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सरकारी नौकरी छोड़ कारोबार में उतरने वाले बलदेव गुप्ता की कहानी है खास

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सुबह तड़के दिनचर्या शुरू कर घर पर ही लोगों से मिलना-मिलाना, दोपहर में फैक्ट्री का दौरा, शाम में दफ्तर में मीटिंग और रात में सामाजिक कार्यक्रमों के लिए फुर्सत निकालना… उद्योगपति और तरुण इंटरनैशनल के सीएमडी बलदेव गुप्ता की व्यस्त दिनचर्या देखकर किसी को भी हैरानी हो सकती है कि वह 71 साल की उम्र में भी काम को लेकर कितने जुनूनी हैं। यह बातचीत भी उन्होंने गाड़ी में सफर करते हुए ही पूरी की।

साढ़े नौ साल की उम्र में आ गए थे चावड़ी

बलदेव गुप्ता का कारोबारी सफर भी पुरानी दिल्ली के चावड़ी बाजार के लालकुआं से शुरू हुआ था। वह बताते हैं – मेरा परिवार बिजनेस में नहीं था। 1962 में मैं महज साढ़े नौ साल की उम्र में अकेले ही चावड़ी काम करने आ गया था। यहां पांच साल बिना वेतन के ही काम सीखा। इस दौरान स्कूली पढ़ाई चलती रही। पहली बार वेतन वाली नौकरी की 1967 में दरियागंज की एक रेलवे बुकिंग एजेंसी में। तब सैलरी हुआ करती थी 90 रुपये। पढ़ाई तब भी नहीं छोड़ी। कॉलेज पूरा किया और एंप्लॉयमेंट एक्सचेंज में नाम लिखवाया। पढ़ाई के साथ अनाज, चावल, कपड़े का काम करता रहा। इसी दौरान लेडी हार्डिंग में नौकरी लगी तो दिन में जॉब करता और शाम में छुट्टी होने पर पार्टटाइम अकाउंटेंट बन जाता। ईवनिंग कॉलेज से पढ़ाई भी चलती। 1973 तक आते-आते मन बना चुका था कि मुझे बिजनेस में ही रहना है पर पापा चाहते थे पक्की नौकरी ही करूं। इसी दौरान बैंक में नौकरी के दो अपॉइंटमेंट लेटर आए। एक जगह जॉइन भी कर लिया पर मन न लगा। एक साल ही वहां काम कर पाया और कारोबार में आ गया।

कारोबार में शुरुआत अच्छी न थी 

कारोबार में शुरुआत अच्छी नहीं रही। बलदेव गुप्ता बताते हैं, मैंने 1983 में पंजाब के होशियारपुर में रबर बेल्टिंग की फैक्ट्री लगाई थी मगर बहुत नुकसान उठाया। इसी दौरान पिताजी का स्वर्गवास हो गया। अब नौकरी से रिजाइन कर नया बिजनेस शुरू किया। पहले टूल्स की ट्रेडिंग की, फिर गाजियाबाद में पार्टनरशिप में फैक्ट्री लगाई। काम खास नहीं चला। तब 1995 में नई शुरुआत की और कोल्डो लिंक का काम शुरू करते हुए नई फैक्ट्री लगाई। यहां ढाई सौ कर्मचारी थे। आज हमारी इस फैक्ट्री में एक हजार पार्ट्स बनते हैं। जिस भी चीज में स्प्रिंग एक्शन की जरूरत है, वहां हमारे पार्ट्स सप्लाई होते हैं। फिर चाहे दरवाजे का लॉक हो या स्टेपलर। वुड कटिंग ब्लेड के तो हम देश में सबसे बड़े मैनुफेक्चरर हैं। मेनुफेक्चरिंग के अलावा 1997 में हमने पावर टूल्स का इंपोर्ट शुरू किया। 2005 आते-आते हम प्रॉपर्टी के बिजनेस में भी आ गए।

मेनुफेक्चरिंग में भविष्य तलाशें 


नौकरीपेशा परिवार से आकर भी कारोबार को लेकर इतना जुनून कैसे पैदा हुआ, इस सवाल पर बलदेव गुप्ता कहते हैं – लोगों को महंगी घड़ियों, कपड़ों, कारों का शौक होता है, मुझे व्यापार करने का शौक है। यही मुझे यहां तक लाया। आज लगता है कि देश ने जितना कुछ मुझे दिया, उसे लौटाना भी है। इसी कोशिश में सामाजिक संस्थाओं की मदद समय-समय पर करता हूं। वैसे भी पुरानी दिल्ली के होलसेल बिजनेस का फंडा है – खुद का भी कल्याण करो और समाज का भी कल्याण साथ में हो। यह बाजार आपको जो सिखाता है, वह एमबीए की डिग्री देने वाला कोई कॉलेज नहीं सिखाता होगा। कारोबार में आना चाह रही नई पीढ़ी को संदेश देते हुए बलदेव गुप्ता कहते हैं – भीड़चाल में कोर्सेज न करें। टेक्निकल स्किल बनाएं। 12वीं के प्रफेशनल कोर्स करें। मेनुफेक्चरिंग में आएं। शौक पर उतना ही खर्चें जितना जेब इजाजत दे। आज महंगाई कितनी भी बढ़ गई हो, अगर आप कम से कम खर्च में अपना गुजारा कर सकते हो तो कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

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