राकेश अचल
कलियुग में त्रेता की बात हो और सीता का हरण न हो ये कैसे सम्भव है । कलियुग में सीता भूमिजा नहीं है। कलियुग की सीता जनादेश से जन्मी है ,लेकिन उसके हरण की कोशिशों में कोई कमी नहीं है । झारखंड से पहले अनेक राज्यों में सत्ता की सीता का हरण आप देख चुके हैं ,लेकिन सबसे दिलचस्प कहानी झारखंड की है ,क्योंकि यहां सत्ता की सीता आदिवासी है और उसका अपहरण करने में भाजपा को पसीना आ रहा है। झारखण्ड में पिछले दो दिन से कोई सरकार नहीं है।
आपको याद होगा कि भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद देश के अनेक राज्यों में सत्ता की सीता का वरण न कर पाने के बाद उसका अपहरण करने के लिए आपरेशन लोटस चलाया था । कभी कर्नाटक में कभी मध्य प्रदेश मे। कभी महाराष्ट्र में कभी बिहार में। आपरेशन लोटस के तहत भाजपा को कहीं बिभीषण मिले तो कहीं पल्टूराम ,लेकिन झारखण्ड में अभी तक भाजपा के हाथ कोई नहीं लगा है । झामुमो गठबंधन की गांठें फिलवक्त ढीली नहीं हुईं हैं हालांकि सत्तारूढ़ परिवार की एक विधायक श्रीमती सीता सोरेन बिदकी हुई हैं और भाजपा की नजर उन्हीं पर है । दुर्भाग्य ये है कि सीता सोरेन का अपहरण करने के बाद भी भाजपा गठबंधन सत्ता की सीता का वरन करने की स्थिति में नहीं है ।
मिशन 400 को हासिल करने के लिए भाजपा की मजबूरी है कि जिन राज्यों में उसकी सत्ता नहीं है वहां या तो वो सत्ता हासिल करे या वहां सत्तारूढ़ विरोधी सरकारों को अस्थिर कर वहां लोकसभा चुनावों के साथ विधानसभा चुनावों की स्थितियां पैदा करे। भाजपा पिछले एक दशक में दो आम चुनाव जीत चुकी है लेकिन राज्यों के विधानसभा चुनावों में उसे लगातार मुंह की खाना पड़ी है। जिस कांग्रेस को भाजपा देश से खदेड़ देना चाहती है वो ही कांग्रेस पांच साल पहले भाजपा से अनेक राज्य छीन चुकी है। हालाँकि बाद में परिदृश्य बदला। इस समय भी भाजपा के लिए गैर भाजपा दलों और गठबंधनों की सरकारें परेशानी का सबब बनीं हुईं हैं।
सत्ता की सीता का हरण करने के लिए भाजपा ने हर तरह की लोक-लाज का परित्याग कर दिया ह। नैतिकता-अनैतिकता को भूल गयी है। संविधान उसके लिए कोई मायने नहीं रखता। जो भी राजनीतिक दल भाजपा के विजय अभियान में आड़े आया उसे नेस्तनाबूद करने के लिए भाजपा ने बिभीषणों,पल्टूरामों और जब कोई नहीं मिला तो ईडी यानि प्रवर्तन निदेशालय का भरपूर इस्तेमाल किया। लेकिन पिछले एक दशक में न देश कांग्रेस विहीन हुआ और न प्रतिद्वंदी क्षेत्रीय दल मिटे। भाजपा के दीपक के नीचे ही अन्धेरा है । उसके पास न दिल्ली है और न पंजाब । न बंगाल है और न केरल । न तेलंगाना है और न हिमाचल। न उड़ीसा है न तमिलनाडु। लेकिन सीता से पहले भाजपा ने राम का अपहरण करने में कामयाबी हासिल कर ली है।
कलियुग की सियासी रामायण में झारखण्ड भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है । भाजपा को जितनी कस-बल और पैसा बिहार में खर्च नहीं करना पड़ा उससे कहीं ज्यादा झारखण्ड में करना पड़ रहा है। झामुमो गठबंधन के अधिकांश विधायक अभी तक बिके नहीं हैं हालाँकि खरीदार भाजपा ने अभी हार नहीं मानी है । झारखण्ड के राजयपाल भाजपा की कठपुतली होकर भी भाजपा की मदद नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में लगता है कि खिसियाई बिल्ली की तरह भाजपा झारखंड में जबरन राष्ट्रपति शासन थोप सकती है। हालाँकि इसके लिए उसे अभी बहुत से पापड़ बेलने पड़ेंगे और वो ऐसा कर रही है।
देश की रामभक्त जनता के लिए झारखंड का प्रकरण आँखें खोल देने वाला होना चाहिए। जनता को समझना चाहिए कि भाजपा राम के नाम की आड़ में लगातार सत्ता की सीता का अपहरण करती आयी है। अब जनता ने ही इस खेल को न रोका तो सत्ता की सीता हमेशा के लिए बंधक हो सकती है और उसे कोई भी राम मुक्त नहीं करा पाएंगे ,क्योंकि वे तो पहले से मंदिर में कैद हैं। ये मंदिर भाजपा का है ऐसा भाजपा ने राष्ट्रपति के अभिभाषण और अंतरिम बजट के समाय स्वीकार भी किया है। अयोध्या का राम मंदिर किसी रामनामी सम्प्रदाय की उपलब्धि नहीं है ,ये भाजपा की अपनी उपलब्धि है । मंदिर के प्रशासन का काम भी जिस ट्रस्ट के हाथ में हैं इसमें बहुमत बाबाओं का नहीं नागपुर में दीक्षित शाखामृगों का है। लेकिन हमें इससे कोई आपत्ति नहीं। राम हमारे हैं भले ही उन्हें भाजपा ने घेर लिया है।
हम भाजपा के आपरेशन लोटस और सत्ता की सीता हरण के प्रयासों के कभी समर्थक नहीं रहे । हमारा मानना है कि सत्ता पाने के लिए जनादेश ही एकमात्र विकल्प होना चाहिये । जनादेश से चुनी हुई सरकारों के साथ दुर्व्यवहार कांग्रेस के जमाने में भी खूब होता था और भाजपा ने तो इस मामले में सारे कीर्तिमान भंग कर दिए हैं। लोकतंत्र की शक्ति बनाये रखने के लिए जनादेश की सुचिता बनाये रखना आवश्यक है । इसे ईडी ,सीबीआई या ईवीएम के जरिये दूषित नहीं किया जाना चाहिए। कल क्या होगा ये राम जी के अलावा केवल भाजपा वाले जानते हैं। देश को इस बारे में कुछ पता नहीं है ।उसके भाग्य में सत्ता की सीता के अपहरण के दृश्य ही हैं।