अग्नि आलोक
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 *अनाड़ी है जो ना समझे*

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शशिकांत गुप्ते इंदौर

आज जब मै सीतारामजी ने मिलने गया,तब वे उर्दू भाषा में रचित निम्न दार्शनिक रचना पढ़ रहे थे।
फ़ख़र बकरे ने किया मेरे सिवा कोई नहीं
मैं ही मैं हूं इस जहां में, दूसरा कोई नहीं
मैं मैं जब ना तर्क की उस महवे-असबाब ने
फेर दी चल कर छुरी गर्दन पे तब कस्साब ने
ख़ून – गोश्त – हड्डियां – जो कुछ था जिस्मे सार में
लुट गया कुछ पिस गया कुछ बिक गया बाज़ार में
रह गईं आंतें फ़क़त मैं – मैं सुनाने के लिए
ले गया नद्दाफ उसे धुनकी बनाने के लिए
ज़र्ब के झोंकों से जब वो आंत घबराने लगी
मैं में के बदले तू हीं तू हीं की सदा आने लगी

सीतारामजी ने मुझे रचना में लिखे उर्दू शब्दों का अनुवाद सुनाया।
फ़ख़र (फख्र)= घमंड
महवे-असबाब=स्वयं तल्लीन
कस्साब= कसाई
नद्दाफ= कपड़े की कंघी,पिंजारे की धुनकनी
ज़र्ब = जोर का झटका
सीतारामजी ने मुझे उक्त दार्शनिक रचना का भावार्थ भी समझाया।
रचना कार कहता है कि, घमंड से बकरा यूं बोला मैं ही मैं इस दुनिया में। घमंड में लीन बकरा यह कहावत भूल जाता है,बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी
बकरे के सारे अवयय बिक जातें हैं।
बकरे की आंतें (Intestines) रूई धुनकने वाला पिंजारा खरीदता है।
वह आंतों की धुनकनी बनता है।
आगे रचना कार कहता है। जोर के झटके से जब आंत घबराने लगती है,तब मैं ही मैं ही के बदले तू हीं तू हीं की आवाज आने लगी।
अर्थात आंतें चीख चीख कर कहती है मैं मैं नहीं ईश्वर तू हीं तू है।
इसीलिए कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए। अहंकार का परिणाम क्या होता है,यह निम्न सुविचार में प्रकट किया है।
अहंकार में तीनों गए बल, बुद्धि और वंश,
ना मानो तो देख लो कौरव, रावण और कंस
अहंकार एक दुर्गुण है। जो व्यक्ति अहंकार करता है,वह अहंकार की आड़ में अपनी नाकामियाबियों को छिपाने की कोशिश ही तो करता है।
ऐसे व्यक्ति पर निम्न कहावत सटीक बैठती है।
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना
अहंकार तानाशाह प्रवृत्ति का पर्यायवाची है।
कारण तानाशाह प्रवृत्ति भी तो सबसे बड़ा दुर्गुण ही है।
तानाशाह प्रवृत्ति को समझने के लिए,प्रख्यात शायर अकबर इलाहाबादी के इस शेर का अर्थ समझना जरूरी है।
हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं

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