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“नकली घी निर्माण की असली कथा संदर्भ: तिरूपति के लड्डू”

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– वीरेंद्र भदौरिया”

तिरुपति बालाजी मंदिर में बनने वाले प्रसाद के लड्डुओं में प्रयुक्त घी में विभिन्न प्रकार की चर्बी की मिलावट के शोरगुल के बीच, देशी घी के कारोबार में भारतवर्ष में अव्वल ग्वालियर की चर्चा न होना इस ऐतिहासिक शहर के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। आज यहां के देशी घी के कारोबारी गर्व के साथ यह कह सकते हैं कि वे अपने घी में चर्बी मिलाने का पाप नहीं करते हैं। भीषण मंहगाई के जमाने में खाद्य तेल के भाव से शुद्ध देशी घी उपलब्ध कराकर राष्ट्र की महती सेवा करने वाले व्यवसायियों को अब तक पद्म पुरस्कारों से नवाजा न जाना इस कला व कलाकारों का अपमान है।

दूध या मक्खन के बिना देशी घी तैयार करने की कला का कापीराइट ग्वालियर के पास है। ग्वालियर शहर के प्राचीन दाल बाजार में मैना वाली गली नामक स्थान देश के नकली घी की सबसे बड़ी मंडी है। जिस तरह देश के अधिकांशतः ख्यातनाम कैंसर विशेषज्ञ टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल मुंबई से प्रशिक्षित होकर निकले हैं, उसी तरह से नकली घी बनाने की महान कला का राष्ट्रीय प्रशिक्षण केन्द्र इसी संकरी सी मैनावाली गली को समझना चाहिए। नकली घी बनाने व बेंचने वाले ” सौजन्य से सब खुश रहते हैं”,इस मंत्र के शब्दार्थ व भावार्थ बखूबी समझते हैं, इसलिए वे अफसरों का और अफसर उनका पूरा ख्याल रखते हैं, पर कभी-कभार टेढ़े दिमाग के अफसरों की पोस्टिंग होने पर जमा जमाया खेल बिगड़ जाता है।

ग्वालियर में एक सख्त और ईमानदार कलेक्टर के पदस्थ होते ही घी कारोबारी तनाव में आ गए,सो मैना वाली गली में सन्नाटा पसरा गया, और घी कारोबारी आस-पास के जिलों में ठिकाना बनाने लगे। ऐसे ही एक कारोबारी (घटना अक्षरशः सत्य है,पर नाम लिखना इसलिए उचित नहीं है कि वे दोषमुक्त करार दिए जा चुके हैं, इसलिए मानहानि का दावा करने के अधिकारी हैं) ने ग्वालियर जिले की सीमा से संटे मुरैना जिले के औद्योगिक क्षेत्र बानमौर की एक वर्षों से बंद पड़ी फैक्ट्री में नकली देसी घी बनाने का काम शुरू कर दिया। तत्कालीन थाना प्रभारी बानमौर (टीआई) श्री गुर्जर को सूचना मिलने पर उन्होंने दबिश दी तो कारोबारी ने साफ लफ्जों में बता दिया कि हमारी ऊपर तक सेटिंग है। आप अभी पांच लाख रखिए , आगे आपको हर महीने देते रहेंगे,ज्यादा चाहिए तो बताओ,पर हमारे आड़े न आएं, आपके लिए यही अच्छा रहेगा।

टीआई ने पैसे लेने से मना कर दिया, और चुपचाप वापस लौट आए‌। टीआई ने अपने एसपी साहब को अवगत कराया, उन्होंने कहा कि उक्त व्यापारी, कलेक्टर साहब का खास आदमी है, इसलिए उस पर हाथ डालना ठीक न रहेगा। ईमानदार अधिकारी उल्टी खोपड़ी के होते हैं, सो टी आई जी से चैन नहीं पड़ी, उन्होंने अपने इलाके में चल रहे अवैध कारोबार को रोकने के लिए दूसरा रास्ता तलाश लिया। अगले दिन टीआई हमारे ग्वालियर आफिस आए, चलित माल वाहनो की चेकिंग में उनका सहयोग मिलता था, इसलिए जान पहचान थी, और उन्हें यह भरोसा भी था कि, वाणिज्यिक कर विभाग की जांच यूनिट किसी तरह के दबाव में आए बगैर कार्यवाही कर सकती है, उनसे नकली घी फैक्ट्री की सूचना मिलने के बाद छापे की कार्यवाही की गई, आयकर विभाग को भी सूचित किया गया, कुछ समय बाद उनके अधिकारी भी मौके पर आ गए।

छापा दल के फैक्ट्री में प्रवेश करते ही कारोबारी पिछले दरवाजे से भाग गया, किंतु प्रोडक्शन मैनेजर जितेंद्र कुशवाह व अन्य कर्मचारी मौजूद रहे। जांच व तलाशी के दौरान बड़ी मात्रा में कर-चोरी से संबंधित खरीद बिक्री के कागजात मिले तथा करीब 75 लाख का नकली घी का स्टाक पाया गया। कच्चे मालों के रूप में प्रयुक्त होने वाला सैकड़ों टिन बनस्पति तेल,देशी घी का एसेंस, खाली टिन व पैकिंग मटेरियल मिला। प्रोडक्शन मैनेजर जितेंद्र कुशवाह ने अपने लिखित बयान में यह स्वीकार किया गया कि, फैक्ट्री में बनस्पति तेल में देशी घी का एसेंस डालकर विभिन्न ब्रांड के शुद्ध देशी घी का निर्माण किया जाता है।

व्यवसाय स्थल पर एक बूंद दूध व मख्खन नहीं मिला। मशीन के नाम पर कड़ाहे, भट्टी, स्टोरेज टैंक व पैकिंग मशीन मात्र थी। टैक्सेशन विभाग का क्षेत्राधिकार केवल टैक्स चोरी तक सीमित होता है, उसके पास खाद्य पदार्थों में मिलावट या नकली घी बनाने बेंचने पर कार्यवाही का अधिकार नहीं है, इसलिए इस पर सैंपलिंग व अग्रिम उचित कार्यवाही हेतु कलेक्टर मुरैना से दूरभाष पर अनुरोध किया गया, उनके द्वारा आश्वस्त किया गया कि, जल्द ही खाद्य सुरक्षा विभाग के अधिकारी जांच स्थल पर पहुंच जाएंगे,बानमौर से मुरैना की दूरी बमुश्किल 15 किलोमीटर है, हाईवे होने से अधिकतम 30 मिनट में पहुंचा जा सकता है, लेकिन हम सब साढ़े तीन घंटे तक प्रतीक्षा करते रहे,इस बीच कलेक्टर साहब से तीन बार पुनः निवेदन किया गया,उनकी खीझ भरी प्रतिक्रिया असलियत बयां कर रही थी।

मुरैना जिले के सुनसान इलाके में रात के समय सुरक्षा संबंधी दिक्कतों का हवाला भी दिया गया। अंततः खाद्य विभाग के अधिकारी आए, सबके सामने नकली घी के सैंपल शीशियों में भर कर वे रवाना हो गए। फैक्ट्री सील कर उसमें नकली घी निर्माण होने की गतिविधि का हवाला देते हुए टीआई से जब्त शुदा माल सहित फैक्ट्री परिसर की सुरक्षा का अनुरोध किया गया। कर्तव्यनिष्ठ व ईमानदार टीआई ने फैक्ट्री की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था तो सुनिश्चित की ही साथ ही व्यवसाय मालिक (जो ग्वालियर के बहुत धनाढ्य कारोबारी हैं) व उनके पुत्र को देर रात गिरफ्तार कर लिया। जिला न्यायालय से जमानत याचिका खारिज होने पर मामला उच्च न्यायालय के सामने पहुंचा। शासन की पैरवी कर रहे अपर महाधिवक्ता ने माननीय न्यायालय से अनुरोध किया कि उक्त जब्त नकली घी की सैंपलिंग खाद्य सुरक्षा विभाग द्वारा की गई है, इसलिए प्रयोगशाला से जांच रिपोर्ट आने तक सुनवाई टाल दी जाए, माननीय न्यायालय ने अगली पेशी नियत कर दी। अगली पेशी में खाद्य अधिकारी ने प्रयोगशाला से प्राप्त जांच रिपोर्ट पेश की, जिसमें यह साफ-साफ लिखा गया था कि, संकलित नमूना का असली घी का है, उसमें किसी तरह की मिलावट नहीं पाई गई है।

जांच रिपोर्ट देखकर न्यायालय ने जमानत मंजूर करते हुए संबंधित पुलिस अधिकारी (टीआई) द्वारा शहर के प्रतिष्ठित व्यक्ति को बेवजह गिरफ्तार करने पर गहरी नाराजगी दर्शाते हुए अगली पेशी पर टीआई को व्यक्तिश: उपस्थित होकर गिरफ्तारी का कारण स्पष्ट करने का निर्देश दिया गया, ताकि उनका पक्ष सुनने के पश्चात सजा मुकर्रर की जा सके। नौकरी पर आसन्न संकट से हैरान, परेशान व घबराए हुए टीआई साहब अगले दिन हमारे दफ्तर आए, तथा छापे की कार्यवाही से संबंधित विभाग द्वारा तैयार प्राथमिक प्रतिवेदन की प्रति उपलब्ध कराने का आग्रह किया गया ताकि वे अपना बचाव कर सकें। वाणिज्यिक कर विभाग द्वारा अपर महाधिवक्ता महोदय को भी सभी तथ्यों से अवगत कराया गया। उक्त प्राथमिक प्रतिवेदन, विशेष रूप से प्रोडक्शन मैनेजर जितेंद्र कुशवाह के बयान व जब्ती मेमो से टीआई साहब का संकट टला। इस सत्य कथा से मिले निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:- (1) बड़ा हाकिम बड़े आराम से अपना ईमान बेंच देता है, और एक कनिष्ठ अधिकारी ईमानदारी के उसूल के लिए खुद को जोखिम में डाल देता है।

(2) सैंपल बदल कर नकली माल को असली साबित करना मुश्किल काम नहीं है। (3) पूरे देश में नकली घी का कारोबार चोरी छिपे नहीं होता है, अपितु खुल्लम खुल्ला धड़ल्ले से चल रहा है, इसके कारोबारियों को सत्तारूढ़ दल व बड़े अफसरों का पूरा संरक्षण मिलता है, छोटा-मोटा अफसर इनके ऊपर हाथ नहीं डाल सकता है, इसलिए या तो वह चुप रहे या होटल के बेयरे की तरह मिलने वाली छोटी टिप स्वीकार कर ले। (4) यदि नेतागण,मिलावटखोरों को संरक्षण देना बंद कर दें और अफसर बेखौफ होकर कार्यवाही करें तो मिलावट व नकली खाद्य पदार्थों के कारोबार पर नकेल कसी जा सकती है। न नौ मन तेल होगा और न राधा जी नाचेंगी। तिरुपति मंदिर के प्रसाद बनाने में प्रयुक्त कथित शुद्ध देशी घी में चर्बी की मिलावट होने पर ताज्जुब नहीं होना चाहिए,यह काम दशकों पहले से चल रहा है, केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय व कस्टम सेंट्रल एक्साइज विभाग को देश के बाहर से आयातित होने वाले बटर आयल, चर्बी व फैट की पूरी जानकारी रहती है, देश के भीतर चमड़ा उद्योग से निकलने वाली तथा विभिन्न तरीकों से बनाई जाने वाली चर्बी का इस्तेमाल कहां होता है?

बहरहाल आज की कहानी का नायक कलेक्टर है या टीआई? यह फैसला पाठकों पर छोड़ा जा रहा है। इस घटना के बाद टीआई साहब से दुबारा कभी मुलाकात नहीं हुई,पर अखबारों के जरिए कलेक्टर साहब को तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते व बड़े नेताओं के बगलगीर होते देखने का सौभाग्य हाल तक मिलता रहा। कलेक्टर साहब बड़े हाकिम रहे हैं, रिटायरमेंट इंज्वॉय कर रहे हैं,पर मुझे अक्सर उन ईमानदार टीआई की याद आती है, उन्हें सैल्यूट।

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