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भाजपाई गौ-रक्षा के पाखंड का असली मक़सद 

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        पुष्पा गुप्ता 

भाजपा व संघ परिवार की साम्प्रदायिक फ़ासीवादी व धार्मिक कट्टरपन्थी राजनीति का एक अहम पहलू गोरक्षा के नाम पर की जा रही गुण्डागर्दी है, जिसके ज़रिये व्यापक हिन्दू जनता में धार्मिक कट्टरपन्थ और उन्माद भड़काया जाता है ताकि वह अपनी असली समस्याओं पर न सोच सके। एक तरफ़ उत्तर भारत में भाजपा-संघ व इसके अनुषांगिक संगठनों से जुड़े लोग गोरक्षा के नाम पर मुसलमानों की हत्या करते हैं। 

      दूसरी तरफ़ जहाँ ‘गोरक्षा’ की साम्प्रदायिक राजनीति से इन्हें फ़ायदा नहीं होता, वहाँ इन्हें बीफ़ खाने वालो तक से कोई दिक्कत नहीं होती है। हाल ही में नगालैण्ड सरकार ने 28 सितम्बर को कोहिमा में गौ-महासभा’ को अनुमति नहीं देने का फ़ैसला किया है। भाजपा ने भी प्रस्तावित कार्यक्रम की निंदा की। 

      असल में भाजपाइयों को पता है कि नगालैण्ड व उत्तर-पूर्वी भारत में वह जनता के हाथों अपने नेताओं को पिटवाने पर मजबूर होगी यदि वह बीफ़ बैन की बात करेगी। वहाँ उसका चुनाव में एक भी वोट पाना मुश्किल हो जायेगा। इसलिए उत्तर-पूर्वी राज्यों में भाजपा बीफ़ बैन के विरोध में रही है। वहाँ से भाजपा नेताओं के बीफ़ के समर्थन में पहले भी कई बयान आते चुके हैं। 

      भाजपा के नेता विसासोली ल्होंगू ने कहा था कि नगालैण्ड में कभी भी बीफ़ बैन नहीं लगेगा। यहाँ जिसको जो खाना है, वह खाने की पूरी आज़ादी होगी! भाजपा नेता व मणिपुर के मुख्यमन्त्री बिरेन सिंह ने कहा कि मणिपुर में बीफ़ खाने पर कोई रोक नहीं, क्या खाना है यह सबका व्यक्तिगत मसला है। 

       केरल में भी भाजपा बीफ़ का समर्थन करती रही है। केरल में मलप्पुरम में उम्मीदवार भाजपा नेता श्रीप्रकाश ने वायदा किया था कि वहाँ वह बीफ़ की सप्लाई को कम नहीं होने देंगे और बीफ़ के उपभोग पर कभी रोक नहीं लगायी जायेगी। बताते चलें कि केरल में स्वयं हिन्दू आबादी का बड़ा हिस्सा बीफ़ खाता है और यह वहाँ की हिन्दू धार्मिक परम्पराओं का सदियों से हिस्सा रहा है।

      इन सबसे यही सवाल निकल कर आता है कि अगर भाजपा गाय को ‘माता’ मानती है, तो वह गोवा, केरल और उत्तर-पूर्व के राज्यों में ‘माता’ क्यों नहीं है? क्या गाय केवल उत्तर-भारत में भाजपा की माता है? अगर गाय माता है तब तो वह सारे देश में ही माता होनी चाहिए न! 

    लेकिन इसको लेकर हिन्दू-मुसलमानों में सिर-फुटौव्वल करवाना और ग़रीब मुसलमानों की संघियों की गुण्डा-वाहिनियों द्वारा हत्याएँ करवाना मुख्यत: उत्तर व पूर्वी भारत तथा कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि में ही क्यों होता है? क्या गाय उत्तर-भारत से पूर्वोत्तर भारत में जाते–जाते भाजपा के लिए ‘मम्मी’ से ‘यम्मी’ बन गयी? वहाँ वह पवित्र पशु नहीं रह गयी? सच्चाई यह है कि गाय भाजपा के लिए कोई पवित्र पशु नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक पशु है, जिसको लेकर धार्मिक भावनाओं को उभाड़ा जाये और हिन्दू-मुस्लिम दंगे और मॉब लिंचिंग का माहौल पैदा किया जाये, ताकि चुनावों में वोटों की फसल काटी जा सके।

खान-पान, पहनावा, रहन-सहन लोगों का व्यक्तिगत मसला है और इसमें किसी पार्टी या सरकार को दख़ल देने का कोई हक़ नहीं। भाजपा की मोदी सरकार और संघ परिवार को पता है कि वह जनता से महँगाई, बेरोज़गारी, ग़रीबी, भुखमरी कम करने पर, पूँजीपतियों की लूट पर लगाम लगाने आदि को लेकर तो वोट माँग नहीं सकते हैं! तो फिर क्या किया जाये? जनता को जाति-धर्म पर लड़वाया जाये! 

      आज जब जनता मोदी-शाह की फ़ासीवादी सत्ता की जनविरोधी और पूँजीपरस्त नीतियों  के कारण बेरोज़गारी, ग़रीबी, भुखमरी, महँगाई, बेघरी और पहुँच से दूर होती शिक्षा और चिकित्सा से तंगहाल है तो फिर से इन फ़र्ज़ी मसलों को हवा दी जा रही है, दंगाई राजनीति की आग में घी डाला जा रहा है, ताकि हम और आप अपने असली दुश्मन, यानी पूँजीवादी व्यवस्था, पूँजीपति वर्ग और आज उसकी प्रमुख तौर पर नुमाइन्दगी कर रहे संघी फ़ासीवाद और मोदी-शाह सत्ता को निशाना बनाने की बजाय, आपस में ही लड़ मरें।

       अगर हम इस साज़िश के फिर से शिकार होते हैं, तो हमसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं होगा। अगर हम इन सवालों पर नहीं सोचेंगे तो अपने ही भाइयों-बहनों का ख़ून बहाते रहेंगे, जबकि हमारे ख़ून और आँसुओं के समन्दर में हर मज़हब और जाति के लुटेरों, शोषकों और शासकों की ऐय्याशी की मीनारें खड़ी होती रहेंगी।

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