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 मेडिकल की पढ़ाई में सबसे दिलचस्प लर्निंग होती है 600 घंटे तक डेड बॉडी की लंबी चीर-फाड़…

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मध्यप्रदेश में अब मेडिकल की पढ़ाई भी हिंदी में होने जा रही है। इस पढ़ाई में सबसे दिलचस्प लर्निंग होती है 600 घंटे तक डेड बॉडी की लंबी चीर-फाड़…। देह दान तो खूब सुना होगा, लेकिन मेडिकल स्टूडेंट्स और एक्सपर्ट ही जानते हैं कि आखिर उसका इस्तेमाल कैसे होता है।

आइए पढ़ाई की पूरी प्रोसेस बताते हैं… यह भी बताएंगे कि पति की आत्मा की मुक्ति के लिए इंदौर की एक महिला ने एक साल बाद मेडिकल कॉलेज से वापस मांग लिए थे बॉडी के पार्ट्स…

सबसे पहले बॉडी की मेडिकल कॉलेज में एंट्री
देह दान के लिए टाइम लिमिट होती है। मौत के छह घंटे तक ही बॉडी को दान किया जा सकता है। ठंड और बारिश में यह अधिकतम सीमा 8 से 10 घंटे तक हो सकती है। लेकिन उसके बाद कतई नहीं।

यह ध्यान रखा जाता है…

  • ट्यूमर तो नहीं है
  • एचआईवी तो नहीं था
  • फ्रेक्चर तो नहीं है
  • कोविड या संक्रमण फैलाने वाली बीमारी तो नहीं थी
  • कैंसर तो नहीं था
  • अधिक समय तक बेड रेस्ट वाली बॉडी तो नहीं है

इनमें से कोई भी कारण होता है तो डेड बॉडी सकारण रिजेक्ट कर दी जाती है। यानी परिवार दान कर देता है, लेकिन वो मेडिकल कॉलेज इस्तेमाल में नहीं लेता है।

पहली स्टेज : ब्लड बाहर कर बॉडी में डालते हैं केमिकल
डोनेट बॉडी को सेफ (इम्बालमिंग) करने के लिए एक प्रोसेस है। एनाटॉमी विभाग सबसे पहले गला या कमर किसी एक जगह से दो नसों को काट देते हैं। एक नस से फॉर्मालिन नाम का केमिकल बॉडी में डाला जाता है। ये केमिकल जैसे ही बॉडी में जाना शुरू होता है तो इसके प्रेशर से दूसरी कटी हुई नस की ओर से बॉडी से ब्लड बाहर आना शुरू हो जाता है। यह प्रोसेस कर बॉडी के टिशूज (ऊत्तक) को स्टेबल कर दिया जाता है। इसके बाद पूरी बॉडी को फार्मालिन केमिकल से भरे टैंक में रख दी जाती है। ये बॉडी ऐसे ही 3 से 4 महीने तक रखी रहती है।

दूसरी स्टेज : पहली बार डेड बॉडी स्टूडेंट के सामने आती है
मेडिकल की पढ़ाई में सिर्फ फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट को इस बॉडी पर रिसर्च और प्रैक्टिकल का मौका मिलता है। चार महीने तक केमिकल में भिगोई हुई बॉडी को पहले अच्छे से धोया जाता है। फिर सूखने के लिए खुला छोड़ देते हैं। दरअसल, केमिकल के कारण स्टूडेंट्स को आंखों में जलन की समस्या हो सकती है। प्रैक्टिकल के दौरान यह प्रक्रिया रोज करना पड़ती है। समय-समय पर केमिकल डालना पड़ता है।

तीसरी स्टेज : जिस हिस्से पर स्टडी, उसे काटकर अलग करते हैं
डेड बॉडी पर एक बार में पूरी रिसर्च नहीं होती, जैसा कि फिल्मों में दिखाया जाता है। बॉडी के जिस पार्ट्स की पढ़ाई होनी है, उसे ग्रुप मेम्बर्स को दिखाया जाता है। फिर उसे काटकर अलग किया जाता है। फिर उन्हें रिसर्च और स्टडी के साथ थ्योरी दी जाती है। इस दौरान स्किन और फैट को चमड़ी से हटाते हैं। रिसर्च के दौरान हड्‌डी तक की जानकारी स्टूडेंट्स को दी जाती है। बाद में स्किन और फैट को बायोमेडिकल वेस्ट के रूप में अस्पताल भिजवा देते हैं। यह रिसर्च सालभर में 600 घंटे तक चलती है। यही सबसे लंबा सेशन रहता है।

चौथी स्टेज : शरीर के अंग म्यूजियम में रखते हैं
बॉडी डिसेक्शन (प्रैक्टिकल) के दौरान स्टूडेंट को एक-एक बॉडी पार्ट्स के बारे में इसी तरह से बताया जाता है। जैसे-जैसे बॉडी के अंग अलग होते हैं, उसे ब्लॉक डिसेक्शन करते हैं। जैसे टेनिस एल्बो (कोहनी) वाला हिस्सा है तो उसे अलग कर बारीकी से स्टूडेंट को समझाते हैं। इसके बाद इसका स्पेसिमेन (अंग) एनाटॉमी विभाग के म्यूजियम में केमिकल के भीतर रख दिया जाता है। स्पेसिमेन में हड्‌डी और मसल्स को अलग नहीं करते हैं। सालों साल ये स्पेसिमेन रखे रहते हैं। जिन्हें बाद में मेडिकल स्टूडेंट या अन्य लोग देख सकते हैं। डेढ़ हजार से ज्यादा स्पेसिमेन फिलहाल इंदौर के MGM कॉलेज के एनाटॉमी डिपार्टमेंट के म्यूजियम में है। यह मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा म्यूजियम है।

इस तरह अलमारी में कांच के अलग-अलग जार में केमिकल में डुबोकर शरीर के अंगों को रखा जाता है। इंदौर के MGM कॉलेज के एनाटॉमी डिपार्टमेंट के म्यूजियम में बॉडी का हर पार्ट रखा हुआ है।

इस तरह अलमारी में कांच के अलग-अलग जार में केमिकल में डुबोकर शरीर के अंगों को रखा जाता है। इंदौर के MGM कॉलेज के एनाटॉमी डिपार्टमेंट के म्यूजियम में बॉडी का हर पार्ट रखा हुआ है।

अब आते हैं हिंदी पर…
इस सवाल का जवाब जानने के लिए दैनिक भास्कर पहुंचा मध्य प्रदेश के सबसे बड़े एमवाय अस्पताल से जुड़े MGM मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. संजय दीक्षित के पास..।

हमने उनसे पूछा कि जब बॉडी का प्रैक्टिकल होगा तो कैसे हिंदी शब्द इस्तेमाल होंगे, कई तरह की तकनीकी टर्म होते हैं? वे कहते हैं कि डेड बॉडी प्रैक्टिकल के दौरान उपयोग होने वाले टेक्निकल टर्म इंग्लिश में ही रहेंगे। बाकी कम्युनिकेशन हिंदी-इंग्लिश दोनों मीडियम में होगा। पढ़ाई के दौरान भी टेक्निकल टर्म वैसे ही यूज होंगे, सिर्फ माध्यम हिंदी हो जाएगा। अब स्टूडेंट्स को हिंदी में बुक मिल जाएगी।

MGM मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ.संजय दीक्षित का कहना है कि नियमानुसार दस स्टूडेंट्स के बीच में एक बॉडी होनी चाहिए। अभी हमारे पास 12 बॉडी उपलब्ध है और अभी हमें 13 बॉडी की आवश्यकता है।

एनाटॉमी डिपार्टमेंट स्थित इस हॉल में स्टूडेंट डेड बॉडी पर प्रैक्टिकल करते हैं। अभी यहां 12 बॉडी हैं। अब प्रैक्टिकल हिंदी में कराए जाएंगे।

एनाटॉमी डिपार्टमेंट स्थित इस हॉल में स्टूडेंट डेड बॉडी पर प्रैक्टिकल करते हैं। अभी यहां 12 बॉडी हैं। अब प्रैक्टिकल हिंदी में कराए जाएंगे।

जब पति की डोनेट बॉडी के पत्नी ने एक साल बाद मांगे अंग…
MGM मेडिकल कॉलेज स्थित एनाटॉमी डिपार्टमेंट के एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि चार-पांच साल पहले एक वाकया हुआ। पति की बॉडी डोनेट करने के बाद एक महिला एक साल बाद वापस कॉलेज आई और बोली कि उन्हें उनके कुछ धार्मिक रीति-रिवाज पूरे करने हैं, जिससे उनके पति को मुक्ति मिल जाएगी। इसके लिए पति की बॉडी का कोई अंग उन्हें चाहिए। ये स्टाफ के लिए भी बहुत चौंकाने वाली बात थी।

महिला को पहले तो समझाइश दी गई कि ऐसा संभव नहीं है, लेकिन वह नहीं मानी। फिर उन्हें बताया गया कि प्रैक्टिकल के बाद कई अंगों के जहां स्पेसिमेन (अलग-अलग नमूने) बना लिए जाते हैं, वहीं हड्‌डी तक संरक्षित हो जाती है। ऐसे में यह बता पाना बहुत मुश्किल है कि किस बॉडी का कौन सा स्पेसिमेन है, तब जाकर वे संतुष्ट हुईं। उन्हें ये भी बताया गया कि उनके पति की बॉडी आखिर तक कितनी काम आई है।

एनाटॉमी डिपार्टमेंट के पास बने म्यूजियम में रखे स्पेसिमेन। यहां दान की हुई डेड बॉडी के अलग-अलग पार्ट्स निकालकर केमिकल में रखे गए हैं।

एनाटॉमी डिपार्टमेंट के पास बने म्यूजियम में रखे स्पेसिमेन। यहां दान की हुई डेड बॉडी के अलग-अलग पार्ट्स निकालकर केमिकल में रखे गए हैं।

सबसे ज्यादा समय चीर फाड़ का ही
MBBS स्टूडेंट को बॉडी प्रैक्टिकल कराने वाले डॉक्टर बताते हैं कि हम स्टूडेंट को हिंदी-इंग्लिश में डिसेक्शन तो पढ़ा देंगे पर यहां कम पड़ रही डेड बॉडी की पूर्ति कैसे होगी ये बड़ा सवाल है। डेड बॉडी पर स्टूडेंट सालभर में 600 घंटे से ज्यादा बार प्रैक्टिकल के दौरान चीर-फाड़ करते हैं। 600 घंटे तो सिर्फ एनाटॉमी सब्जेक्ट के तहत ही बॉडी डिसेक्शन (चीर-फाड़) के हैं।

बाकी के सब्जेक्ट का टाइम अलग है, हालांकि वह ज्यादा नहीं है। सबसे ज्यादा टाइम एनाटॉमी सब्जेक्ट में ही बॉडी डिसेक्शन का है। इस दौरान परत-दर-परत स्टूडेंट एक बॉडी को देखता और उसकी बारीकी समझता है। फर्स्ट ईयर के मेडिकल स्टूडेंट एक साल तक बॉडी का इस्तेमाल करते हैं।

म्यूजियम में स्पेसिमेन के अलावा स्केलेटन भी रखे गए हैं। बॉडी के अलग-अलग पार्ट्स की हड्डियों के बारे में भी मेडिकल स्टूडेंट्स को बताया जाता है।

म्यूजियम में स्पेसिमेन के अलावा स्केलेटन भी रखे गए हैं। बॉडी के अलग-अलग पार्ट्स की हड्डियों के बारे में भी मेडिकल स्टूडेंट्स को बताया जाता है।

अब जान जानिए बॉडी डोनेट (देहदान) की प्रक्रिया
MGM कॉलेज के डीन डॉ.संजय दीक्षित बताते हैं कि देह दान में ये प्रोसेस है कि जो लोग अपनी बॉडी डोनेट करना चाहते हैं वो हमारे यहां एक फॉर्म भरते हैं। फॉर्म भरने में आधार कार्ड, फोटो और दो गवाह की जरूरत पड़ती है। इसके बाद हम संबंधित व्यक्ति को एक कार्ड देते हैं, जो वो अपने पास रखते हैं और मृत्यु के बाद उनकी बॉडी हमारे कॉलेज में डोनेट होती है। ये तो एक तरीका है। दूसरा तरीका है कि अगर फॉर्म नहीं भी भरा है और उसकी या उसके परिवार के नजदीकी यानी पति-पत्नी, बच्चे अगर कहेंगे तो हम बॉडी ले सकते हैं।

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