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हिंदुत्ववादियों की मुसलमान विरोध की हकीकत

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मुनेश त्यागी 

    भारत के वर्तमान चुनावों में भाजपा सत्ताधारियों द्वारा मुसलमानों पर तरह-तरह के हमले किए जा रहे हैं, उनके बारे में अफवाहें फैलाई जा रही हैं, गरीब मुसलमान को दिए गए आरक्षण के प्रावधानों का विरोध किया जा रहा है, उन्हें घुसपैठिया बताया जा रहा है। इन चुनावों में जनता द्वारा सामना की जा रही मूलभूत समस्याओं जैसे रोजगार शिक्षा स्वास्थ्य भ्रष्टाचार महंगाई बेरोजगारी गरीबी पर सत्ताधारी दल द्वारा कोई चर्चा नहीं की जा रही है, जनता के इन मुख्य मुद्दों पर कोई बहस नहीं हो रही है।

      जबकि दूसरी ओर अधिकांश विपक्षी दलों द्वारा बनाए गए इंडिया गठबंधन ने जनता से उसके बुनियादी सवालों पर बहस की है और अपनी चुनावी सभाओं में उन पर गहनता से विचार विमर्श किया है और उन पर सटीक बहस की है। इन जन समर्थन मुद्दों को जोरदार तरीके से उठाये जाने के कारण इंडिया गठबंधन चुनाव दर चुनाव जनता में अपनी पैंठ बढाता जा रहा है जबकि एनडीए गठबंधन अपने सांप्रदायिक मुद्दों की वजह से जनता में हास्य का पात्र बनता जा रहा है।

      यहां पर मुख्य सवाल उठता है कि आखिर हिंदुत्ववादी ताकतें जिनका नेतृत्व प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह और उनके दूसरे नेता कर रहे हैं, वे मुसलमान पर किए जा रहे झूठ हमले में उलझ कर क्यों रह गए हैं? क्या उनके पास मुसलमान के अलावा जनता के और मुद्दे ही नहीं है? इसका मुख्य कारण यह है कि पिछले 118 साल से जनता में हिंदू और मुस्लिम की साम्प्रदायिक राजनीति मुख्य रूप से काम कर रही है।

     अंग्रेजों ने 1857 के भारत की जनता के महासंग्राम की महान विरासत हिंदू मुस्लिम एकता से घबराकर अपने राज्य को कायम रखने के लिए अपनी “बांटो और राज करो” की नीति को जोरदार तरीके से बढ़ाया। 1906 और 1907 में उन्होंने हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की स्थापना की। उसके बाद 1925 में आरएसएस की स्थापना हुई और इसी के साथ-साथ 1923 में सावरकर ने हिंदुत्व पर एक किताब लिखी और उसमें कहा कि “यहां दो राष्ट्र हैं हिंदू और मुसलमान, ये एक साथ नहीं रह सकते.”

     ये दोनों साम्प्रदायिक ताकतें आजादी के आंदोलन में शामिल नहीं थीं ,उसका विरोध कर रही थीं और ये दोनों हिंदू और मुसलमान सांप्रदायिक ताकतें अंग्रेजों के साथ थीं। आजादी के आंदोलन के दौरान हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग ने मिलकर सरकारें चलाई थीं, आजाद हिंद फौज का विरोध किया था और लोगों से अंग्रेजी फौज में भर्ती होने की अपील की थी।  हिंदुत्ववादी ताकतों ने तिरंगे झंडे का विरोध किया था और भारत के संविधान का यह कहकर विरोध किया था कि “यहां किसी संविधान की जरूरत नहीं है, यहां पर तो मनुस्मृति पहले से ही मौजूद है।”

      इसके बाद इन हिंदुत्ववादी ताकतों ने गरीबों को दिए गए आरक्षण का विरोध किया, भारत की जनता की एकता तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने इन जनविरोधी ताकतों स्थापना की थी और तभी से लेकर आज तक इन हिंदुत्ववादी ताकतों ने अपना मुसलमान विरोध जारी रखा है। तमाम की तमाम हिंदुत्ववादी ताकतें जनता की मुख्य समस्याओं से विमुख हैं। 

    इनका कोई भी संगठन जो किसानों मजदूरों छात्रों नौजवानों महिलाओं वकीलों नौजवानों आदिवासियों आदि में काम करने के लिए बनाए गए हैं, उन सब का जनता की मूलभूत समस्याओं जैसे आजादी, समता, समानता भाईचारा गरीबी भुखमरी शोषण जुल्म अन्याय बेरोजगारी भ्रष्टाचार महंगाई आदि को दूर करने से कुछ लेना देना नहीं है। इनका मुख्य काम सिर्फ और सिर्फ जनता में हिंदू मुसलमान की जनविरोधी और साम्प्रदायिक नफ़रत को बढ़ाने वाली राजनीति करके, जनता की समस्याओं  के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहरता है।

      यही काम हिटलर ने जर्मनी में यहूदियों के साथ किया था, जहां उसने एक साजिश के तहत 60 लाख यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया था और जर्मनी की जनता की समस्याओं के लिए यहूदियों को जिम्मेदार ठहराया था। वही काम भारत में ये हिंदुत्ववादी ताकतें कर रही हैं। इनका मुख्य काम जनता में अलगाव पैदा करना, मुख्य समस्याओं से उनका ध्यान हटाना और उनमें आपसी मनमुटाव और बंटवारा पैदा करना और क़ायम रखना है। 

    इनको पता है कि भारत की एकजुट जनता ही भारत के शोषक पूंजीवादी सामंती गठजोड़ को सत्ता से उखाड़ कर फेंक सकती है। इसलिए जनता की एकता ही मत होने दो, उसे धर्म जाति के नाम पर, वर्णों के नाम पर बांटे रखो, और जनता की मूलभूत समस्याओं के लिए “नकली दुश्मन मुसलमान” को जिम्मेदार ठहराते रहो। ये ताकतें नहीं चाहतीं कि जनता अपने मुख्य, सबसे मुख्य दुश्मन पूंजीवाद की तरफ आंखें उठाकर देखें, उसके खात्मे के बारे में विचार करें, उसकी जनविरोधी नीतियों के बारे में सोचें समझें और उसका समाधान खोजें।

     इन साम्प्रदायिक ताकतों का मुख्य काम हमारे देश के पूंजीपति और सामंतों के गठजोड़ की जन विरोधी नीतियों को कायम रखना है, उनके शासन और सत्ता को कायम रखना है, उनकी सरकार को कायम रखना है, उनके मुनाफे बढ़ाना और मुनाफे को बढ़ाने की मुहिम को और तेज गति से लागू कराना है। इसलिए इन्होंने आज जनता को गुमराह करने के लिए मुसलमानों को निशाना बनाया हुआ है। इनका मुख्य काम आज अंग्रेजों की बनाई गई नीतियों “बांटों और राज करो” की नीति को बनाए रखना है।

     इस देश की जन समस्याओं के बने रहने के लिए हिंदू, मुसलमान, वामपंथी, कम्युनिस्ट, एससी, एसटी या ओबीसी नही, बल्कि पूंजीवादी, सामंती और साम्प्रदायिक ताकतों के गठजोड़ की जन विरोधी नीतियां हैं, उनके मुनाफे को बढाये और बरकरार रखने की मुहिम की नीतियां हैं। देश की बुनियादी समस्याओं के लिए मुसलमान जनता नहीं, बल्कि शोषक वर्ग की इस सरकार की ये तमाम जन विरोधी नीतियां जिम्मेदार हैं । 

    ऐसी परिस्थितियों में इस देश की जनवादी, वामपंथी, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और जनसमर्थक ताकतें एकजुट होकर, मुसलमान जनता को निशाना बनाने की सरकार की इन जन विरोधी नीतियों का जनता में प्रचार प्रसार करें, पूरी जनता को एकजुट करें और एक जन कल्याण की समर्थक सरकार, सत्ता, समाज और देश का निर्माण करें, तभी इस देश की जनता और समाज को विकास के मार्ग पर आगे बढ़ाया जा सकता है। ऐसा करके ही इस साम्प्रदायिक सरकार की मुसलमान को निशाना बनाए जाने की नीतियों को प्रभावी ढंग से परास्त किया जा सकता है।

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