चौबीस वर्षीय नीतीश सिन्हा अखिल भारतीय सेवा (आईएएस) के एक अधिकारी बनने की उम्मीद के साथ बिहार के दरभंगा स्थित अपने घर से सिर्फ 70,000 रुपये लेकर दिल्ली आए थे. न्यूनतम ज्ञान और मामूली संसाधनों के साथ सिन्हा ने यूपीएससी की तैयारी शुरू की. वर्तमान में दो साल बाद भी सिन्हा के लिए यूपीएससी पास करना एक सपना बना हुआ है, उनका परिवार अब लगभग 7 लाख रुपये कर्ज में है, जबकि उनके किसान पिता हर महीने पैसे भेजते रहते हैं.
सिन्हा ने ओल्ड राजिंदर नगर में एक स्टॉल पर चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “मैंने अब प्लान बी के बारे में सोचना शुरू कर दिया है. मैं इसे लंबे समय तक नहीं कर सकता. मैंने अपने सारे वित्तीय संसाधन खत्म कर दिए हैं — रिश्तेदारों से लेकर मेरे पिता और दोस्तों तक. कोई सहायता तंत्र उपलब्ध नहीं है, न तो आर्थिक रूप से और न ही मानसिक रूप से.”
यूपीएससी एस्पिरेशन की कहानी — 24×7 पढ़ने, संघर्ष और आशा और निराशा के बीच का अंतहीन चक्र — बॉलीवुड फिल्मों, उपन्यासों और ओटीटी सीरीज़ में किंवदंतियों का विषय बन गई है, लेकिन एक और काफी हद तक नज़रअंदाज की गई कहानी है: रोज़मर्रा का वित्तीय तनाव, पैसे की तंगी और माता-पिता के कर्ज को लेकर भारी अपराध बोध. नोटबुक खरीदने के लिए, एक्स्ट्रा चाय और समोसा खाने से पहले दो बार सोचने से लेकर असुरक्षित, अस्वच्छ मकान में रहने तक — एस्पिरेंट्स की स्पेंडिंग लिस्ट उस सैन्यवादी अनुशासन की एक झलक है जिससे वे बच नहीं सकते.
सिन्हा ने ओल्ड राजिंदर नगर के एक प्रतिष्ठित संस्थान में अपने ऑप्शनल पेपर — समाजशास्त्र के लिए कोचिंग में एडमिशन लिया. वे जनरल स्टडीज की कोचिंग का खर्च नहीं उठा सकते थे, जिसकी कीमत 2-2.5 लाख रुपये है. सिन्हा ने इन दो सालों में दिन में सिर्फ दो बार खाना और 6-7 कप चाय पीकर गुज़ारा किया.
सिन्हा ने कहा, “चाय मेरी भूख मिटाती है. ओल्ड राजिंदर नगर में ज़िंदा रहना बहुत मुश्किल है. मैं कुछ किलोमीटर दूर पटेल नगर में रहता हूं, क्योंकि वहां कमरे सस्ते हैं.”
वे करोल बाग मेट्रो स्टेशन से करीब 2 किलोमीटर दूर एक भीड़भाड़ वाले इलाके में स्थित चौथी मंजिल पर 2 BHK फ्लैट का 10,000 रुपये किराया देते हैं, जिसमें दो अन्य लोग रहते हैं.
लगातार असफल प्रयासों और सालों बीतने के कारण सिन्हा जैसे एस्पिरेंट्स हतोत्साहित हो जाते हैं और उनके पास अपने सपने को पूरा करने के लिए पैसे की कमी हो जाती है. तैयारी के पहले साल में अगर वे किसी कोचिंग संस्थान में जाते हैं, तो आमतौर पर उम्मीदवार 5 लाख रुपये खर्च कर देते हैं.
दिल्ली में एक कोचिंग सेंटर स्टडीआईक्यू के शिक्षक अमित किल्होर ने कहा, “जनरल स्टडीज की कोचिंग के लिए कम से कम 2 लाख रुपये और ऑप्शनल पेपर के लिए कम से कम 50,000 रुपये देने पड़ते हैं. औसत किराया 15,000 रुपये प्रति माह है और भोजन, पढ़ने के लिए कंटेंट और बाकी खर्च इसमें जुड़ जाते हैं. यह उन लोगों के लिए बहुत है जिनके माता-पिता अपने खर्चों को सीमित करके पैसे भेज रहे हैं.”
नीतीश सिन्हा ने पिछले दो सालों में घर से दूर रहते हुए कई मुश्किलों का सामना किया है, लेकिन एक ऐसी घटना है जो हर महीने उन्हें भावनात्मक रूप से तोड़कर रख देती है.
आंखों में आंसू लिए सिन्हा ने कहा, “मैं अपने पिता से फोन पर ज्यादा बात नहीं करता, लेकिन जब मैं उनसे पैसे मांगने के लिए फोन करता हूं, तो मुझे बहुत बुरा लगता है क्योंकि मुझे पता है कि मेरे महीने भर के खर्चों का इंतजाम करना उनके लिए बहुत मुश्किल है. उस पल मुझे ऐसा लगता है कि मेरा दिल टूट जाएगा.”
अब वे खाली हाथ घर नहीं लौट सकते. उनके परिवार ने उन पर बहुत निवेश किया है. उन्हें डर है कि शायद वे अपने पिता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाएंगे.
उन्होंने कहा, “यहां ज़िंदगी आसान नहीं है. कोई आपकी परवाह नहीं करता. मैं अपने माता-पिता को सच नहीं बता सकता कि मैं कैसा महसूस करता हूं. मैंने अपने सीनियर्स से कुछ काम सुझाने के लिए कहना शुरू कर दिया है ताकि मैं थोड़ा कमा सकूं.”
जो लोग यूपीएससी की तैयारी में सालों बिता देते हैं, वे कुछ कमाई करने के लिए काम करना शुरू कर देते हैं ताकि उन्हें अपने परिवार से पैसे न मांगने पड़ें. कई लोग कोचिंग सेंटरों में 3-4 घंटे काम करते हैं, जिसमें अनुवाद, कंटेंट क्रिएशन और उत्तर पुस्तिका जांचने जैसे काम शामिल हैं.
रिजल्ट के बाद, जब सिन्हा का नाम परीक्षा पास करने वालों की पीडीएफ में नहीं आया, तो अगले कुछ दिन सबसे ज़्यादा तकलीफदेह रहे हैं.
“नहीं हुआ”…ये दो शब्द कहने में बहुत मेहनत लगती है.
उन्होंने कहा, “लेकिन, मैं इस बात से दुखी भी नहीं हो सकता क्योंकि मैं तुरंत अगली परीक्षा की तैयारी शुरू कर देता हूं और यह कभी न खत्म होने वाला सिलसिला है.”
सिन्हा का दिन सुबह 9 बजे पास के पार्क में टहलने से शुरू होता है, जहां वे दिन भर के लिए अपनी पढ़ाई का शिड्यूल बनाते हैं. पिछले कुछ महीनों में, उनमें स्ट्रेस के लक्षण आए हैं, जिन्हें उन्होंने शुरू में नज़रअंदाज़ किया, लेकिन आखिरकार उन्हें डॉक्टर के पास जाना पड़ा और अब, वे दवाएं ले रहे हैं.
सिन्हा ने कहा, “यह मेरी ज़िंदगी की एक और समस्या है. मेरे लिए पढ़ाई और सब कुछ संभालना पहले से ही मुश्किल था और पिछले कुछ महीनों से, मैं दवाएं ले रहा हूं और किस लिए? बस डर से बचने के लिए.”अब तक उनकी दवा पर 12,000 रुपये खर्च हो चुके हैं, जिसे वे आगे नहीं वहन नहीं कर सकते.
सिन्हा ने कहा, “सभी फिल्में और सीरीज देखने के बाद, हर कोई हमें सहानुभूति देता है, लेकिन कोई भी मदद नहीं करता. यह सिर्फ मैं या कोई और नहीं है; पूरी एस्पिरेंट कम्युनिटी को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन हम अधिकारियों और सरकार के लिए अदृश्य हैं.”
हर पैसे का हिसाब
नए पेन खरीदने के बजाय, सिन्हा सिर्फ रिफिल का इस्तेमाल करते हैं. वे दिन में सिर्फ दो बार खाना खाते हैं और पिछले दो साल में शहर में एक भी बार मौज-मस्ती के लिए नहीं गए हैं.
पराठे और मैगी जैसे सस्ते खाने के विकल्प लगभग 50 रुपये में मिल जाते हैं, लेकिन इन खाने-पीने की दुकानों की स्वच्छता के मानक सवालों के घेरे में हैं. सिन्हा आने-जाने का खर्च भी कम करते हैं. वे रिक्शा लेने की बजाय हर दिन 1.5 किलोमीटर पैदल चलकर लाइब्रेरी जाते हैं. इस यात्रा के लिए रिक्शा से उन्हें हर तरफ लगभग 40 रुपये देने पड़ते हैं.
चेक्ड टी-शर्ट और बहुत पुरानी जींस पहने सिन्हा ने कहा, “मैंने पिछले दो साल में कोई नया कपड़ा नहीं खरीदा है. आप मेरी बात पर यकीन नहीं करेंगे अगर मैं कहूं कि इस महीने मैंने सिर्फ फूलों और मोमबत्तियों पर ही खर्च किया है, जिनका इस्तेमाल कल रात तीन मृतकों के लिए न्याय की मांग करते हुए कैंडल मार्च में किया गया था.”
ओल्ड राजिंदर नगर में यूपीएससी के तीन एस्पिरेंट्स की मौत ने उन्हें अंदर से झकझोड़ दिया है. उनकी बेचैनी बढ़ गई और उन्हें अपनी दवा की खुराक बढ़ानी पड़ी.
सिन्हा जो खुद भी विरोध प्रदर्शन में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं, ने कहा, “उन तीनों ने गटर के पानी में डूबकर अपनी कीमती जान गंवा दी. मैं इस घटना से इतना आहत हुआ कि मैंने अगले दो दिनों तक कुछ नहीं खाया. वे भी मेरी तरह ही युवा और सपनों से भरे हुए थे, लेकिन कोचिंग संस्थान और अधिकारियों के खराब प्रबंधन ने उन्हें मार डाला.”
नीतीश को नहीं पता कि मौतों के बाद कुछ बदलेगा या नहीं, लेकिन ओल्ड राजिंदर नगर में सुविधाओं को लेकर उनका गुस्सा इतना तेज़ है कि वे अपना पूरा दिन सड़क पर बैठकर ‘हमें न्याय चाहिए’ चिल्लाते हुए बिताते हैं.
सिन्हा ने ओल्ड राजिंदर नगर में विरोध प्रदर्शन में वापस आते हुए कहा, “ये नारे सिर्फ मरने वालों के लिए नहीं हैं. जब मैं ये नारे लगाता हूं, तो मुझे लगता है कि यह मेरी भी लड़ाई है.”