अग्नि आलोक
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*नाम मिट गया है उसकाभा.ज.पा के पटल से*

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भाजपा के अंधभक्तो को सादर समर्पित

नाम मिट गया है उसका
भा.ज.पा के पटल से

गौरवान्वित होते थे कभी
ये सारे उस अटल से

मर चुका है इन सबकी
आँखों का भी वह पानी

हाशिये पर खड़ा हुआ है
इनका अपना आडवाणी

सम्मान नहीं मिलता है जैसे
घर में बूढ़ी मौसी को

ये भी भूल चुके हैं वैसे
मुरली मनोहर जोशी को

अता पता नहीं पार्टी में
उस नेता जसवंत का

कहीं सूचक तो नहीं
ये भा.ज.पा के अंत का

सावन के अंधों को बस
मोदी ही मोदी दिखता है

चाय बेचने बाले का
करोड़ों में सूट बिकता है

जनता से ये कहते थे
काला धन लाने वाले हैं

थोड़ा सा और सब्र करो
अच्छे दिन आने वाले हैं

हमको क्या पता था कि
ऐसे अच्छे दिन आएंगे

हिलने लगेगी ये धरती
और फांसी किसान लगाएंगे

यूं ही नहीं सब तुमको
फेंकू फेंकू कहते हैं

झूठ की नीव पर बने भवन
चरमरा कर ढहते हैं

बातें करते हो तुम तो
नारी के उत्थान की

खूब पैरवी करते हो
नारी के सम्मान की

लेकिन आज भी नारी की
दोनों आँखें बहती हैं

जुल्म तुम्हारे ही घर में
जशोदा बेन सहती है

पहचान लेते हैं हम तो
उड़ती चिड़िया के पर को

देश को क्या चलाओगे
जब चला सके न तुम घर को

क्षमा करना ,दिल दुखा हो
अगर किसी भी व्यक्ति का

संविधान ने दिया मुझको
अधिकार ये अभिव्यक्ति का….!!!
गोपाल राठी, पीपरिया

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