इस साल हमारा देश आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। हर बार की तरह मोदीजी फिर इस बार लाल क़िले पर चढ़कर लम्बे-लम्बे भाषण देंगे। बड़े-बड़े वायदे करेंगे, जो हर बार की तरह पूरे नहीं होने वाले। इसका कारण भी है क्योंकि मोदी जी के लिए देश का मतलब आम जनता नहीं बल्कि देश के पूँजीपति हैं, इसलिए धन्नासेठों से किये सारे वायदे पूरे होते हैं और जनता को दिये जाते हैं बस जुमले। इस बार ये सरकार आज़ादी का मृत महोत्सव, माफ़ कीजिएगा, “अमृत महोत्सव” मना रही है। पर सवाल है किसके लिए आज़ादी? इसे जानने के लिए दूर मत जाइए, बस निगाह दौड़ाइए पिछले दो वर्षों में और बताइए हमारे जीवन के हालात क्या हैं? कोरोना की पहली लहर में हमारे साथ भेड़ बकरियों की तरह सुलूक किया गया और हम लोग हज़ारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गाँव गये, भूखे रहना पड़ा, सैकड़ों मज़दूरों की मौत इस दौरान हो गयी। याद कीजिए उस समय मोदी सरकार क्या कर रही थी? मोदीजी टीवी पर रामायण दिखा रहे थे, थाली बजवा रहे थे, दीये जलवा रहे थे और हम कीट-पतंगों की तरह मर रहे थे। क्या ये ग़ुलामी नहीं है?
अब आइए उसी दौर में हमारे ही देश की दूसरी तस्वीर देखते हैं। आपने गौतम अडानी का नाम तो सुना ही होगा। ये भारत और एशिया के दूसरे सबसे धनी व्यक्ति हैं। कोरोना काल यानि पिछले साल 2021 में इनकी सम्पत्ति में 49 अरब डॉलर का इज़ाफ़ा हुआ है। यह दुनिया के शीर्ष के सबसे अधिक अमीर उद्योगपतियों इलॉन मस्क, जेफ़ बेजोस और बेनॉर्ड अर्नाल्ट की सम्पत्तियों में शुद्ध रूप से हुई वृद्धि से अधिक है। वहीं रिलायंस इण्डस्ट्रीज के प्रमुख मुकेश अम्बानी 103 अरब डॉलर की सम्पत्ति के साथ सबसे अमीर भारतीय बने हुए हैं। उनकी सम्पत्ति में सालाना आधार पर 24 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। अगर अनुमान लगाया जाये तो अम्बानी हर मिनट 2.35 लाख रुपये कमाता है। वहीं बन्दरगाह से लेकर ऊर्जा समेत विभिन्न कारोबार से जुड़े अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी 81 अरब डॉलर की सम्पत्ति के साथ दूसरे स्थान पर हैं। उनकी सम्पत्ति में 153 फ़ीसदी वृद्धि हुई है। हुरुन ग्लोबल की अमीरों की सूची के अनुसार पिछले 10 वर्षों में अम्बानी की सम्पत्ति 400 फ़ीसदी और अडानी की सम्पत्ति 1830 फ़ीसदी बढ़ी है। इसी रिपोर्ट के अनुसार भारत अरबपतियों की संख्या के आधार पर दुनिया में तीसरे पायदान पर है। भारत में अरबपतियों की संख्या 215 है, जबकि चीन में 1133 और अमेरिका में 716 है।
अब आते हैं एक बार फिर अपने हालात पर। एक तरफ़ अडानी-अम्बानी की सम्पत्ति दिन दुगुनी और रात चौगुनी तरक़्क़ी कर रही है, वहीं हम दिन रात 12-14 घण्टे खटकर भी अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं कर पाते। महँगाई में हुई बेतहाशा वृद्धि ने सीधा असर हमारी ज़िन्दगी पर डाला है। चाहे गैस सिलेण्डर, पेट्रोल के दामों में वृद्धि हो या फिर खाने-पीने के सामानों पर, ये सब क़हर बनकर हमारे ऊपर टूट रहे हैं। ऊपर से मोदी सरकार के एक और नये फ़रमान के मुताबिक़ अब दाल, चावल, आटा, गेहूँ समेत सभी अनाजों पर पाँच प्रतिशत जीएसटी लगेगा। यानी खुलेआम क़ानूनी तरीक़े से हमें लूटा जा रहा है! दूसरी तरफ़ एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कारख़ानों, निर्माण और खनन जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले दो-तिहाई से अधिक मज़दूरों को 8000-10000 मासिक वेतन मिलता है। कारख़ानों में काम करने वाले मज़दूरों की वास्तविक मज़दूरी लगातार घट रही हैं। 1984 में जहाँ कुल उत्पादन लागत का 45 प्रतिशत हिस्सा मज़दूरी के रूप में मज़दूरों को दिया जाता था, वह 2010 तक आते-आते केवल 25 प्रतिशत रह गया। इसका सीधा मतलब है : ज़्यादा मेहनत और अधिक उत्पादन करने के बावजूद मज़दूरी लगातार सापेक्ष और अक्सर निरपेक्ष रूप से घटी है, जबकि मालिकों का मुनाफ़ा लगातार बढ़ता गया है। इसके साथ ही मोदी सरकार चार लेबर कोड को लागू कर मज़दूरों के अधिकारों को पूरी तरह कुचलने की तैयारी में है। अब बताइए महीने में 8-10 हज़ार कमाकर, मुश्किल से अपने व अपने परिवार के पेट का गड्ढा भरकर हम कैसे आज़ादी मना सकते हैं? ये आज़ादी का अमृत महोत्सव हमारे लिए विष के प्याले से अधिक कुछ नहीं है।
एक तरफ़ मोदी सरकार हमारी जेब पर डाका डाल रही है, पर दूसरी तरफ़ ये अपने आक़ाओं पर मेहरबान है और उनकी “अर्थव्यवस्था” को पूरी मेहनत के साथ आगे बढ़ा रही है। आइए जानते है कैसे? भारत का कुल मुद्रा भण्डार है 4.7 ट्रिलियन रुपये और अडानी की कम्पनी पर क़र्ज़ है 2.2 ट्रिलियन रुपये का। इसका सीधा मतलब यह है कि भारत के रिज़र्व का आधा पैसा देश की एक कम्पनी के हाथों में है। अडानी ग्रुप की सभी कम्पनियों पर 2.18 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ है। मार्च 2022 तक गौतम अडानी ग्रुप की कम्पनियों का क़र्ज़ पिछले साल की तुलना में 42 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ चुका है। जानकारी के मुताबिक़ पिछले साल अडानी ग्रुप की सभी कम्पनियों पर कुल मिलाकर क़रीब 1.57 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ था, लेकिन इस वर्ष अडानी के क़र्ज़ में एक बार फिर एक बड़ा उछाल देखा गया है। मॉर्निंग कॉण्टेक्स्ट के आँकड़ों के मुताबिक़, समूह की कम्पनियों में क़र्ज़ में सबसे ज़्यादा वृद्धि इसकी प्रमुख इकाई अडानी एण्टरप्राइज़ेज़ में दर्ज की गयी, जो साल-दर-साल 155 प्रतिशत बढ़कर 2021-22 में 41,024 करोड़ रुपये हो गयी। अडानी ने हाल ही में होल्सिम से एसीसी और अम्बुजा सीमेण्ट को 10.5 अरब डॉलर (क़रीब 80,800 करोड़ रुपये) में ख़रीदा है। वह एएमजी मीडिया नेटवर्क्स के साथ मीडिया व्यवसाय में भी प्रवेश कर रहे हैं। ब्लूमबर्ग के बिलियनेयर्स इण्डेक्स के अनुसार, पहली पीढ़ी के उद्यमी गौतम अडानी की कुल सम्पत्ति वर्तमान में 102 बिलियन डॉलर है। ऑस्ट्रेलिया में सबसे विवादास्पद कोयला खनन परियोजनाओं में से एक का अधिग्रहण करने के बाद, अडानी की कम्पनी दीर्घकालिक ऊर्जा की दिशा में एक मज़बूत धुरी बन रही है। इससे आप समझ ही सकते हैं कि मोदी सरकार जो 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का सपना देखती है वह किसके लिए है। ग़रीबों के क़र्ज़ वसूल करने के लिए उनकी झोपड़ी तक नीलाम करवा देने वाली सरकार अपने इन माई-बापों से एक पैसा नहीं वसूल पाती और फिर कई साल बाद उन्हें माफ़ कर दिया जाता है। दरअसल, इस सारी रक़म पर जनता का ही हक़ होता है। सरकार के लिए देश की आज़ादी का मतलब पूँजीपतियों से है न कि जनता से। तभी मज़दूर वर्ग के शिक्षकों ने कहा है कि पूँजीवादी व्यवस्था में सरकारें बर्जुआ वर्ग की मैनेजिंग कमेटी का काम करती हैं।
अब आप तुलना कीजिए “आज़ाद” देश के नागरिक अडानी और उसी देश में रहने वाले एक मज़दूर की। आज़ादी के चीथड़े आपको उस मज़दूर के शरीर पर दिख जायेंगे। इससे साफ़ होता है कि ये आज़ादी हमें मिली ही दाग़दार उजाले के साथ थी। 75 वर्षों के सफ़रनामे का नतीजा है कि आज हमारे देश में 30 करोड़ से ज़्यादा लोग बेरोज़गार हैं। 4 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके घर बिजली नहीं पहुँची है और 18 करोड़ लोगों के पास घर ही नहीं है। आजकल भी 20 प्रतिशत आबादी खुले में शौच करती है। जहाँ तक दवा-इलाज़ की सुविधाओं की बात है तो यहाँ भी स्थिति बेहद ख़राब है। दवाएँ 50 प्रतिशत भारतीयों की पहुँच से बाहर हैं। शहरों में 1 लाख लोगों के पीछे 4.48 अस्पताल और 308 बिस्तर हैं, जबकि गाँवों में प्रति 1 लाख लोगों के पीछे 0.77 अस्पताल और 44 बिस्तर हैं। बाक़ी कोरोना काल ने चिकित्सा व्यवस्था की पोल पूरी तरह खोलकर रख ही दी। यही हाल शिक्षा का भी है, जिसमें नयी शिक्षा नीति के माध्यम से आम घरों के नौजवानों को शिक्षा से दूर किया जा रहा है। त्रासदी देखिए, एक तरफ़ दुनिया के शीर्ष पूँजीपतियों में भारत के पूँजीपति शामिल हैं, वहीं भुखमरी में भी भारत नीचे से सबसे शीर्ष देशों में शामिल है।
ऐसे में भगतसिंह के ये शब्द याद आते हैं, जो आज बिल्कुल सच साबित हो रहे हैं :
“समाज का प्रमुख अंग होते हुए भी आज मज़दूरों को उनके प्राथमिक अधिकार से वंचित रखा जा रहा है और उनकी गाढ़ी कमाई का सारा धन शोषक पूँजीपति हड़प जाते हैं। दूसरों के अन्नदाता किसान आज अपने परिवार सहित दाने-दाने के लिए मुहताज हैं। दुनियाभर के बाज़ारों को कपड़ा मुहैया करने वाला बुनकर अपने तथा अपने बच्चों के तन ढँकनेभर को भी कपड़ा नहीं पा रहा है। सुन्दर महलों का निर्माण करने वाले राजगीर, लोहार तथा बढ़ई स्वयं गन्दे बाड़ों में रहकर ही अपनी जीवन-लीला समाप्त कर जाते हैं। इसके विपरीत समाज के जोंक शोषक पूँजीपति ज़रा-ज़रा-सी बातों के लिए लाखों का वारा-न्यारा कर देते हैं। यह भयानक असमानता और ज़बर्दस्ती लादा गया भेदभाव दुनिया को एक बहुत बड़ी उथल-पुथल की ओर लिये जा रहा है। यह स्थिति अधिक दिनों तक क़ायम नहीं रह सकती। स्पष्ट है कि आज का धनिक समाज एक भयानक ज्वालामुखी के मुख पर बैठकर रंगरेलियाँ मना रहा है और शोषकों के मासूम बच्चे तथा करोड़ों शोषित लोग एक भयानक खड्ड की कगार पर चल रहे हैं।”