नई दिल्ली। परीक्षाओं में हो रही नकल ने पूरी शिक्षा व्यवस्था को ही सवालों के घेरे में डाल दिया है। नीट की परीक्षा पर बवाल चल ही रहा था कि नेट की परीक्षा को रद्द कर दिया गया। और अब तीसरी सूचना यह आयी है कि सीएसआईआर-यूजीसी नेट की होने वाली परीक्षा को भी नकल की आशंका के चलते सरकार ने रद्द कर दिया है। और 30 जून तक क्यूट के आने वाले नतीजे की तिथि को भी आगे बढ़ाने पर सरकार विचार कर रही है। प्रतियोगी तो प्रतियोगी उच्च शिक्षण संस्थाओं में लगी नकल की यह बीमारी अब उनके लिए भारी पड़ती जा रही है। तमाम जानकार इसे उच्च शिक्षण संस्थाओं से छीनी जा रही उनकी स्वायत्तता का नतीजा मान रहे हैं।
इस मसले पर तमाम केंद्रीय विश्वविद्यालयों के एक हिस्से का कहना है कि केंद्र द्वारा विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को छीन कर उनका अधिकार एक ऐसी एजेंसी को दे दिया जा रहा है जो पूरी तरह से अपारदर्शिता में डूबी हुई है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने जून 2024 की नेट परीक्षा को उस समय रद्द कर दिया जब उसे राष्ट्रीय साइबर क्राइम के जरिये पेपर लीक की सूचना मिली। इसमें तकरीबन 9 लाख छात्रों ने हिस्सा लिया था। इससे अभ्यर्थियों को न केवल पीएचडी में प्रवेश मिलता है बल्कि असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की यह पात्रता का भी निर्माण करती है।
आज की सूचना यह है कि सरकार ने सीएसआईआर-यूजीसी की परीक्षा को भी रद्द कर दिया है जो आगामी 25-26 जून को होने वाली थी। इन सारी परीक्षाओं को नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) नाम की एक निजी संस्था आयोजित करती है। और पूरा सवाल इसी संस्था पर उठाया जा रहा है।
हालांकि शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इसे संस्थागत नाकामी करार दिया है। लिहाजा एनटीए की पूरी क्षमता ही अब सवालों के घेरे में आ गयी है। इस बीच सरकार ने नकल विरोधी कानून ले आने का ऐलान किया है।
इसके पहले इस साल की शुरुआत में विभिन्न विश्वविद्यालयों के फैकल्टी सदस्यों ने यूजीसी की इस बात के लिए आलोचना की थी कि बगैर प्रमुख स्टेकहोल्डरों से संपर्क किए उसने नेट को पीएचडी में प्रवेश की एकमात्र परीक्षा घोषित कर दी।
जेएनयू में स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज में प्रोफेसर आयशा किदवई ने कहा कि यूजीसी ने न तो विश्वविद्यालयों से और न ही फैकल्टी समूहों से इस एकल परीक्षा निर्णय के लिए संपर्क किया। यहां तक कि प्रश्न पत्रों के फार्मेट के मामले में भी किसी से नहीं पूछा गया।
उन्होंने कहा कि सरकार की सह पर एनटीए और यूजीसी ने संस्थाओं की स्वायत्तता को छीन लिया और हमारे विश्वविद्यालयों को बिल्कुल किनारे लगा दिया। ढेर सारे फैकल्टी सदस्य नेट के फार्मेट को लेकर बहुत चिंतित हैं।
एनटीए द्वारा तैयार किए गए नेट में केवल बहुउत्तरीय प्रश्न होते हैं जबकि इसके विपरीत पहले होने वाली राज्य या फिर विश्वविद्यालयों की दूसरी परीक्षाओं में बहुउत्तरीय के साथ ही निबंधात्मक प्रश्न भी होते थे। सेंट स्टीफेंस कालेज में गणित विभाग की पूर्व हेड नंदिता नारायण ने कहा कि रिसर्च के लिए इस तरह के बहुउत्तरीय प्रश्न अभ्यर्थी के ज्ञान की गहराई और कौशल को जानने के लिए पर्याप्त नहीं होते हैं।
किदवई ने कहा कि केंद्रीय प्रवेश प्रक्रिया जिसमें एकीकृत प्रवेश परीक्षा शामिल हो, वह विश्वविद्यालयों को इस अवसर से वंचित करते हैं जिसमें वह विशिष्ट इलाके में फोकस करने वाले विश्वविद्यालयों में रिसर्च के लिए उससे सबसे ज्यादा मैच करने वाले अभ्यर्थी का चयन कर सकें।
नरेंद्र मोदी सरकार ने 2017 में एनटीए नाम की एक अकेली एजेंसी को इंजीनियरिंग, मेडिकल और मैनेजमेंट संस्थाओं की परीक्षाएं कराने के लिए स्थापित किया। बहुत सारे अकादमिक लोगों ने एनटीए के पूरे ढांचे पर ही सवाल खड़ा किया उसके साथ ही उसकी क्षमता को भी सवालों के घेरे में रखा।
अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च में भौतिकी के एक प्रोफेसर ने कहा कि एनटीए में जीरो चेक और बैलेंस है और उसकी कार्यवाहियों का कोई भी लेखा-जोखा नहीं लिया जाता है।आईआईएसईआर के इस प्रोफेसर ने कहा कि यह खतरनाक स्थिति है। युवा लोगों का भविष्य दांव पर लगा है। ये परीक्षाएं उनके कैरियर के मैप को तय करती हैं।एनटीए की संरचना किसी से भी कोई इनपुट लिए बगैर बिल्कुल सरकार द्वारा तय किया गया है। एजेंसी का ढांचा बाहरी इनपुट से संबंधित किसी भी विमर्श को आने से रोकता है।
किदवई ने कहा कि एनटीए का ऑडिटेड एकाउंट और संस्था से जुड़े लोगों की सूची वेबसाइट पर मौजूद नहीं है।
उन्होंने कहा कि एनटीए का पूरा संचालन संदिग्ध है। सरकार एक ऐसी संदिग्ध संस्था बनाना चाहती थी जिससे वह संस्थाओं पर अपने पूर्ण नियंत्रण को स्थापित कर सके। नतीजा यह है कि संस्थाएं ध्वस्त हो रही हैं।
किदवई ने कहा कि विदेशी विश्वविद्यालय जिन्होंने पढ़ाई और रिसर्च में बेहतर किया है वो छात्रों के प्रवेश के लिए किसी एकल प्रवेश परीक्षा पर निर्भर नहीं हैं। ये विदेशी विश्वविद्यालय प्रवेश लेते समय छात्रों के प्रवेश परीक्षा के स्कोर को स्वीकार करने या फिर खारिज करने के लिए स्वतंत्र हैं।
किदवई ने कहा कि किसी प्रवेश देना है या नहीं इसके मामले में वह पूरी स्वतंत्रता से काम करती हैं।
जेएनयू के शिक्षक संघ ने कहा है कि नेट का रद्द होना शैक्षणिक संस्थाओं के एकैडमिक कैलेंडर को बिगाड़ देगा। पीएचडी प्रवेश में देरी की कमी को पूरा कर पाना मुश्किल होगा।
(ज्यादातर इनपुट टेलीग्राफ से लिए गए हैं।)