अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

*स्वघोषित सुरों से सुर नहीं मिलाने पर मूलनिवासी असुर कहे गए*

Share

(नारी पर हाथ नहीं उठाने वाले हमारे पूर्वजों को कायर देवों ने पत्नियों से मरवाया)

       नगमा कुमारी अंसारी 

      एक दैत्य अथवा महान उदार द्रविड़ शासक,जिसने अपने लोगों की लुटेरे-हत्यारे आर्यो से रक्षा की। महिषासुर ऐसे सम्मोहक और आकर्षक व्यक्तित्व का नाम है,जो सहज ही अपनी ओर लोगों को आकर्षित कर लेता है। उन्हीं के नाम पर मैसूर का नाम पड़ा है।

        यद्यपि हिंदू मिथक उन्हें दैत्य के रूप में चित्रित करते हैं, चामुंड़ी द्वारा उनकी हत्या को जायज ठहराते हैं,लेकिन लोकगाथाएं इसके बिल्कुल भिन्न कहानी कहती हैं। यहां तक कि डॉक्टर भीमराव आंबेडकर और बाबा ज्योति राव फूले जैसे क्रांतिकारी चिन्तक भी महिषासुर को एक महान, उदार द्रविडियन शासक के रूप में देखते हैं, जिन्होंने लुटेरे-हत्यारे आर्यों या सुरों से अपनी प्रजा और अपने लोगों की रक्षा किए।

      इतिहासकार विजय महेश कहते हैं कि ‘माही ’शब्द का अर्थ एक ऐसे व्यक्ति से होता है,जो दुनिया में शांति कायम करे। अधिकांश देशों के राजाओं की तरह महिषासुर न केवल विद्वान और शक्तिशाली राजा थे,बल्कि उनके पास 177 बुद्धिमान सलाहकार भी थे। उनका राज्य प्राकृतिक संसाधनों से भरभूर था।

      उनके राज्य में होम या यज्ञ जैसे विध्वंसक, व्यर्थ के धार्मिक अनुष्ठानों  के लिए कोई जगह नहीं थी। उनके राज्य में कोई भी व्यक्ति अपने भोजन,आनंद या धार्मिक अनुष्ठान के लिए मनमाने तरीके से अंधाधुंध जानवरों की हत्या नहीं सकता था। सबसे बड़ी बात यह थी कि उनके राज्य में किसी को भी निकम्मे तरीके से जीवन जीने की बिल्कुल इजाजत नहीं थी। 

      पर्यावरण के इतने हितैषी कि उनके राज्य में मनमाने तरीके से कोई पेड़ नहीं काट सकता था। पेड़ों को काटने से रोकने के लिए उन्होंने बहुत सारे लोगों को नियुक्त कर रखा था।

            विजय दावा करते हैं कि महिषासुर के राज्य के बहुत से लोग धातु की ढलाई की तकनीक के बहुत अच्छे विशेषज्ञ थे। इसी तरह की राय एक अन्य इतिहासकार एम.एल.शेंदज प्रकट करती हैं,उनका कहना है कि इतिहासकार विंसेन्ट ए स्मिथ अपने इतिहास ग्रंथ में कहते हैं कि भारत में ताम्र-युग और प्रागैतिहासिक कांस्य युग में औजारों का प्रयोग बहुतायत तौर पर होता था। महिषासुर के समय में पूरे देश से लोग,उनके राज्य में हथियार खरीदने आते थे। 

       ये हथियार बहुत उच्च गुणवत्ता की धातुओं से बने होते थे। लोककथाओं के अनुसार महिषासुर विभिन्न वनस्पतियों और पेड़ों के औषधि गुणों को बहुत सूक्ष्मता से जानते थे और वे व्यक्तिगत तौर पर इसका इस्तेमाल अपने लोगों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए करते रहते थे। क्यों और कैसे इतने अच्छे और शानदार राजा को खलनायक बना दिया गया ? 

      इस संदर्भ में सबल्टर्न संस्कृति के लेखक और शोधकर्ता योगेश मास्टर कहते हैं कि “इस बात को समझने के लिए सुरों और असुरों की संस्कृतियों के बीच के संघर्ष को समझना पडे़गा। ”वे कहते हैं कि जैसा कि हर कोई जानता है कि असुरों के महिषा राज्य में बहुत भारी संख्या में भैंसे थीं। आर्यों की चामुंडी का संबंध उस संस्कृति से था, जिसका मूल धन गाएं थीं। जब इन दो संस्कृतियों में संघर्ष हुआ,तो महिषासुर की पराजय हो गई और उनके लोगों को इस क्षेत्र से भगा दिया गया।कर्नाटक में न केवल महिषासुर का शासन था, बल्कि इस राज्य में अन्य अनेक असुर शासक भी थे। 

        इसकी व्याख्या करते हुए विजय कहते हैं कि “1926 में मैसूर विश्वविद्यालय ने इंडियन इकोनामिक कांफ्रेंस के लिए एक पुस्तिका प्रकाशित की थी,जिसमें कहा गया था कि कर्नाटक राज्य में असुर मुखिया लोगों के बहुत सारे गढ़ और राज्य थे। उदाहरणार्थ गुहासुर के अपने राज्य जिसकी राजधानी हरिहर थी,पर राज्य करते थे। हिडिम्बासुर चित्रदुर्ग और उसके आसपास के क्षेत्रों पर शासन करते थे। बकासुर रामनगर के राजा थे। यह तो सबको पता है कि महिषासुर मैसूर के राजा थे। 

      यह सारे तथ्य यह बताते हैं कि आर्यों के आगमन से बहुत पहले इस पूरे क्षेत्र पर देशज असुरों का राज था। आर्यों ने उनके राज्य पर कब्जा कर लिया।”  

      डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने भी पाखंडवादी मिथकों के इस चित्रण का पुरजोर खण्डन किया है कि असुर दैत्य थे। आंबेडकर ने अपने एक निबंध में इस बात पर जोर देते हैं कि “महाभारत और रामायण में असुरों को इस प्रकार चित्रित करना पूरी तरह गलत है कि वे मानव-समाज के सदस्य ही नहीं थे। 

       असुर मानव समाज के ही सदस्य थे। ”आंबेडकर पाखंडियों और धूर्तों का इस बात के लिए उपहास उड़ाते हैं कि उन्होंने अपने देवताओं को दयनीय कायरों के एक समूह के रूप में प्रस्तुत किया है। वे कहते हैं कि हिंदुओं के सारे मिथक यही बताते हैं कि असुरों की हत्या विष्णु या शिव द्वारा नहीं की गई है,बल्कि उनकी हत्या देवियों ने किया है। 

       यदि दुर्गा या कर्नाटक के संदर्भ में चामुंडी ने महिषासुर की हत्या की,तो काली ने नरकासुर को मारा। जबकि शुंब और निशुंब असुर भाईयों की हत्या दुर्गा के हाथों हुई। वाणासुर को कन्याकुमारी ने मारा। एक अन्य असुर रक्तबीज की हत्या देवी शक्ति ने की। डॉक्टर भीमराव आंबेडकर तिरस्कार के साथ कहते हैं कि “ऐसा लगता है कि भगवान लोग असुरों के हाथों से अपनी रक्षा खुद नहीं कर सकते थे,तो उन्होंने अपनी पत्नियों को अपने आप को बचाने के लिए भेज दिया।”            

    आखिर क्या कारण था कि सुरों मतलब देवताओं ने हमेशा अपनी महिलाओं को असुरों राजाओं की हत्या करने के लिए भेजा ? इसके कारणों की व्याख्या करते हुए विजय बताते हैं कि “देवता यह अच्छी तरह जानते थे कि असुर राजा कभी भी महिलाओं के खिलाफ अपने हथियार नहीं उठायेंगे।

       इनमें से अधिकांश महिलाओं ने असुर राजाओं की हत्या कपटपूर्ण तरीके से की है। अपने शर्म को छिपाने के लिए भगवानों की इन हत्यारी बीवियों के दस हाथों, अदभुत हथियारों इत्यादि की कहानी गढ़ी गई। ये सब पाखंडभरी कहानियां नाटक-नौटंकी के लिए तो अच्छी हैं,लेकिन अंसभव सी लगने वाली इन कहानियों से हट कर हम इस सच्चाई को देख सकते हैं कि कैसे पाखंडवादी वर्ग ने देशज लोगों के इतिहास को तोड़ा मरोड़ा।

       इतिहास को इस प्रकार तोड़ने मरोड़ने का उनका उद्देश्य अपने स्वार्थों की पूर्ति करना था। केवल बंगाल या झारखण्ड में ही नहीं,बल्कि मैसूर के आस-पास भी कुछ ऐसे समुदाय रहते हैं, जो चामुंडी को उनके महान उदार राजा की हत्या के लिए दोषी ठहराते हैं।  (स्रोत : गौरी लंकेश का चिंतन, जिनकी हत्या पाखंड- पोषकों ने करवाई)

Add comment

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें