अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

*सरकार की ज्यादतियों से संघर्ष करने वाले जन आंदोलनों के खिलाफ गलत संदेश देता है मेधा पाटकर को सजा सुनाया जाना*

Share

*लोगों से आह्वान है कि वे कॉर्पोरेट हितों की रक्षा के लिए सत्ता के पदों और कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग को उजागर करें*

एसकेएम का मानना है कि दिल्ली के उपराज्यपाल श्री वी के सक्सेना द्वारा दायर मानहानि के मामले में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के खिलाफ दिल्ली के साकेत कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यह न्याय और आजीविका संरक्षण के लिए सरकार की ज्यादतियों से लड़ने वाले सभी जन आंदोलनों के लिए गलत संदेश देता है। उपरोक्त न्यायालय का आदेश सक्सेना द्वारा ‘सबूत’ के रूप में एक ईमेल के आधार पर अपमान की शिकायत के जवाब में है। मेधा पाटकर को 5 महीने की जेल और 10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई है।

यह न्याय का मखौल होगा यदि किसी प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता को सत्ता के पदों और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग कर, पूरे मामले तथा दो व्यक्तियों के बीच शिकायतों के इतिहास का संज्ञान लिए बिना, झूठे आधार पर “दंडित” किया जाता है।

नर्मदा बांध परियोजना में प्रभावित परिवारों के लिए मुआवजा, पुनर्वास और पुनर्स्थापन के प्रावधानों भारी कमी देखी गई है। मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन, लगातार राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा दमन का सामना तथा कॉर्पोरेट समर्थक मीडिया और नौकरशाही द्वारा लगातार अपमानित किए जाने के बावजूद, परियोजना से प्रभावित लोगों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष को जारी रखे हुए हैं।

1990 से जे के सीमेंट और अडानी समूह के आधिकारिक पदधारी के रूप में, श्री वी के सक्सेना ने नर्मदा बांध से प्रभावित 244 गांवों के आदिवासियों, दलितों, मजदूरों और किसानों के पुनर्वास के लिए आंदोलन का विरोध किया था। नर्मदा परियोजना के पीड़ित परिवारों के पुनर्वास के लिए लंबे और कष्टदायक संघर्ष के दौरान, वी के सक्सेना ने कई मौकों पर एनबीए और मेधा पाटकर पर हमला किया था, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने अलग-अलग समय पर तीन शिकायत मामले दर्ज किए थे। वी के सक्सेना ने मेधा पाटकर पर एक फर्जी चेक और रसीद के आधार पर लालजी भाई से दान राशि प्राप्त करने का आरोप लगाया था, जिसे इंडियन एक्सप्रेस में एक कहानी के रूप में छापा गया था। सक्सेना के खिलाफ मानहानि का मामला 2000 से लंबित है।

2000 में, सक्सेना ने मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन के खिलाफ एक विज्ञापन प्रकाशित किया था और सार्वजनिक रूप से मेधा पाटकर को “फंसी दो” और “होलिका में दहन करो” का आह्वान किया था और उनके खिलाफ प्रेरित लेख प्रकाशित किए गए थे। सक्सेना ने सुप्रीम कोर्ट में मेधा पाटकर के खिलाफ एक जनहित याचिका भी दायर की थी जिसे इस टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया गया था कि यह एक “व्यक्तिगत हित याचिका” है और उन पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया गया था। वह साबरमती आश्रम में एक बैठक में उन पर हुए हमले में भी सीधे तौर पर शामिल थे, जो 2002 से एक मामले के रूप में दर्ज है, लेकिन आज भी लंबित है।

एसकेएम को उम्मीद है कि उच्च न्यायालय मेधा पाटकर को न्याय सुनिश्चित करेंगे, और उचित संवेदनशीलता के साथ आम लोगों को न्याय दिलाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखेंगे।

मीडिया सेल द्वारा जारी | संयुक्त किसान मोर्चा संपर्क: samyuktkisanmorcha@gmail.com

9447125209, 9830052766

Add comment

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें