे समाज और देश के तमाम लोगों के सम्पूर्ण विकास की बात करती है और उन्हें समाजवाद के मुकम्मल तौर-तरीकों से आगे बढाती है। मगर हम देख रहे हैं कि हमारी सरकार ने समाजवाद के अधिकांश मूल्यों को धराशाई कर दिया है और अब वह सिर्फ और सिर्फ चंद बड़े पूंजीपतियों के हितों को और चंद पैसे वाले के हितों को आगे बढ़ने का काम कर रही है और वह पूंजीवाद और साम्राज्यवाद की नीतियों का शिकार हो गई है और वह दिल खोलकर धनतंत्र को आगे बढ़ा रही है। इसका समाजवादी मूल्यों को आगे बढ़ाने में कोई भी विश्वास नहीं है।

आपसी भाईचारा,,,,,,

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हमारा संविधान जनता के आपसी भाईचारे की बात करता है। यह उसका बुनियादी सिद्धांत है। मगर हमारी सरकार लगातार जनता के अंदर धर्म, जाति और वर्णवादी व्यवस्था को आगे बढ़ाने की बात कर रही है। वह सत्ता में बने रहने के लिए जान पूछकर जनता का आपसी भाईचारा और उसकी एकता को तोड़ रही है और उसके अंदर जातीय और धार्मिक नफरत के बीज बो रही है, जिस कारण आज जनता बेहाल है। वह मानसिक रूप से इतनी तोड़ दी गई है कि वह सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ एकजुट होकर कार्रवाई नहीं कर रही है।

स्वतंत्रता ,,,,,,,

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हमारा संविधान भारत के हर एक नागरिक को बोलने, लिखने, पढ़ने और यूनियन बनाने की आजादी देता है। मगर हम पिछले कई वर्षों के शासनकाल में देख रहे हैं कि सरकार ने बोलने, लिखने और यूनियन बनाने की आजादी पर भयंकर कुठाराघात किया है। आज सरकार की नीतियों की आलोचना करना एक गुनाह हो गया है। आज सही लिखने पढ़ने और सही आलोचना करने वालों को जेल की सींकचों के पीछे भेजा जा रहा है, उनकी जमानत नहीं हो रही है और मजदूरों द्वारा यूनियन बनाना तो जैसे एक अपराध हो गया है। आज मजदूर अपनी यूनियन बनाकर मालिकान की ज्यादतियों का विरोध नहीं कर सकते। जो मजदूर यूनियन बनाते हैं, उनको मालिक नौकरी से निकाल देते हैं, जिस कारण आज मजदूरों ने यूनियन बनाना लगभग छोड़ दिया है। अब वे यूनियन बनाने की बात ही नहीं करते और इस कारण उनका सबसे ज्यादा शोषण किया जा रहा है।

ससम्मान जीने का अधिकार,,,,,,

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हमारा संविधान सभी नागरिकों को ससम्मान जीने का अधिकार देता है। मगर सरकार की जन विरोधी नीतियों के कारण भारत की अधिकांश जनता का, सम्मान के साथ जीने का अधिकार छीन लिया गया है। उसके बुनियादी अधिकार छीने जा रहे हैं, उसके पास रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य का भयंकर अभाव है और सरकार इस अभाव को दूर करने का कोई काम नहीं कर रही है। बस वह दिखावा कर रही है, जिस कारण अधिकांश जनता बुरे हाल में जीने को मजबूर है। सरकार की गलत नीतियों के कारण जनता से ससम्मान जीने का अधिकार छीन लिया गया है।

सबको शिक्षा और रोजगार,,,,,,

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भारत का संविधान सबको शिक्षा और सबको रोजगार देने की बात करता है। आजादी के लगभग 40 साल तक भारत की अधिकांश जनता को सस्ती और लगभग मुफ्त शिक्षा दी गई थी, जिस वजह से गरीब से गरीब आदमी भी अपने बच्चों को पढाने की स्थिति में था। इस वजह से भारत के गरीब लोग भी विकास के मार्ग पर आगे बढ़ सके। मगर आज हालात ये हैं कि छात्रों के अनुपात में स्कूल नहीं हैं, छात्रों के अनुपात में अध्यापक नहीं हैं, सरकार शिक्षा का बजट लगातार घटाती जा रही है और उसने शिक्षा का निजीकरण करके उसे मुनाफा कमाने का एक जरिया बना दिया है, जिस कारण भारत की अधिकांश जनता सही शिक्षा पाने के अधिकार से महरूम कर दी गई है। आज गरीब आदमी अपने बच्चों को पर्याप्त शिक्षा देने की स्थिति में नहीं रह गए हैं। रोजगार की इतनी बुरी स्थिति है कि नौजवानों की बहुत बड़ी संख्या बेरोजगार है। पिछले दस सालों में दस करोड़ जॉब घटे हैं और 45 करोड़ नौजवानों ने रोजगार की तलाश छोड़ दी है। सरकार ने जैसे ठान लिया है की जैसे नौजवानों को सरकारी नौकरियां देनी ही नहीं है। सरकार की इन नीतियों के कारण बेरोजगारों को रोजगार पाने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

खेती और मजदूरी,,,,,

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भारत का संविधान उन्नत खेती और मजदूरी की बात करता है, खेती के विकास की बात करता है, किसानों को उनकी फसलों का उचित और लाभकारी दाम देने की बात करता है, मगर अफसोस की बात है कि वर्तमान सरकार वायदा करने के बावजूद भी भारत के करोड़ों किसानों की अधिकांश फसलों का वाजिब दाम नहीं दे रही है और किसान भयंकर शोषण का शिकार हो रहे हैं। यही हाल मजदूरों का है। भारत का संविधान और अधिकांश श्रम कानून, न्यूनतम वेतन देने की बात करते हैं, मगर आज भारत के 85% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं दिया जा रहा है। आज उनसे 12-12 घंटे काम कराया जा रहा है, मगर उन्हें ओवरटाइम नहीं दिया जा रहा है और जहां 12 घंटे का ओवर टाइम करने के बाद उन्हें 26,000 रुपए मासिक तनख्वाह मिलनी चाहिए, वहीं हकीकत यह है कि उन्हें 9 से 10 हजार रुपए प्रति मासिक ही दिए जा रहे हैं और उनकी कोई सुनवाई करने वाला नहीं है। अधिकांश श्रम विभाग आंख बंद करके बैठ गए हैं जैसे वे केवल सेवायोजक विभाग बनकर रह गए हैं। मजदूर तो जैसे आधुनिक गुलाम बनकर रह गए हैं।

सस्ता और सुलभ न्याय,,,,,

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भारत का संविधान सस्ते और सुलभ न्याय की बात करता है। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार वादकारियों को उनके दरवाजे पर न्याय मिलना चाहिए, मगर संविधान के इस बहुत ही जरूरी प्रावधान को भी धराशाई कर दिया गया है। आज हमारे देश में 5 करोड़ से ज्यादा मुकदमे अदालतों में लंबित हैं। मुकदमों के अनुपात में न्यायालय नहीं हैं, मुकदमों के अनुपात में बाबू और स्टेनो नहीं हैं, जिस कारण जनता को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं मिल रहा है और जनता के लिए सस्ता और सुलभ न्याय, एक दूर का सपना बनकर रह गया है और सरकार जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने के लिए कोई काम नहीं कर रही है, सस्ता और सुलभ न्याय सरकार की एजेंडे में ही नहीं है। इस प्रकार भारत के अधिकांश वादकारी अन्याय के शिकार होकर रह गए हैं।

आर्थिक समानता,,,,,

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भारत का संविधान आर्थिक समानता की बात करता है और बढ़ती आर्थिक विषमता का विरोध करता है। संविधान कहता है कि भारत की जनता में आर्थिक समानता होनी चाहिए, पैसे का वितरण समुचित होना चाहिए, मगर हकीकत यह है कि आज भारत की अधिकांश जनता गरीब हो गई है। वह अमीरी का शिकार हो गई है और आज आर्थिक असमानता अपने चरम पर है। आज भारत के एक प्रतिशत लोगों के पास भारत के धन का 51% है। और 10% लोगों के पास 90% धन समाहित हो गया है। आज आर्थिक असमानता अपने चरम पर पहुंच गई है।

जीने लायक वेतन,,,,

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भारत का संविधान जीने लायक वेतन और “फेयर वेजिज” की बात करता है, मगर संविधान के इस बुनियादी सिद्धांत को भी धराशाई कर दिया गया है। आज अधिकांश मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता, फेयर वेतन की तो बात ही छोड़ दीजिए। समय पर वेतन वृद्धि नही होती, सरकारी कर्मचारियों को प्रोमोशन का बढ़ा हुआ वेतन समय से नही मिलता है, अधिकारी मोटी रिश्वत मांगते हैं और जो वेतन वृद्धि हुई है, वह इतनी कम है कि महंगाई ने उसका होना ना होना ही खत्म कर दिया है और सरकार का महंगाई को नियंत्रण में लाने का कोई इरादा नहीं है और जनता लगातार कमरतोड़ बढ़ती महंगाई की वजह से बेहद परेशान है। उसके पास इस महंगाई से निजात पाने का कोई रास्ता नहीं है।

साझी संस्कृति,,,,,,,

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भारत का संविधान “कंपोजिट कल्चर” यानी साझी संस्कृति की बात करता है। उसका कहना है कि भारत की संस्कृति मिली जुली है। यहां के सभी धर्म के लोगों ने, सभी जातियों के लोगों ने, भारत के विकास में भागीदारी की है और उसे आगे बढ़ाया है। मगर सरकार की नीतियां भारत की कंपोजिट कल्चर की ओर साझी विरासत के खिलाफ काम कर रही है। वह जान पूछ कर इतिहास में गलत संशोधन कर रही है और सही इतिहास को बदल रही है ताकि जनता अपना सही इतिहास जानकर भारत को सही रास्ते पर आगे बढ़ाने से असमर्थ हो जाए। इस प्रकार हमारी वर्तमान सरकार ने भारत की साझी संस्कृति को धराशाई कर दिया है।

धर्म ,,,,,,,

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भारत का संविधान धर्म में विश्वास करने की आजादी देता है, मगर वह धर्मांता, अंधविश्वास, ढोंग और पाखंडों का विरोध करता है। आजकल धर्म का प्रचार प्रसार करने में बेहद कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। आज हालात यह हो गई है कि धार्मिक अंधविश्वासों को खत्म की बजाय, सरकार लगातार लोगों की ज्ञान वैज्ञानिक की चेतना और संस्कृति पर हमला कर रही है, उसे ज्ञान विज्ञान से कोसों दूर ले जा रही है और जनता में लगातार धर्मांता, अंधविश्वास, ढोंग और पाखंडों को बढ़ा रही है। अधिकांश अखबार इन्हीं से पटे रहते हैं। आज अधिकांश जनता इन धर्मांध विश्वासों के कारण, अपनी बुनियादी समस्याओं पर सोचने को, उनका समाधान ढूंढने को तैयार नहीं है। उसके मन में बैठा दिया गया है कि भगवान देवी देवता अल्लाह खुदा गोड ही उनकी समस्याओं का हल करेंगे। इस प्रकार भारत की अधिकांश जनता ने अपनी गरीबी, महंगाई, भुखमरी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, सरकार की जन विरोधी नीतियों पर सोचा लिखना पढ़ना और समाधान ढूंढना बंद कर दिया है और वह धर्मांता और अंधविश्वासों के जाल में फंस कर रह गई है।

स्वतंत्र मीडिया,,,,,,

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भारत का संविधान स्वतंत्र मीडिया और मीडिया के “चौथे स्तंभ” होने की बात करता है मगर पिछले 10 सालों में सरकार और पूंजीपतियों ने प्रिंट मीडिया और टीवी चैनलों को अपना गुलाम बना लिया है और उनकी स्वतंत्रता पूरी तरह से खत्म कर दी है। आज भारत का मीडिया जनता की बात नहीं करता, बेरोजगारी भुखमरी शोषण जुल्म अन्याय महंगाई भ्रष्टाचार और सरकार की जन विरोधी नीतियों पर वह कोई बात नहीं करता। वह सरकार का गुलाम और पिछलगू बन गया है। वह सरकार की जन विरोधी नीतियों पर कोई चर्चा नहीं करता और उसने विपक्ष को तो जैसे मीडिया से गायब भी कर दिया है। बहुत सारे लोगों ने तो टीवी की एक तरफा खबरें देखना ही छोड़ दिया है। लोग उसे आज “गोदी मीडिया” और “जेबी मीडिया” बताने लगे हैं

स्वतंत्र न्यायपालिका,,,,,,

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भारत का संविधान स्वतंत्र न्यायपालिका की बात करता है। मगर आज भारत का शोषक और शासक वर्ग और सरकार, हमारे देश में स्वतंत्र न्यायपालिका का सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं। वे स्वतंत्र न्यायपालिका के रास्ते में तरह-तरह के अवरोध पैदा कर रहे हैं। सरकार समय से न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं करती, न्यायपालिका का बजट नहीं बढ़ाती सरकारी, कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं करती और जब-जब न्यायपालिका, सरकार की जन विरोधी नीतियों का, संविधान विरोधी नीतियों का विरोध करती है, उसके खिलाफ फैसले देता है तो सरकार द्वारा भारत की न्यायपालिका पर तरह-तरह के हमले किए जाते हैं। आज सरकार की नीतियों ने आजाद न्यायपालिका के रास्ते में भयंकर अवरोध पैदा कर दिए हैं और स्वतंत्र न्यायपालिका का काम करना जैसे बहुत कठिन काम हो गया है।

स्वतंत्र केंद्रीय एजेंसियां,,,,,,,

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भारत का संविधान केंद्रीय सरकारी एजेंसियों की निष्पक्षता, ईमानदारी और पारदर्शिता की बात करता है। मगर सरकार की जन विरोधी नीतियों के कारण सरकारी एजेंसियों की आजादी छीन ली गई है, जैसे एडीसीबी, ईडी, इनकम टैक्स और चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई है। उनकी आजादी छीन ली गई है और सरकार ने इन्हें अपना एक विभाग बना लिया है। सरकार अब इनसे अपना हित साध रही है और सरकार ने इन एजेंसियों को, सरकार की नीतियों की आलोचना करने वालों के रास्ते में अवरोध पैदा करने का एक सशक्त जरिया और माध्यम बना लिया है। 

जनकल्याणकारी योजनाएं,,,,,,

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भारत का संविधान जन कल्याण की बात करता है। आज हम देख रहे हैं किसानों को फसलों का वाजिब दम नहीं मिलता, मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता, श्रम कानूनों को लागू नहीं किया जाता, शिक्षा और रोजगार से जनता को वंचित किया जा रहा है, स्वास्थ्य सेवाओं को मुनाफाखोरी का अड्डा बना दिया गया है, आज की सबसे बड़ी समस्या बन गये,,,भ्रष्टाचार पर कोई बात नहीं होती, कमर तोड़ महंगाई पर सरकार चुप है, गरीबी लगातार बढ़ती जा रही है, सरकार के आंकड़ों के अनुसार ही देश में 83 करोड़ गरीब हैं ,जिनको वह 5 किलो अनाज दे रही है। छात्र और नौजवान बेरोजगारी की वजह से बुरी तरह से परेशान है। सरकार ने कसम खा ली है कि वह नौजवानों को रोजगार नहीं देखी। इसी प्रकार सरकार के पास पिछले 10 साल का रिकॉर्ड नहीं है कि उसने कितने लोगों को रोजगार दिया।

आरक्षण ,,,,,,

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हमारा संविधान एससी एसटी ओबीसी और गरीब लोगों को नौकरियों में आरक्षण की बात करता है। मगर सरकार की नीतियों ने आरक्षण की नीतियों को धता बता दिया है। सरकार आरक्षण की नीतियों के सिद्धांतों से खुश नहीं है, इसलिए उसने एससी, एसटी, ओबीसी को नौकरी न देकर आरक्षण के प्रावधानों को ही धराशाई कर दिया है, उन्हें मिट्टी में मिला दिया है और इस प्रकार सरकार की नीतियों के कारण संविधान में लिखित आरक्षण की नीतियों को धराशाई कर दिया गया है।

      उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि भारत की सरकार का संविधान के बुनियादी सिद्धांतों में कोई विश्वास नहीं है। वह जनकल्याण की नीतियों में विश्वास नहीं करती। वह किसानों मजदूरों छात्रों नौजवानों महिलाओं एससी एसटी ओबीसी को विकास के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ाना चाहती। वह सिर्फ और सिर्फ चंद देशी विदेशी पूंजीपतियों और औद्योगिक घरानों के हितों और मुनाफों को बढ़ाने के लिए काम कर रही है, उसका संवैधानिक मूल्यों को और बुनियादी सिद्धांतों को आगे बढ़ाने में और अमल में लाने में कोई विश्वास नहीं है और इस प्रकार उसने संविधान को बिना बदले ही, संविधान के मूलभूत सिद्धांतों का खात्मा कर दिया है, उन्हें धराशाई कर दिया है।

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