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400 पार का नारा बंध गया भाजपा के गले में घंटी की तरह

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सनत जैन

भारतीय जनता पार्टी चुनाव में हमेशा बड़े लक्ष्य तय करती है। मतदाताओं को भी बड़े-बड़े सपने दिखाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा कहते हैं सपने बड़े देखो और उन्हें पूरा करने का प्रयास करने पर ही सपने सच होते हैं। भारतीय जनता पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए 400 पार का नारा और सीटों का लक्ष्य तय ‎किया था। लोकसभा में यदि भारतीय जनता पार्टी और एनडीए को मिलकर 400 सीट मिल जाती हैं, तो इसका मतलब केवल सरकार बनने से नहीं था। इतनी ताकत भारतीय जनता पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनाव में मिल जाएगी। ऐसी ‎स्थिति में वह भारतीय संविधान में आमूल चामूल परिवर्तन करने के लिए सक्षम हो जाएगी। संविधान में दो तिहाई बहुमत से ही मौलिक अधिकारों से संबंधित मामलों में संशोधन के अधिकार मिलते हैं। दो तिहाई बहुमत से दोनों सदनों की स्वीकृति मिलने पर संविधान के किसी भी खंड में संशोधन किया जा सकता है। जैसे ही भारतीय जनता पार्टी ने 400 पार का नारा दिया, उसके बाद से ही भाजपा की मुसीबतें से बढ़ना शुरू हो गई। भारतीय जनता पार्टी के कई सांसदों ने सार्वजनिक रूप से यह कहना शुरू कर दिया। इस बार 400 सीट मिलने के बाद संविधान में संशोधन किया जाएगा।

यह बात किसी एक आदमी ने नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के चार सांसदों और भाजपा संगठन की ओर से खुले तौर पर कही। 400 पार का नारा सामने आने के बाद ईवीएम के विरोध का भी बड़ा तेज हो गया। यह आशंका लोगों के मन में बैठ गई, वर्तमान स्थिति में 400 सीटें पाना ‎किसी के लिए संभव नहीं है। ऐसे में यदि भारतीय जनता पार्टी 400 पार का नारा लगा रही है, इसके पीछे कहीं ना कहीं ईवीएम और वीवी पेट के माध्यम से गड़बड़ी की जा सकती है। इसके बाद आंदोलन भी हुआ और जगह विरोध भी हुआ। संविधान संशोधन के मामले ने तूल पकड़ा। हिंदू राष्ट्र बनाने से लेकर आरक्षण खत्म करने का आरोप विपक्षी दलों ने लगाना शुरू कर दिया। भाजपा को अब इसी मामले में सफाई देनी पड़ रही है।

वह आरक्षण को खत्म नहीं करेंगे। केंद्रीय मंत्री अमित शाह को कहना पड़ा कि हमें स्पष्ट बहुमत था। हमने धारा 370 को खत्म करने और सीएए जैसे कानून बनाए हैं। हमारे पास बहुमत था इसलिए हम यह काम कर पाए। लेकिन 400 पार क्यों जरूरी है, इसका स्पष्टीकरण वह भी नहीं दे पाए। पिछले 10 वर्षों में गंगा जी और यमुना जी में बहुत पानी बह गया है। जब सरकार ने नोटबंदी लागू की थी, उसके बाद उत्तर प्रदेश के चुनाव हुए थे। सरकार ने यह कहना शुरू कर दिया था कि नोटबंदी को जनता ने समर्थन दिया है। इसलिए हम उत्तर प्रदेश में चुनाव जीते हैं। इसी तरह जीएसटी कानून में नागरिकों के ऊपर भारी टैक्स लगाए गए। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतें लगातार बढ़ती रही। सरकार ने इसके बारे में भी कहा, यदि जनता नाराज होती, तो हमें वोट क्यों देती। भारत में 1952 से लेकर अभी तक जितने भी चुनाव हुए हैं।

उनमें 1984 के लोकसभा चुनाव में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी। तब सहानुभूति लहर में कांग्रेस को लगभग 50 फ़ीसदी वोट मिले थे। लोकसभा में पहली बार 404 सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई थी। 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी को 43.68 फीसदी मत और 352 सीट पर जीत ‎मिली थी। उन्होंने पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश का युद्ध जीता था।1980 के लोकसभा चुनाव में इं‎दिरा की ‎गिरफ्तारी को लेकर सहानुभू‎ति की लहर चली थी। ‎जिसमें कांग्रेस को 42.69 फीसदी वोट और 374 सीट ‎मिली थी। इसके बाद कभी भी किसी भी राजनीतिक दल को इतना बड़ा बहुमत नहीं मिला। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव तथा इस दौरान हुए विधानसभा के चुनावों में विशेष रूप से हिंदी पट्टी में भारतीय जनता पार्टी का वोट शेयर बढ़ता रहा है।

वोट शेयर बढ़ने का सबसे बड़ा कारण धार्मिक ध्रुवीकरण था। कुछ ऐसा माहौल बन गया था ‎कि कांग्रेस खत्म हो रही है। भारतीय जनता पार्टी आगे बढ़ रही है। 2024 से लोकसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी इसी खेल को खेल कर 400 पार करना चाहती थी। संविधान संशोधन और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को दरकिनार करते हुए सरकार ने जो नया कानून बनाया। उसमें चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री एक केंद्रीय मंत्री और नेता विपक्ष को रखकर सरकार ने 2 चुनाव आयुक्त ‎नियुक्त ‎किये। चुनाव अधिसूचना जारी होने के 1 दिन पहले जिस तरह से दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की गई है। उसको बाद चुनाव आयोग और चुनाव की निष्पक्षता को लेकर आम मतदाताओं के बीच में अ‎विश्वास देखने को मिल रहा है। रही-सही कसर महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक संकट के चलते मतदाताओं की नाराजी 2024 के चुनाव में स्पष्ट रूप से देखने को मिल रही है।

इन सारे हालातो को देखते हुए यही कहा जा सकता है। 400 पार का जो नारा भारतीय जनता पार्टी ने लगाया था। वह उनके गले में घंटी की तरह बंध गया है। इसका कितना फायदा होगा और कितना नुकसान होगा, इसका आकलन तो चुनाव परिणाम के बाद ही होगा। भाजपा हर चुनाव में ऊंचे लक्ष्य निर्धारित करती है। जिसके कारण नतीजे को लेकर सभी के बीच में रोमांच देखने को ‎मिलता है। मतदान के दौरान मतदाताओं की खामोशी और मतदान से अरुचि को लेकर सभी भ्रमित हैं। मतदाता भ्रमित है किसे वोट करें, वहीं राजनीतिक दल भी चुनाव परिणामों को लेकर भ्रमित हैं।

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