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जो चुनाव सॉफ्टवेयर को मैनिपुलेट करेगा वही तय करेगा कि देश पर शासन कौन करेगा’

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गिरिश मालवीय 

जो चुनाव सॉफ्टवेयर को मैनिपुलेट करेगा वही तय करेगा कि देश पर शासन कौन करेगा’

यह कहना है नीदरलैंड के मशहूर आईटी एक्सपर्ट रूवॉफ का ……

पोस्ट लंबी जरूर है लेकिन एक बार अंत तक पढ़ लीजियेगा और हो सके तो शेयर भी कर दीजियेगा, ……..

रूवॉफ  एक एथिकल हैकर हैं कुछ साल पहले स्थानीय टीवी चैनल आरटीएल के लिए उन्होंने चुनाव सॉफ्टवेयर ओएसवी की जांच की और एक ही शाम में 26 खामियों का पता कर लिया,

वैसे एक अन्य हैकर रोप गोंगग्रिप ने दस साल पहले साबित कर दिया था कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को टेंपर किया जा सकता है और स्वतंत्र जांचकर्ताओं को इसका पता नहीं नहीं चलेगा

 उसके बाद से ही नीदरलैंड फिर से चुनाव की परंपरागत विधि पर वापस लौट आया है नीदरलैंड में  इसी 15 मार्च को संसदीय चुनाव की वोटिंग लाल पेन और कागज से हुई । पूरे देश के मतदान केंद्रों पर लाखों लाल पेन रखे गए और लाल पेन से ही वोटरों ने अपना वोट दिया है……………..

लेकिन अब भी हम बस आँख मूंद कर बैठे हुए है …….. हम लगभग 99 प्रतिशत बूथों पर बिना  vvpat मशीनों के चुनाव भी करवा रहे है तो भी हम अपने आपको सबसे सही मानते है …………..

ऐसा नही है कि दो दिन पहले सामने आयी भिंड वाली घटना कोई पहली घटना थी…………..

असम के जोरहाट जिले में साल 2014 में एक ऐसी वोटिंग मशीन पकड़ी गई थी जिसमें आप किसी को भी वोट डालें, लेकिन वोट, केवल बीजेपी के खाते में ही काउंट होता था।

इसके पिछले वाले चुनाव के दौरान भी इलाहबाद की “सोरांव” विधानसभा पर उस समय एक हैरतअंगेज़ वाक्या सामने आया कि जब चेकिंग के दैरान यह पता चला कि एक बूथ पर 11 बजे 2699 वोट पड़ चुके हैं जबकि उस बूथ पर कुल वोटो की संख्या मात्र 1080 थी………….

अब आते है ताजा हालात पर, यहाँ evm की गड़बड़ी का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है भिंड मे चुनाव अधिकारियो व्दारा पत्रकारों के सामने इन evm मशीनों की गड़बड़ी फिर एक बार कैमरे मे कैद हुई है 

और आप ध्यान दीजिए क़ि , यह गड़बड़ी सिर्फ इसलिए पकड़ी जा सकी क्यों क़ि वहा vvpat मशीनों पर डेमो दिखाया जा रहा था, यानि जहा vvpat मशीने नही लगी है वहा का तो चुनाव परिणाम केवल भगवान ही जानता है…………..

अगर इस गड़बड़ी का पता लगाना है तो हमे यह समझना होगा क़ि ईवीएम मशीनों को बनाता कौन है? यह कार्य इलेक्ट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड करती है …………..और ध्यान दीजियेगा क़ि यह कंपनियां अपना काम चुनाव आयोग के अन्तर्गत न करके केंद्र सरकार के अंतर्गत काम करती हैं………….. चुनाव आयोग ने कहा है कि 1990 में और 2006 में उसने एक्सपर्ट्स से इसकी जांच करवाई है।जब मैंने उस जांच के बारे में पढ़ा तो बड़ी ही हैरान करने वाली जानकारियां मिली क्योंकि निर्माता कंपनी ने मशीन के सोर्स कोड तो एक्सपर्ट्स कमेटी के साथ साझा ही नहीं किये और न ही एक्सपर्ट्स को कंप्यूटर का कोई खासा ज्ञान था। अब सवाल यहाँ पर यह उठता है कि बिना सोर्स कोड के एक मशीन के सॉफ्टवेयर की अच्छे तरीक़े से जांच कैसे की जा सकती है…………

ईवीएम का सॉफ्टवेयर कोड वन टाइम प्रोग्रामेबल नॉन वोलेटाइल मेमोरी के आधार पर बना है  यदि किसी से छेड़छाड़ करनी हो तो उसे केवल निर्माता से कोड हासिल होगा। ईवीएम का सॉफ्टवेयर अलग से रक्षा मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा मंत्रालय के यूनिट बनाते है और यह भी केंद्र सरकार के अधीन है

यदि इन सॉफ्टवेयर का सोर्स कोड यदि मालुम हो तो एक विशेष प्रकार का लूप प्रोग्राम डालकर पहले 500 या हजार वोट के सही होने और बाद मे अपनी मर्जी के हिसाब से चलने को निश्चित किया जा सकता है…………

लेकिन हां यदि vvpat मशीन लगी हो तो ऐसा किया जाना मुश्किल है………क्योकि मतदाता को अपनी पर्ची 7 सेकण्ड के लिए जरूर नजर आएगी………..

तो क्या यही वजह है कि सरकार चुनाव आयोग की इस मांग पर ध्यान नही दे रही है क्योंकि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से हर बूथ पर वीवीपीएटी की व्यवस्था करने को कहा था. चुनाव आयोग ने तब कहा था कि वो 2019 के आम चुनावों तक ये काम पूरा कर लेगा. सुप्रीम कोर्ट में आयोग के खिलाफ इसी मामले को लेकर अवमानना की सुनवाई चल भी रही है. पैसा मिलने में देरी को लेकर चुनाव आयोग सरकार को जून 2014 के बाद से दस रिमाइंडर भेज चुका है. इसके अलावा अक्टूबर 2016 में मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी सीधे प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख कर इस ओर ध्यान देने के लिए कह चुके हैं. ज़ैदी ने एक लेटर 10 जनवरी 2017 को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को भी लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि अगर फरवरी 2017 तक वीवीपीएटी के ऑर्डर नहीं दिए जाते, तो सितंबर 2018 तक उनका प्रॉडक्शन नहीं हो पाएगा, लेकिन कोई कार्यवाही नही हुई है, ……….

मुझे नही लगता कि इस विषय पर और कुछ लिखने की जरूरत बची है………………….

( पुनश्च: यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन और भारत के कुछ वैज्ञानिकों ने एक एथिकल हैकिंग करने वाले बन्दे के साथ मिलकर एक रिसर्च पेपर पब्लिश किया था जिसमे उन्होंने निष्कर्ष निकाला था कि बहुत आसानी से वोटिंग मशीन की सिक्योरिटी को ध्वस्त करके चुनाव परिणामों को प्रभावित किया जा सकता है,…………

इस पोस्ट पर बहुत से ऐसे विशेषज्ञ भी आकर अपना ज्ञान प्रदर्शित करेंगे जो स्वयं चुनाव में प्रत्यक्ष योगदान दे चुके है,या चुनाव प्रक्रिया के बड़े पंडित है यदि अब भी उन्हें संदेह हो तो अपना मेल id कॉमेंट बॉक्स में देने की कृपा करे मै उन्हें वह पेपर पीडीऍफ़ फॉर्मेट मे मेल कर दूँगा…………..

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