Apurva Bhardwaj
मनमोहन सिंह कितने महान थे, इसका एहसास मोदी को देखकर हुआ। देश ने इसे समझने में देर की, और इस देरी की कीमत आज हर कोई चुका रहा है।
देश के मीडिया को मनमोहन सिंह से माफी मांगनी चाहिए। कटु सत्य यही है। श्रद्धांजलि देने तक का अधिकार मीडिया वालों और संघ/भाजपा से जुड़े लोगों को नहीं है।
देश की बर्बादी की नींव उस साजिश से पड़ी, जो राजीव गांधी के खिलाफ रची गई थी। उसका चरम मनमोहन सिंह के खिलाफ साजिश के रूप में सामने आया। आज जो कुछ हो रहा है, वह इन्हीं दोनों साजिशों का परिणाम है।
सच्चाई यह है कि सबसे अच्छा प्रधानमंत्री वही हो सकता है, जिसकी प्राथमिकता राजनीति न हो, क्योंकि वह उसका मजबूत पक्ष नहीं है। मोदी इसका उल्टा हैं, और यही देश की बर्बादी का कारण है।
यह कहना कि मनमोहन सिंह ओजस्वी वक्ता नहीं थे, सत्य नहीं है। उनके तमाम बयान लैंडमार्क हैं। वे प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबके सवालों के सटीक जवाब देते थे। ताली बजाकर मंच से झूठ बोलना ओजस्वी वक्ता होना नहीं, अभिनय का लक्षण है। मनमोहन के बोलने में गहराई थी, गरिमा थी। उनकी सरल शैली सस्ते जुमलों से बहुत बेहतर थी। वे कम बोलते थे, पर ईमानदारी से बोलते थे।
संविधान निर्माताओं को अगर पता होता कि एक दिन मोदी जैसा आदमी प्रधानमंत्री बनेगा, तो वे संविधान में प्रधानमंत्री के चुनाव प्रचार पर रोक लगाने का प्रावधान जरूर जोड़ते। लेकिन उस समय के दूरदर्शी लोगों को आने वाले पतन का अंदाजा नहीं था।
मनमोहन सिंह का वह पक्ष जिसकी चर्चा कम होती है, यह है कि नेहरू के बाद वह भारत के सबसे लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री थे। उनके प्रधानमंत्री वाले दस सालों ने आम आदमी को स्वतंत्रता और अधिकारों का अहसास कराया। उन्होंने उम्मीदें दीं, और यह महसूस कराया कि जनता को क्या मिल सकता है।
*आज हम समझ रहे हैं कि सिंह साहब ने देश को क्या दिया था और क्या खोया है वो इतिहास बताएगा । तब आपको मेरा ये पोस्ट जरूर याद आएगा #डाटावाणी*
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