ओम प्रकाश जी की आंखों से टप टप आंसू बह रहे थे। उनके हाथ में एक चिट्ठी थी जो उन्होंने अभी खोली भी नहीं थी। उस चिट्ठी में क्या लिखा था अभी तक उन्हें पता भी नहीं चला था। लेकिन चूंकि वो चिट्ठी लाहौर से आई थी तो वो उनके लिए बहुत खास थी। उनके आस-पास कई लोग मौजूद थे। और सभी बड़े हैरान थे। क्योंकि किसी ने भी ओम प्रकाश जी को पहले कभी ऐसे रोते नहीं देखा था। ये चिट्ठी वाली कहानी आपको पसंद आएगी चलिए आप और हम ओम प्रकाश जी को इस कहानी के बहाने याद कर लेते हैं। बहुत अच्छे अदाकार थे ओम प्रकाश जी। ये कहानी भी उतनी ही अच्छी है।
ये 1980 का किस्सा है। मशहूर पाकिस्तानी गज़ल गायक गुलाम अली खान उस साल पहली दफ़ा भारत में कॉन्सर्ट करने आए थे। उनके साथ उनकी टीम के भी कुछ लोग थे, जिनमें से एक थे अब्दुल सत्तार तारी। अब्दुल सत्तार तारी बहुत प्रतिभाशाली तबला वादक थे।(हैं अभी भी वो) लोग उन्हें तारी भाई कहा करते थे। आगे चलकर वो तारी खान के नाम से मशहूर हुए। गुलाम अली खान साहब का एक शो मुंबई में भी था। अब्दुल सत्तार तारी उर्फ़ तारी खान गुलाम अली की टीम के सबसे युवा मेंबर थे। मुंबई में जब वो कॉन्सर्ट हुआ तो उस कॉन्सर्ट में एक्टर लेट जूनियर महमूद जी भी पहुंचे। ये पूरा किस्सा जूनियर महमूद जी ने ही एक यूट्यूब इंटरव्यू में बताया था।
जूनियर महमूद, गुलाम अली खान साहब का वो कॉन्सर्ट देखने पहुंचे। वहां गुलाम अली खान साहब व उनकी टीम के लोगों से जूनियर जी की मुलाकात हुई। और अब्दुल सत्तार तारी से तो उनकी दोस्ती हो गई। जूनियर महमूद ने अब्दुल सत्तार तारी को अपने घर दावत के लिए इनवाइट किया और अपने ही घर रुकने के लिए कहा। तारी खान ने भी जूनियर महमूद की मेहमान-नवाज़ी स्वीकार कर ली। अगले दिन वो जूनियर महमूद के घर पर ही रुके। और रात का खाना खाने के बाद शुरू हुई बातचीत में तारी खान ने जूनियर जी से कहा,”जूनियर भाई, मैं सिर्फ़ शो के लिए ही नहीं, एक और तमन्ना दिल में लेकर हिंदुस्तान आया हूं। मुझे ओम प्रकाश जी से मिलना है। क्या आप मुझे ओम प्रकाश जी से मिला सकते हैं?”
चूंकि जूनियर महमूद ओम प्रकाश जी के साथ कई फ़िल्मों में काम कर चुके थे तो ओम प्रकाश जी से उनकी बहुत बढ़िया जान-पहचान थी। जूनियर जी ओम प्रकाश जी को ओम अंकल कहा करते थे। तारी खान से ओम प्रकाश जी का नाम सुनने पर उन्होंने पूछा,”आपको ओम प्रकाश जी से मिलना क्यों है?” जवाब में तारी खान बोले,”मेरा पर्सनल तो कोई काम नहीं है। मेरे पास उनकी एक अमानत है। लाहौर के उनके एक परीचित ने मुझे उन्हें एक चिट्ठी देने के लिए बोला है। वो चिट्ठी अभी मेरे पास ही है। मैं वो चिट्ठी उन्हें देना चाहता हूं। अगर आप मुझे ओम प्रकाश जी से मिला देंगे और मैं उन्हें ये चिट्ठी सौंप दूंगा तो मेरा हिंदुस्तान आना सफ़ल हो जाएगा।”
मुंबई के दादर इलाके में एक रूपतारा स्टूडियो है। उस स्टूडियो के पास ओम प्रकाश जी के भाई का ऑफ़िस हुआ करता था उन दिनों। और वहीं पास में ही ओम प्रकाश जी ने एक छोटा सा फ्लैट किराए पर ले रखा था। उस फ्लैट में वो अपने दोस्तों के साथ महफ़िल जमाते थे। पीने-खाने की दावतें वहां होती थी। ताश वगैरह खेले जाते थे। और अपने उस किराए के फ्लैट में ओम प्रकाश जी सिर्फ़ अपने खास दोस्तों को ही बुलाते थे। अपने घर से खाना मंगाकर उन्हें खिलाते थे। यानि ओम प्रकाश जी ने वो फ्लैट गुड टाइम स्पैंड करने के लिए किराए पर लिया था। जूनियर महमूद जानते थे कि ओम प्रकाश किस समय अपने उस फ्लैट में मिलते हैं।
अब्दुल सत्तार तारी के कहने पर जूनियर महमूद जी ने अगली सुबह रूपतारा स्टूडियो फ़ोन किया और पूछा कि क्या ओम प्रकाश जी अपने फ्लैट में आ चुके हैं। पता चला कि ओम जी आ चुके हैं। जूनियर महमूद ने अब्दुल सत्तार तारी उर्फ़ तारी खान को साथ लिया और अपनी गाड़ी से रूपतारा स्टूडियो पहुंच गए। वहां पहुंचकर उन्होंने ओम जी के असिस्टेंट से कहा कि ओम जी को बताइएगा मैं उनसे मिलना चाहता हूं। असिस्टेंट ने ओम प्रकाश जी को बताया। जूनियर महमूद का नाम सुनते ही ओम प्रकाश जी वहीं से चिल्लाए,”ओए खोत्तेआ। तुझे पूछने की क्या ज़रूरत है? इधर आ फ़टाफ़ट। घर का बंदा होकर तू पूछ रहा है, तुझे शर्म नहीं आती?”
जूनियर महमूद जी के लिए ओम प्रकाश जी का वो लाड-दुलार देख अब्दुल सत्तार तारी भी बहुत हैरान हुए। जूनियर महमूद ने गेट के पास ही तारी खान को खड़ा किया और पहले खुद ओम प्रकाश जी से मिलने गए। वहां ओम प्रकाश जी के पैर छूकर जूनियर जी ने कहा कि ओम अंकल मुझे आपसे एक पर्सनल काम है। पर्सनल शब्द सुनकर ओम जी को लगा कि शायद जूनियर महमूद कुछ पैसे मांगने आए हैं। उन्होंने अपनी जेब की तरफ़ हाथ बढ़ाया और जूनियर से बोले कि बता क्या हुआ? जूनियर महमूद ने उन्हें बताया कि एक बंदा आपसे मिलने आया है। और वो बंदा लाहौर से आया है।
साथियों लाहौर से ओम प्रकाश जी का रिश्ता बड़ा गहरा था। किसी ज़माने में ऑल इंडिया रेडियो के लाहौर स्टेशन में फतेहदीन नाम से बतौर रेडियो एक्टर व प्रजेंटर के तौर काम करते थे। ओम प्रकाश जी अच्छे-खासे मशहूर थे अपने रेडियो कार्यक्रमों के ज़रिए। वो थे मूलरूप से कश्मीर के रहने वाले। मगर लाहौर उनका अपना शहर बन गया था। उनका बचपन वहीं पर गुज़रा था। उन्होंने क्लासिकल संगीत की शिक्षा भी ली थी। यानि क्लासिकल संगीत के अच्छे ज्ञाता थे ओम प्रकाश जी। जब जूनियर महमूद ने बताया कि लाहौर से उनसे कोई मिलने आया है तो उन्होंने फौरन अपने सभी दोस्तों को कुछ देर खामोश रहने को कहा। ताश का गेम चल रहा था, वो भी रोक दिया।
जूनियर महमूद तारी खान को अपने साथ भीतर ले गए। तारी खान ओम प्रकाश जी से मिले। चूंकि तारी खान के यहां किसी के सम्मान में उसका हाथ चूमने की प्रथा है तो तारी खान ने ओम प्रकाश जी का हाथ चूमा। ओम प्रकाश जी ने हैरत से तारी खान को देखते हुए पूछा कि तू किसका बेटा है पुत्तर?(साथियों ये सभी बातें पंजाबी में हो रही थी। मैं हिंदी में लिख रहा हूं। क्योंकि मुझे पंजाबी का ज्ञान नहीं है।) तारी खान ने कहा कि मैं तो कोई नहीं हू जी। मैं तो बस आपके लिए एक संदेशा लाया हूं। वो आपको दे दूं तो मुझे सुकून मिल जाएगा। इसके लिए ही मैं आपसे मिलने आया हूं। ओम प्रकाश जी बड़े खुश हुए। उन्होंने तारी खान को अपने पास बैठा लिया और अपने असिस्टेंट से उनके लिए लस्सी लाने को कहा। और तारी खान से खूब बातें की।
बातचीत के बाद तारी खान ने एक लिफ़ाफ़ा ओम प्रकाश जी की तरफ़ बढ़ाया और कहा,”आपके एक दोस्त ने इंडिया आने से पहले ये लिफ़ाफ़ा मुझे दिया था और कहा था कि मैं इसे आप तक ज़रूर पहुंचा दूं।” ओम प्रकाश जी ने वो लिफ़ाफ़ा हाथ में लिया और बड़ी उत्सुकता से तारी खान से पूछा कि कौन था ये चिट्ठी देने वाला बंदा? तारी खान ने उसका नाम ओम प्रकाश को बताया। वो कोई रज़ाक खान थे जो लाहौर के नामी व्यक्ति थे।(उस चिट्ठी में क्या लिखा था, इसका ज़िक्र नहीं किया गया) उस बंदे का नाम सुनते ही ओम प्रकाश जी इमोशनल हो गए। उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। और वो वाकई में रोने लगे। ओम प्रकाश जी को रोते देख सब हैरान हुए। क्योंकि किसी ने भी इस तरह उन्हें रोते हुए पहले नहीं देखा था।
रोते-रोते ही ओम प्रकाश जी ने चिट्ठी भेजने वाले के बारे में बताया कि ये तो मेरा दोस्त है। लाहौर में मेरा पड़ोसी था। मेरे बचपन का काफ़ी वक्त इसके साथ ही गुज़रा था। उन्होंने अपने बचपन को याद करना शुरू कर दिया। जूनियर महमूद साहब सहित उस कमरे में बैठे अन्य लोग ओम प्रकाश जी को चुप कराने लगे। कुछ देर बाद जब ओम प्रकाश जी नॉर्मल हुए तो जूनियर महमूद ने उनसे चलने की इजाज़त मांगी। ओम प्रकाश जी ने उनसे कहा,”जाना चाहता है तो अभी तो तू चला जा। लेकिन किसी दिन घर पर मिलने के लिए भी आ जाना। मुझे तुझसे बात करनी है।” फ़िर ओम प्रकाश जी ने अब्दुल सत्तार तारी से कहा कि पुत्तर तूने अपना नाम नहीं बताया?
तारी खान ने उन्हें बताया कि मेरा नाम अब्दुल सत्तार तारी है। ओम प्रकाश जी ने पूछा,”तू करता क्या है?” तारी खान बोले,”मैं तो एक मामूली सा तबला नवाज़ हूं जी। मुझे बहुत खुशी हुई आज कि मैं आपसे मिला। इतने बड़े फ़नकार से मिला। क्योंकि आप भी तो क्लासिकल संगीत के अच्छे जानकार हैं।” फ़िर थोड़ी और बात करने के बाद तारी खान और जूनियर महमूद उस फ्लैट से बाहर आ गए और जूनियर अपनी गाड़ी की तरफ़ बढ़ने लगे। वो गाड़ी के करीब पहुंचने ही वाले थे कि पीछे से ओम प्रकाश जी ने ज़ोर से उन्हें आवाज़ दी,”ओए जूनियर। ओए खोत्तेआ। रुक जा एक मिनट।”
ओम प्रकाश जी की आवाज़ सुनकर जूनियर महमूद रुक गए। और थोड़ा सहम भी गए। उन्हें लगा कि कहीं अनजाने में उन्होंने ओम प्रकाश जी के साथ कोई बदतमीज़ी तो नहीं कर दी? कहीं ओम प्रकाश जी उन्हें डांटने ना लगें। लेकिन उनके नज़दीक आकर ओम प्रकाश जी उनसे नहीं, तारी खान से मुखातिब हुए और बोले,”पुत्तर तूने क्या बताया था, क्या करता है तू?” तारी खान ने बताया कि मैं तबला नवाज़ हूं। तबला बजाता हूं। तब ओम प्रकाश जी ने कहा,”वो जो गुलाम अली के साथ तारी खान करके तबला बजाने वाला है, तू वही है?” तारी खान ने झुकते हुए कहा कि जी साहब। मैं वही नाचीज़ हूं।
फ़िर तो ओम प्रकाश जी ने तारी खान की बहुत तारीफ़ की। उनके तबले की तारीफ़ की। ओम प्रकाश जी ने तारी खान का माथा चूम लिया। और यूं तारी खान, जूनियर महमूद व ओम प्रकाश जी के लिए वो दिन हमेशा के लिए यादगार बन गया। साथियों ये किस्सा आपको पसंद आया हो तो इसे लाइक और शेयर कर दीजिएगा। आपके लिए इस तरह के किस्से भी लगातार आते रहेंगे। आजकल ज़रा कम लिखना हो रहा है। और बहुत अच्छी तरह से लिखना भी नहीं हो पा रहा है। लेकिन जल्द ही फ़िर से पहले की तरह दुर्लभ और रोचक किस्से आप पाठकों के लिए किस्सा टीवी पर आने लगेंगे। हां, लेटेस्ट न्यूज़ भी अब साथ-साथ पोस्ट हुआ करेंगी। क्योंकि हर दिन नया व ज़्यादा लिखना अब मुमकिन नहीं मेरे लिए। उम्मीद है आप समझेंगे।