राजन कुमार
मध्य प्रदेश में प्रदेश सरकार के अधीन स्वशासी मेडिकल कॉलेजों में आरक्षित वर्गों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखने के कई मामले कई स्तरों पर सामने आए हैं। पहले स्तर की अनियमितता की बात करें तो इन मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण रोस्टर संस्थान के स्तर पर तैयार करने के बजाय विभागवार लागू किया जाना है। इससे होता यह है कि अनेक विभागों में आरक्षित वर्गों के पात्र अभ्यर्थी होने के बावजूद उनका नियोजन नहीं हो पाता है
सनद रहे कि केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण) विधेयक, 2019 को 7 मार्च, 2019 को लागू किया गया। इस विधेयक में कहा गया है कि विभाग/विषय को एक इकाई के रूप में नहीं मानकर विश्वविद्यालय/कॉलेज को एक इकाई के रूप में मानकर आरक्षण प्रदान किया जाएगा। यानि विश्वविद्यालय/कॉलेज को इकाई मानकर टीचिंग पदों पर आरक्षण रोस्टर लागू किया जाएगा।
हकमारी की बानगियां
फारवर्ड प्रेस के द्वारा मध्य प्रदेश के गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) भोपाल, महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज (एमजीएमएमसी) इंदौर, अटल बिहारी वाजपेयी शासकीय मेडिकल कॉलेज (एबीवीजीएमसी) विदिशा, शासकीय मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) रतलाम में आरक्षण रोस्टर का अध्ययन किया गया। इसमें पता चला कि इन कॉलेजों में कॉलेज को एक इकाई न मानते हुए विभाग/विषय को एक इकाई मानकर आरक्षण रोस्टर लागू किया गया, जिसके कारण अनुसूचित जनजाति (एसटी), अनुसूचित जाति (एससी) एवं ओबीसी वर्ग के अनेक अभ्यर्थियों को मेडिकल कॉलेजों में टीचिंग पदों पर नियुक्ति में सीधे तौर पर वंचित किया गया।
उदाहरण के लिए विभाग/विषय को एक इकाई मानकर आरक्षण रोस्टर लागू करने के कारण एबीवीजीएमसी, विदिशा में पिछले पांच वर्षों में निकाली गई वैकेंसियों में प्रोफेसर का कोई भी पद एसटी, एससी, ओबीसी के लिए आरक्षित नहीं किया गया। इसी तरह रतलाम मेडिकल कॉलेज में भी पिछले पांच वर्षों में जारी वैकेंसी में प्रोफेसर का कोई भी पद एसटी, एससी, ओबीसी के लिए आरक्षित नहीं हुआ। जबकि जीएमसी, भोपाल और एमजीएमएमसी, इंदौर में कई विषयों में प्रोफेसर का पद एसटी, एससी, ओबीसी के लिए आरक्षित नहीं किया गया।
एसटी, एससी, ओबीसी के साथ यह हकमारी सिर्फ प्रोफेसर के पदों पर ही नहीं हुई, बल्कि एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर, ट्यूटर जैसे पदों पर भी हुई। इस कारण से आरक्षण रोस्टर के अनुपात में एसटी, एससी और ओबीसी कैटेगरी के लिए स्वीकृत पदों में भी कमी देखी गई।
अनियमितता का दूसरा स्तर यह कि विभाग/विषय को एक इकाई मानकर आरक्षण रोस्टर लागू करने के बाद भी जो पद एसटी, एससी या ओबीसी के लिए आरक्षित किए गए, उनमें से कई पदों को येन-केन-प्रकारेण अनारक्षित कैटेगरी में परिवर्तित कर अनारक्षित वर्ग से भर दी गई।
तीसरी अनियमितता यह कि आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी अनारक्षित प्रोफेसर या एसोसिएट प्रोफेसर पद पर वरीयता संबंधी अर्हता सूची में सबसे योग्य पाए जाने के बावजूद भी उसे उस पद पर नियुक्त नहीं होने दिया गया।
चौथी अनियमितता यह कि मेडिकल कॉलेज में जिन विषयों में प्रोफेसर एवं एसोसिएट प्रोफेसर के पदोन्नति पदों के लिए अभ्यर्थी योग्य होनेवाले थे या हो गए थे, उनको प्रताड़ित करना, और उनके पदों को दूसरे विषयों में ट्रांसफर करने का मामला भी सामने आया।
एसटी वर्ग से आनेवाले एक डॉक्टर की आपबीती
एसटी वर्ग से आनेवाले डॉ. कमलेश मौर्य विदिशा मेडिकल कॉलेज में सर्जरी विभाग में वर्ष 2018 से लेकर 2022 तक असिस्टेंट प्रोफेसर रह चुके हैं। वह कहते हैं कि उन्हें एसोसिएट प्रोफेसर बनने से रोकने के लिए षड्यंत्र किया गया। दरअसल, असिस्टेंट प्रोफेसर से एसोसिएट प्रोफेसर के पदोन्नति पद के लिए चार साल का कार्यानुभव आवश्यक होता है। डॉ. मौर्य इससे पहले कि चार साल पूरा कर पदोन्नति प्राप्त कर पाते, सर्जरी विभाग में एसटी के लिए आरक्षित एसोसिएट प्रोफेसर के पद को ही अनारक्षित में परिवर्तित कर दिया गया। उनके मुताबिक, वर्ष 2018-19 में कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए 12 पद एसटी के थे, जिनमें सिर्फ तीन पद एसटी से भरे गए, बाकी पद गायब कर दिए।
डॉ. मौर्य कहते हैं कि “मेरी सीआर (साख संबंधी गोपनीय) रिपोर्ट जान-बूझकर खराब की गई, मेरे कार्यानुभव की अवधिक में कटौती कर दी गई और कई प्रकार से इतना प्रताड़ित किया गया कि मुझे कॉलेज छोड़कर जाना पड़ा।”
वे आरोप लगाते हैं कि “कोई भी मेडिकल कॉलेज नियमों के अनुसार चलता है, लेकिन विदिशा मेडिकल कॉलेज में पूरी तरह तत्कालीन डीन की मनमर्जी चल रही थी। कोई कायदा-कानून अनुसरण में नहीं लाया जा रहा था।”
बकौल डॉ. मौर्य, “उस समय डीन थे सुनील नंदेश्वर। वे जो चाहते थे, वही होता था। जो पसंद थे, उनके लिए अलग नियम थे और जो नहीं पसंद थे, उनके लिए अलग नियम थे। उनके नियम-विरूद्ध व दुर्भावनापूर्ण आचरण और मनमर्जी के कारण कोविड के बाद अनेक शिक्षक कॉलेज छोड़कर चले गए।”
डॉ. मौर्य यहीं नहीं रूकेते। फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर बातचीत में उन्होंने आरोप लगाया कि “डीन के आचरण एसटी और एससी लोगों के प्रति द्वेषपूर्ण, पक्षपातपूर्ण थे। डीन ने अपने चहेतों के लिए मनमाने ढंग से आरक्षित सीटों को अनारक्षित में परिवर्तित किया और एसटी वर्ग के लिए आरक्षित कई सीटें नियमों की परवाह किए बगैर गायब कर दी। इस तरह से डीन ने सीट का ही घपला कर दिया।”
विदिशा मेडिकल कॉलेज में जातिगत भेदभाव किए जाने का एक उदाहरण देते हुए डॉ. कमलेश मौर्य एक और दलित प्रोफेसर का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि “उन्हें भी बहुत परेशान किया गया। मसलन, कई बार उन्हें उपस्थिति पंजिका में अनुपस्थित दर्शा दिया। ऐसे ही मेरे साथ भी किया गया। जबकि हमलोग त्योहार वगैरह पर छुट्टी लेकर घर गए थे। इसके अलावा हमसे पूरे सप्ताह, रविवार को भी ड्यूटी कराई जाती थी, फिर भी हमें अनुपस्थित बताया गया और कई बार तो हमारे उपस्थित रहने के बावजूद भी हमें अनुपस्थित बता दिया गया। जबकि अन्य फैकल्टी 15-20 दिन की छुट्टी करते थे, ड्यूटी के दौरान किसी अन्य शहर में किसी कार्यक्रम-वर्कशाप में या अपने निजी काम में होते थे, उन्हें अनुपस्थित नहीं दर्शाया जाता था।”
अपना अनुभव साझा करते हुए डॉ. कमलेश मौर्य कहते हैं कि “पीजीआई, रोहतक में ट्रामा सेंटर में मुझे दो वर्ष का फेलोशिप मिला था। यह मेरे लिए एक अच्छा अवसर था। मैं विदिशा मेडिकल कॉलेज प्रबंधन को बॉन्ड भरकर देने तक को तैयार था कि दो वर्ष बाद आकर पुनः कॉलेज में सेवा दूंगा। लेकिन इसके बावजूद भी इसके लिए मुझे अवैतनिक अवकाश तक नहीं दी गई। इतना ही नहीं, डीन ने पीजीआई, रोहतक को पत्र भेजकर कहा कि मैं अनुबंधित डॉक्टर हूं, मुझे फेलोशिप के तहत नियुक्ति नहीं दी जाए। जबकि मैं पीजीआई, रोहतक का फेलोशिप पूरा करना चाहता था, क्योंकि वह मेरे लिए हायर डिग्री और स्पेशियलिटी थी। इसलिए मैंने बॉन्ड के तहत एक वर्ष के वेतन का पैसा जमा करके नौकरी छोड़ने के लिए डीन से कहा तो उन्होंने मुझे नौकरी नहीं छोड़ने देने में भी इतने अड़ंगे लगाए कि पीजीआई, रोहतक में फेलोशिप ज्वाईन करने की तारीख निकल गई और मजबूरी में मुझे विदिशा मेडिकल कॉलेज में ही रहना पड़ा। जबकि अन्य दूसरे डॉक्टर, यहां तक कि जो ट्यूटर के पद पर थे, जो उनके चहेते थे, उनको भी फेलोशिप या पीजी के लिए अवकाश दे दी गई। इसी तरह मेरा दिल्ली में भी नारायणा हास्पिटल में लेप्रोसिस्क सर्जरी के लिए एक फेलोशिप में एक वर्ष के लिए चयन हुआ, उसके लिए भी मुझे लीव नहीं दी गई, जबकि मैं स्पेशलिस्ट बनता तो इससे कॉलेज का ही फायदा था। फिर भी एसटी होने के कारण मेरे साथ काफी दुर्व्यहार किया गया।”
डॉ. मौर्य कहते हैं कि “मैं एसटी कैटेगरी से आता हूं, और अपने परिवार में मैं पहला और एकमात्र डॉक्टर हूं। हमारे लिए सरकारी नौकरी – खासतौर से मेडिकल डॉक्टर की – बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन तीन वर्ष के बॉन्ड के कारण मैं वहां लगभग साढ़े चार साल तक वहां काम करना पड़ा और मजबूरी में काफी कुछ झेलना पड़ा। और अंत में प्लास्टिक सर्जरी से जुड़े एक फेलोशिप के लिए अवैतनिक अवकाश नहीं मिलने के कारण कॉलेज छोड़ दिया, क्योंकि अब मेरा बॉन्ड पीरियड खत्म हो चुका था।”
डॉ. मौर्य अपनी आपबीती बताते हुए कहते हैं कि “अपने साथ हुए अन्याय के बारे में मैंने पीएम हेल्पलाइन, सीएम हेल्पलाइन, डीएमई भोपाल और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पास शिकायत की, लेकिन मुझे कहीं से न्याय नहीं मिला। कोई जवाब तक नहीं आया। मुझे लगता है कि निम्न वर्ग के लोगों को, खास तौर से एसटी वर्ग के लोगों को सरकार और सरकारी तंत्र में न्याय मिल पाना नामुमकिन है।”
हकमारी से एससी, एसटी और ओबीसी युवाओं का मनोबल गिरता है : डॉ. अलावा
बहरहाल, दूरभाष पर बातचीत में सूबे के मनावर विधानसभा क्षेत्र से विधायक डॉ. हिरालाल अलावा कहते हैं कि मध्य प्रदेश में जबसे भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है, तब से राज्य के सभी मेडिकल कॉलेजों में जो एसटी, एससी और ओबीसी के खाली पद थे, उन्हें पिछले दरवाजे से सामान्य श्रेणी में परिवर्तित करके भर दिया गया है। यह एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के साथ धोखाधड़ी है, उनका हक मारा जा रहा है। इससे इन वर्गों के युवाओं के ऊपर नकारात्मक असर पड़ता है, जो डाक्टर बनना चाहते हैं और इसके लिए तैयारी कर रहे हैं। इसके अलावा इस हकमारी का असर उनके ऊपर भी पड़ता है, जो पूर्व में असिस्टेंट प्रोफेसर जैसे पदों पर पदस्थापित हैं और पदोन्नति हेतु अहर्ता होने के बावजूद उपेक्षित हैं। इससे उनके मनोबल में गिरावट आती है।
डॉ. अलावा कहते हैं कि यह भाजपा सरकार की सोच है कि एसटी और एससी, और ओबीसी वर्ग को आरक्षण से वंचित रखना है। ज्यादातर विभागों में, चाहें स्वास्थ्य विभाग हो, चाहें बिजली विभाग, चाहे शिक्षा विभाग या अन्य विभाग हो, इन्होंने संविदा के आधार पर नियोजन के जरिए रिजर्व पदों को भरकर आरक्षण को खत्म करने का काम किया है।
विधानसभा में उठे सवाल
ऐसे अनेक मामले मध्य प्रदेश विधानसभा में भी उठाए गए हैं। स्वयं डॉ. हिरालाल अलावा ने 2019 से लेकर अब तक इस सवाल को लेकर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया है। लेकिन अभी तक कोई संतोषजनक उत्तर राज्य सरकार द्वारा नहीं दिया गया है।
ताजा उदाहरण गत 3 जुलाई, 2024 का है। डॉ. अलावा ने गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी), भोपाल के फिजियोलॉजी विभाग में एसटी के लिए आरक्षित एसोसिएट प्रोफेसर पदोन्नति पद को अनारक्षित में परिवर्तित कर सामान्य वर्ग को नियुक्ति देने संबंधी प्रश्न विधानसभा में उठाए। मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी से संबद्ध यह मेडिकल कॉलेज राज्य सरकार के चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन स्वायत्तशासी मेडिकल कॉलेज है।
प्रश्न में डॉ. अलावा ने पूछा था कि संचालक, चिकित्सा शिक्षा संचालनालय, मध्य प्रदेश ने गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल के अधिष्ठाता को पत्र लिखा कि फिजियोलॉजी आरक्षित वर्ग का पद न्यायालय में विचाराधीन होने से उक्त पद को समर्पित कर अनारक्षित कॉलम में नहीं दर्शाना था। उक्त पद को अनारक्षित कॉलम में दर्शाने और उसपर नियुक्ति देने के लिए संबंधित नोडल अधिकारी-कर्मचारी दोषी हैं और उनके विरुद्ध कार्यवाही की जाए। इस पर उप मुख्यमंत्री सह, लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने 12 फरवरी, 2024 को विधानसभा में दिए गए उत्तर में उक्त पद को अनारक्षित कॉलम में दर्शाने को युक्तियुक्तकरण किया जाना क्यों कहा? और दोषी नोडल अधिकारी-कर्मचारी के विरुद्ध कॉलेज द्वारा कार्यवाही क्यों नहीं की गई? नेशनल मेडिकल काउंसिल, नई दिल्ली (एनएमसी) के किस मापदंड के तहत फिजियोलॉजी विभाग में एसटी के लिए आरक्षित उच्च श्रेणी के एसोसिएट प्रोफेसर के पद को खत्म करके उसी विभाग में निम्न श्रेणी का असिस्टेंट प्रोफेसर का पद सृजित किया? एनएमसी मापदंड का उल्लंघन क्यों किया गया? अप्रैल, 2019 से अर्हताधारक योग्य आरक्षित उम्मीदवार होते हुए भी फिजियोलॉजी विभाग में एसटी के लिए आरक्षित एसोसिएट प्रोफेसर पदोन्नति पद को मार्च, 2022 में समर्पित किए जाने से पहले ही उक्त पद पर आरक्षित उम्मीदवार को नियुक्ति क्यों नहीं दी गई?
डॉ. अलावा के उपरोक्त प्रश्नों के जवाब में उप-मुख्यमंत्री ने सदन में लिखित उत्तर में केवल इतना कहा कि उठाए गए प्रश्नों के संबंध में जानकारी एकत्रित की जा रही है।
दरअसल, पदोन्नति के पदों को मध्यप्रदेश लोक सेवा (पदोन्नति) नियम, 2002 के अनुसार आरक्षण मॉडल रोस्टर के तहत भरा जाता है, जिसमें प्रत्येक तीसरा पद अनुसूचित जनजाति सदस्य के लिए आरक्षित होता है।
इसकी पुष्टि जीएमसी, भोपाल के अधिष्ठाता द्वारा दिनांक 23 मार्च, 2018 और 29 अक्टूबर, 2019 को जारी विज्ञप्ति से भी होती है, जिसमें फिजियोलॉजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर पदोन्नति/सीधी भर्ती संवर्ग में तीसरा पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया गया था। लेकिन जीएमसी की प्रबंधक स्वशासी समिति ने 21 मई, 2022 को जारी अपनी विज्ञप्ति में उस आरक्षित पद को भी अनारक्षित श्रेणी में परिवर्तित कर दिया था।
इसी जीएमसी, भोपाल के माइक्रोबायोलॉजी एवं पैथोलॉजी विभाग में एसटी के लिए आरक्षित एसोसिएट प्रोफेसर के पद को विलोपित कर अनारक्षित कॉलम में दर्शाने एवं अनारक्षित वर्ग से भरे जाने का मामला डॉ. अलावा पूर्व में विधानसभा में कई बार उठा चुके हैं। हालांकि पैथोलॉजी विभाग में उपलब्ध आरक्षित वर्ग अभ्यर्थी को लगभग चार वर्ष तक परेशान किए जाने के बाद उस पद संबंधी त्रुटि को वर्ष 2023 में सुधार लिया गया, जबकि माइक्रोबायोलॉजी विभाग की त्रुटि अभी भी यथावत है और आरक्षित वर्ग अभ्यर्थी को पदोन्नति नहीं दी जा रही है, जबकि इसके लिए योग्य अभ्यर्थी उपलब्ध हैं।
यहां एक सवाल आरक्षण रोस्टर को लेकर भी उठता है कि क्या उक्त वैकेंसी में कॉलेज के बजाय विभाग को इकाई मानकर आरक्षण रोस्टर लागू किया गया? यह सवाल इसलिए कि उल्लिखित तीनों विभागों सहित अन्य विभागों के सभी एसोसिएट प्रोफेसर पदों को एक साथ मिलाकर आरक्षण रोस्टर लागू करने के बजाय विभागवार आरक्षण रोस्टर के आधार पर पदों को आरक्षित किया गया है।
क्या यह तय नियमों का स्पष्ट उल्लंघन नहीं है?
गौर तलब है कि डॉ. अलावा ने एसटी वर्ग के अभ्यर्थियों की हकमारी का सवाल विधानसभा के इतर भी उठाया। उदाहरण के लिए 5 अगस्त, 2021 को मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को पत्र लिखकर कहा था कि मध्य प्रदेश में संचालित शासकीय मेडिकल कॉलेजों में षड्यंत्र-पूर्वक एवं नियोजित तरीके से आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए उपलब्ध अवसरों को ख़त्म करने की साज़िश की जा रही है। अपने पत्र में उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया लगभग मध्य प्रदेश के सभी शासकीय मेडिकल कॉलेजों में अपनाई जा रही है, जिनमें स्वशासी मेडिकल कॉलेज भी शामिल हैं।
पत्र में इसका उदाहरण देते हुए डॉ. अलावा ने उल्लेखित किया कि 12 जनवरी, 2018 को मध्य प्रदेश शासन चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश में कहा गया कि मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों, चिकित्सकीय नर्सिंग एवं पैरामेडिकल स्टाफ तथा गैर शैक्षणिक संवर्ग की नियुक्ति के लिए “मध्यप्रदेश स्वशासी चिकित्सा महाविद्यालय आदर्श सेवा नियम, 2018” नियम जारी किया गया है। लेकिन इस नियम के उपनियम 3(ग) की अनुसूची-2 के कॉलम 4 तथा 5 में अस्पष्ट रुप से सीधी भर्ती तथा पदोन्नति/सीधी भर्ती का प्रावधान किया गया है। और इस प्रावधान का दुरुपयोग मेडिकल कॉलेजों में उपलब्ध अवसरों से आरक्षित/वंचित वर्ग के सदस्यों को वंचित करने के लिए एक साजिश के तौर पर किया जा रहा है।
डॉ. अलावा ने इसे सोदाहरण बताया कि उपरोक्त नियम के तहत मेडिकल कॉलेजों में आरक्षित वर्ग के पदों को अग्रनीत न करते हुए बैकलॉग पद अथवा रिक्त पद दिखाकर आरक्षण रोस्टर का मनमाने तरीके से व्याख्या कर नियम विरुद्ध जाकर अनारक्षित श्रेणी में आमेलन/परिवर्तित कर सीधी भर्ती द्वारा या पदोन्नति द्वारा अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों से भरी जा रही है।
डॉ. अलावा ने अपने पत्र में आरोप लगाया कि उपरोक्त प्रक्रिया न केवल षड्यंत्रकारी है, बल्कि असंवैधानिक, अनैतिक और आपराधिक भी है। इसलिए उन्होंने मांग की कि मध्य प्रदेश स्वशासी चिकित्सा महाविद्यालय आदर्श सेवा नियम, 2018 में आरक्षण नियम के अनुरुप अविलंब आवश्यक ठोस, स्पष्ट, सुगठित संशोधन कर प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में पूर्व में एवं वर्तमान में एसटी के पदों पर अनारक्षित वर्ग से की गई नियुक्तियों को निरस्त किया जाए और आरक्षित सीटों को अनारक्षित श्रेणी में परिवर्तित करने पर अविलंब रोक लगाई जाए।
एसटी कोटे की सीट सामान्य कोटे में तब्दील
दरअसल, इस मुद्दे को समझने के लिए मध्य प्रदेश लोक सेवा (पदोन्नति) नियम, 2002 को ध्यान में रखा जाना चाहिए, जिसका मकसद मध्य प्रदेश सरकार के मेडिकल कॉलेजों में पदोन्नति से भरे जानेवाले पदों के निर्धारण व नियोजन है। लेकिन पूर्व के नियम के बदले 2018 में एक नया आदर्श सेवा नियम बना दिया गया और इसके लागू होने के बाद से मेडिकल कॉलेजों में पदोन्नति पदों या पूर्व के बैकलॉग पदोन्नति पदों में आरक्षण संबंधी रोस्टर का पालन नहीं करने व आरक्षित वर्गों के पदों को अनारक्षित में परिवर्तित करने के आरोप लगने लगे।
इसे डॉ. अलावा के द्वारा 2 अगस्त, 2023 को तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखे एक पत्र से भी समझा जा सकता है। पत्र में उन्होंने उल्लेखित किया कि जीएमसी, भोपाल के 16 विभागों में एसटी के लिए आरक्षित बैकलॉग पदों पर अनारक्षित वर्ग की नियुक्तियां कर दी गईं।
डॉ. अलावा ने अपने पत्र में कॉलेज की शैक्षणिक संवर्ग एवं गैर-शैक्षणिक संवर्ग के रोस्टर संधारण हेतु डॉ. ए.के. श्रीवास्तव की अध्यक्षता में गठित समिति की 27 अक्टूबर, 2021 को हुई बैठक का उल्लेख किया है। समिति द्वारा जारी रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि जीएमसी, भोपाल के अधिष्ठाता (डीन) के पत्र क्रमांक 29061-69/एम.सी./स्था/04/राज भोपाल दिनांक 04/09/2021 में के आदेश अनुसार पूर्व में डॉ. ए.के. श्रीवास्तव के ही अध्यक्षता में गठित समिति के निर्देशानुसार एनाटॉमी विभाग, पी.एस.एम., गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, ई.एन.टी. विभाग, नेत्र रोग विभाग, रेडियोथेरेपी, मेडिसिन, प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग, बाल्य एवं शिशु रोग, टी.बी. चेस्ट विभाग, पैथोलॉजी विभाग, फार्माकोलोजी, जनरल सर्जरी, कार्डियोलॉजी एवं एनेस्थीसिया विभाग के आरक्षित कोटे के बैकलॉग पदों को अनारक्षित वर्ग में दर्शाया गया। और फिर इसके बाद इन पदों पर अनारक्षित वर्ग के लोगों की नियुक्ति कर दी गई।
डॉ. हिरालाल अलावा ने शिवराज सिंह चौहान को लिखे अपने पत्र में आरोप लगाया कि समिति ने जातिवादी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर आरक्षित वर्गों को संविधान में प्राप्त मूल अधिकारों की अवमानना कर आरक्षित वर्गों के साथ भेदभाव किया है। साथ ही उन्होंने ऐसा करने वालों की जवाबदेही तय कर उनके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई करने की मांग की।
बताते चलें कि आरक्षण रोस्टर में चिकित्सा शिक्षकों के पदों की श्रेणी में परिवर्तन की जांच के संबंध में दिनांक 12 जनवरी, 2021 और 6 जनवरी, 2021 को आयोजित बैठक में भी डॉ. लोकेंद्र दवे की अध्यक्षता में गठित जांच समिति ने अपने प्रतिवेदन में अभिमत दिया था कि आरक्षित श्रेणी के चिकित्सा शिक्षकों को संवैधानिक प्रतिनिधित्व से वंचित करना प्रतीत होता है।
खैर, डॉ. अलावा की पहल के बावजूद जीएमसी, भोपाल के उपरवर्णित 16 विभागों में से केवल पैथोलॉजी विभाग को छोड़कर अन्य विभागों की त्रुटि सुधारे जाने की जानकारी अभी तक नहीं है।
एसटी वर्ग के साथ हकमारी की बात केवल जीएमसी, भोपाल तक ही सीमित नहीं है। ऐसा ही मामला विदिशा जिले में स्थित अटल बिहारी वाजपेयी शासकीय मेडिकल कॉलेज (एबीवीजीएमसी) में भी देखने को आया।
इसे डॉ. अलावा के 27 जुलाई, 2021 को तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखे एक दूसरे पत्र से समझा जा सकता है। पत्र के अनुसार, एबीवीजीएमसी, विदिशा द्वारा 25 जुलाई, 2018 को 10 विषयों में कुल 24 पदों पर वैकेंसी जारी की गई। वैकेंसी में एसोसिएट प्रोफेसर के 2 पद, असिस्टेंट प्रोफेसर के 5 पद और ट्यूटर के 6 पद एसटी के लिए आरक्षित थे। उक्त पद रिक्त रह जाने की स्थिति में 10 सितंबर, 2018 और 31 मई, 2019 को जारी वैकेंसी में पुनः ये पद एसटी के लिए आरक्षित दर्शाए गए। लेकिन 31 जुलाई, 2020 को जारी वैकेंसी में एसटी के लिए आरक्षित पदों को अनारक्षित श्रेणी में परिवर्तित कर दिया गया। उदाहरण के लिए यह सारणी देखें–
यहां एक सवाल यह भी है कि क्या यहां भी आरक्षण रोस्टर कॉलेज को इकाई न मानते हुए विभागवार ही लागू नहीं किया गया?
साजिशों की कोई सीमा नहीं
खैर, डॉ. अलावा के पत्र पर कार्रवाई करते हुए मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार द्वारा 31 जुलाई, 2020 की वैकेंसी को रद्द कर पुनः 5 नवंबर, 2020 को 18 विषयों में कुल 35 पदों के लिए वैकेंसी निकाली गई, जिसमें उक्त पदों को पुनः एसटी की श्रेणी में दर्शाया गया। वैकेंसी में एसोसिएट प्रोफेसर के 5, असिस्टेंट प्रोफेसर के 8 और ट्यूटर के 7 पद एसटी वर्ग के लिए आरक्षित थे। लेकिन षड्यंत्र यह देखिए कि 11 जून, 2021 को कुल 53 पदों के लिए जारी वैकेंसी में फिर से एसटी के लिए आरक्षित एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर एवं ट्यूटर के पदों को अनारक्षित श्रेणी में तथा ट्यूटर के कुछ पदों को ओबीसी श्रेणी में परिवर्तित कर दिया गया। और बाद में इन पदों पर नियुक्तियां भी कर दी गईं। विदिशा मेडिकल कॉलेज द्वारा जारी वैकेंसी के विज्ञापनों को उदाहरण के रूप में यहां देखिए–
5 नवंबर, 2020 को जारी वैकेंसी | 11 जून, 2021 को जारी वैकेंसी | परिणाम/निष्कर्ष |
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पैथोलॉजी विषय में एसोसिएट प्रोफेसर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद अनारक्षित श्रेणी में परिवर्तित | 18 अप्रैल, 2022 को इस पद को अनारक्षित वर्ग से भरा गया |
मेडिसिन विषय में एसोसिएट प्रोफेसर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद अनारक्षित श्रेणी में परिवर्तित | अगली वैकेंसी (14 दिसंबर, 2021 एवं 31 मई, 2022) में पुनः अनारक्षित श्रेणी में फारवर्ड |
सर्जरी विषय में एसोसिएट प्रोफेसर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद अनारक्षित श्रेणी में परिवर्तित | 28 अक्टूबर, 2021 को इस पद को अनारक्षित वर्ग से भरा गया |
स्त्री रोग एवं प्रसूति विषय में एसोसिएट प्रोफेसर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद अनारक्षित श्रेणी में परिवर्तित | 28 अक्टूबर, 2021 को इस पद को अनारक्षित वर्ग से भरा गया |
एनेस्थिसिया विषय में एसोसिएट प्रोफेसर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद अनारक्षित श्रेणी में परिवर्तित | 14 दिसंबर, 2021 को जारी वैकेंसी में अनारक्षित श्रेणी में पुनः फारवर्ड। 19 फरवरी, 2022 को साक्षात्कार परिणाम में उस पद पर कोई नियुक्ति नहीं हुई। 31 मई, 2022 को जारी वैकेंसी में वह पद विलोपित था। क्या उस पद को गायब कर दिया गया? |
एनाटामी विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद अनारक्षित श्रेणी में परिवर्तित | 28 अक्टूबर, 2021 को इस पद को अनारक्षित वर्ग से भरा गया |
फिजियोलॉजी विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद अनारक्षित श्रेणी में परिवर्तित | 28 अक्टूबर, 2021 को इस पद को अनारक्षित वर्ग से भरा गया |
फार्माकोलॉजी विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद अनारक्षित श्रेणी में परिवर्तित | 28 अक्टूबर, 2021 को इस पद को अनारक्षित वर्ग से भरा गया |
पैथोलॉजी विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद ओबीसी श्रेणी में परिवर्तित | 19 फरवरी, 2022 को इस पद को ओबीसी वर्ग से भरा गया |
माइक्रोबायोलॉजी विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद अनारक्षित श्रेणी में परिवर्तित | 28 अक्टूबर, 2021 को इस पद को अनारक्षित वर्ग से भरा गया |
वैकेंसी में स्त्री रोग एवं प्रसूति विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर का एक ही पद था, जो एसटी के लिए आरक्षित था | वैकेंसी में स्त्री रोग एवं प्रसूति विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर का एक पद अनारक्षित एवं एक ओबीसी वर्ग में दर्शाया गया। एसटी पद को इन्हीं दोनों में से किसी श्रेणी में परिवर्तित किया गया। | 21 जून, 2022 को जारी वैकेंसी में स्त्री एवं प्रसूति विषय में एक पद अनारक्षित, एक पद एससी और एक पद एसटी वर्ग में दर्शाया गया। इसमें अनारक्षित और एससी वर्ग के पद पर 8 सितंबर, 2022 को नियुक्ति हुई और एसटी पद को फारवर्ड किया गया। |
वैकेंसी में एनेस्थिसिया विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर का एक ही पद था, जो एसटी के लिए आरक्षित था | यह पद अनारक्षित श्रेणी में परिवर्तित कर एनेस्थिसिया विषय में दो पद अनारक्षित वर्ग में दर्शाए गए। | 14 दिसंबर, 2021 को जारी वैकेंसी में एक पद अनारक्षित, एक पद ओबीसी और एक पद एसटी वर्ग में दर्शाए गए। जिसमें 19 फरवरी, 2022 को अनारक्षित पद पर नियुक्ति की गई। 21 जून, 2022 को जारी वैकेंसी में एसटी का पद फारवर्ड किया गया जबकि एससी का पद ओबीसी श्रेणी में परिवर्तित कर दिया गया। |
वैकेंसी में अस्थि रोग विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर का एक ही पद था, जो एसटी के लिए आरक्षित था | वैकेंसी में अस्थि रोग विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर का एक पद अनारक्षित एवं एक पद ओबीसी वर्ग में दर्शाया गया। एसटी पद को इन्हीं दोनों में से किसी श्रेणी में परिवर्तित किया गया। | 14 दिसंबर, 2021 को जारी वैकेंसी में एक पद अनारक्षित, एक पद ओबीसी और एक पद एसटी वर्ग में दर्शाए गए। जिसमें 17 फरवरी, 2022 को अनारक्षित और ओबीसी पद पर नियुक्ति की गई। 21 जून, 2022 को जारी वैकेंसी में एसटी का पद फारवर्ड किया गया। |
एनाटामी विषय में ट्यूटर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद ओबीसी श्रेणी में परिवर्तित | 28 अक्टूबर, 2021 को इस पद को ओबीसी वर्ग से भरा गया |
फिजियोलॉजी विषय में ट्यूटर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद ओबीसी श्रेणी में परिवर्तित | 28 अक्टूबर, 2021 को इस पद को ओबीसी वर्ग से भरा गया |
बायोकेमिस्ट्री विषय में ट्यूटर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद ओबीसी श्रेणी में परिवर्तित | 28 अक्टूबर, 2021 को इस पद को ओबीसी वर्ग से भरा गया |
फार्माकोलॉजी विषय में ट्यूटर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद ओबीसी श्रेणी में परिवर्तित | 28 अक्टूबर, 2021 को इस पद को ओबीसी वर्ग से भरा गया |
माइक्रोबायोलॉजी विषय में ट्यूटर का एक पद एसटी के लिए आरक्षित | यह पद ओबीसी श्रेणी में परिवर्तित | 28 अक्टूबर, 2021 को इस पद को ओबीसी वर्ग से भरा गया |
कम्यूनिटी मेडिसिन विषय में ट्यूटर का एक पद अनारक्षित, एक पद एससी के लिए तथा एक पद एसटी के आरक्षित | एससी के लिए आरक्षित पद ओबीसी श्रेणी में परिवर्तित | 28 अक्टूबर, 2021 को अनारक्षित और ओबीसी पद को अनारक्षित और ओबीसी वर्ग द्वारा भरा गया, जबकि एसटी का पद फारवर्ड किया गया। |
इस सारणी से साफ है कि किस तरह एससी, एसटी और ओबीसी के संबंध में अनियमितताओं को अंजाम दिया गया। इस बारे में जब डॉ. अलावा द्वारा विधानसभा में 23 मार्च, 2022 को प्रश्न पूछा गया तब जवाब में तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने नकारते हुए कहा कि संस्था द्वारा संधारित त्रुटिपूर्ण रोस्टर में सुधार किया गया है। और यह सवाल कि क्या एसटी के बैकलॉग पदों को 16 मार्च, 2021, 11 जून, 2021 और 14 दिसंबर, 2021 को जारी विज्ञप्तियों में अनारक्षित वर्ग से पूर्ति करने में अनियमितता हुई है, का जवाब मंत्री ने बिना स्पष्ट कारण बताते हुए नकार दिया। और एसटी के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य श्रेणी में परिवर्तित किए जाने की वैधता के सवाल पर भी मंत्री ने अपना जवाब ‘नहीं’ में दिया।
चौंकानेवाली एक बात यह भी सामने आई कि विदिशा मेडिकल कॉलेज द्वारा पिछले छह वर्षों में जारी की गई वैकेंसियों में प्रोफेसर का कोई पद एसटी, एससी, ओबीसी के आरक्षित कैटेगरी में नहीं दर्शाया गया। इसके अलावा आरक्षण रोस्टर के अनुसार एससी और ओबीसी कैटेगरी के लिए स्वीकृत एसोसिएट प्रोफेसर एवं असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों में भी अनियमितताएं देखी गईं।
ऐसे ही रतलाम मेडिकल कॉलेज में भी पिछले पांच वर्षों में जारी वैकेंसी में प्रोफेसर का कोई भी पद एसटी, एससी, ओबीसी के लिए आरक्षित नहीं था।
एक रोस्टर, अनेक बहाने
यहां सवाल यह उठता है कि क्या मध्य प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण रोस्टर विभागवार लागू होता है या पूरे कॉलेज को एक इकाई मानकर? और यह कौन तय करता है?
इस संबंध में संचालक, चिकित्सा शिक्षा संचालनालय, मध्य प्रदेश डॉ. अरूण श्रीवास्तव ने फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर बातचीत में कहा कि “पदों में आरक्षण रोस्टर संबंधी मामलों में कॉलेज के डीन डील करते हैं। इस संबंध में डीन ही बेहतर बता सकते हैं।”
जबकि विदिशा मेडिकल कॉलेज में तत्कालीन डीन रहे डॉ. सुनील नंदेश्वर ने दूरभाष पर बताया कि “आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षित पदों का सामान्य श्रेणी में परिवर्तन मेरे द्वारा नहीं किया गया। पदों में आरक्षण या स्वीकृति के सारे मामले चिकित्सा शिक्षा संचालनालय स्तर पर किए जाते हैं। वहां से जैसा आदेश आता है, हम उसे लागू करते हैं।”
जबकि विदिशा मेडिकल कॉलेज के वर्तमान डीन डॉ. मनीष निगम ने दूरभाष पर कहा कि “कलेक्ट्रेट ऑफिस और डीएमई ऑफिस के द्वारा लोकल स्तर या कॉलेज स्तर पर एक कमिटी गठित होती है, वही शिक्षकों के पदों में आरक्षण रोस्टर के बारे में निर्णय लेती है, या फिर चिकित्सा शिक्षा संचालनालय द्वारा निर्णय लिया जाता है। आरक्षण का रोस्टर कॉलेज में विभागवार होता है या कॉलेजवार, इसकी जानकारी मुझे नहीं है।”
वहीं आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षित पदों के अनारक्षित में परिवर्तित करने के मामले में उन्होंने कहा कि “मैं उस समय नहीं था, इसलिए इसकी जानकारी मुझे नहीं है।”
वहीं, महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, इंदौर के डीन संजय दीक्षित ने दूरभाष पर जानकारी दी कि “मेरे कॉलेज में आरक्षण रोस्टर कॉलेजवार नहीं, विभागवार लागू किया जाता है।”
जबकि शासकीय मेडिकल कॉलेज, रतलाम की डीन डॉ. अनीता मुथा ने दूरभाष पर कहा कि “आरक्षण रोस्टर अभी कॉलेजवार लागू हो रहा है, पहले का मुझे पता नहीं है।” गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल की डीन कविता सिंह ने कहा कि ऐसी कोई जानकारी हम नहीं देते हैं।
एक दिलचस्प स्वीकारोक्ति मध्य प्रदेश के ही एक शासकीय मेडिकल कॉलेज के डीन ने इस शर्त पर की कि उनका नाम न छापा जाय। उन्होंने कहा कि “मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण रोस्टर पहले विभागवार लागू होता था, लेकिन वर्तमान में विषयवार सभी मेडिकल कॉलेजों के स्तर पर संयुक्त रोस्टर बनाए जा रहे हैं। इसमें केंद्र सरकार के नियमों के कारण बीच में कुछ बदलाव किया गया था। हालांकि अभी यह विभाग और कॉलेज, दोनों स्तर पर चल रहा है। जबकि व्यवहारिक तौर पर इसे संस्थान के स्तर पर अमल में लाया जाना माना जाता है।”
खैर, एक मामला रतलाम मेडिकल कॉलेज में भी देखने को मिला, जिसमें आरक्षण रोस्टर का पालन नहीं करते हुए एसटी के लिए आरक्षित सह-प्राध्यापक पदों को अनारक्षित में परिवर्तित कर दिया गया। इस कॉलेज में आरक्षण रोस्टर अनुसार भरे एवं रिक्त पदों के परीक्षण हेतु गठित समिति का दिनांक 5 मई, 2022 को बैठक आयोजित किया गया। उक्त बैठक में समिति ने पैथोलॉजी एवं निश्चेतना विभाग के तीसरे पद को एसटी के लिए आरक्षित कर एसटी उम्मीदवार से भरे जाने की अनुशंसा की। बैठक में समिति ने कहा कि म.प्र. लोक सेवा (अ.जा., अ.ज.जा. और अ.पि.व. के लिए आरक्षण) अधिनियम 1994 की उपधारा (4) का पालन नहीं किया गया तथा पदों का समायोजन किया गया तथा सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश क्र. एफ 07-55/2021/आ.प्र./एफ भोपाल दिनांक 31 जनवरी, 2022 का भी पालन नहीं किया गया।
जबकि उक्त पदों पर समिति के अनुशंसाओं को लागू ही नहीं किया गया, और उसमें से एक पद का मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है।
मध्य प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में यह भी आरोप लग रहे हैं कि प्रोफेसर के अधिकतर पदों पर भी आरक्षण रोस्टर को लागू नहीं किया गया है, और वर्षों से वे पद अनारक्षित वर्ग में ही दर्शाएं जाकर अनारक्षित वर्ग द्वारा ही भरे जा रहे हैं।
मसलन, रतलाम मेडिकल कॉलेज की अगर बात करें तो पिछले पांच वर्षों में जितनी विज्ञप्तियां निकलीं, उसमें प्रोफेसर के पद अनारक्षित श्रेणी में ही दर्शाए गए हैं।
वहीं इंदौर के महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज (एमजीएमएमसी) के बारे में कहा जाता है कि फिजियोलॉजी विभाग में प्रोफेसर का पद कभी आरक्षित श्रेणी में नहीं दर्शाया गया। वर्तमान में अभी यह आरोप लग रहे हैं कि फिजियोलॉजी विभाग में अनारक्षित प्रोफेसर पद पर योग्य एसटी कैंडिडेट को षड्यंत्रपूर्वक प्रोफेसर बनने से रोका गया।
एसटी समुदाय की सुपात्र अभ्यर्थी को नहीं बनने दिया गया प्रोफेसर
आरक्षित वर्ग की हकमारी के मामले ऐसे भी समझें कि एमजीएमएमसी, इंदौर के फिजियोलॉजी विभाग में अनुसूचित जनजाति के पात्र अभ्यर्थी को प्रोफेसर नहीं बनने दिया गया।
दरअसल हुआ यह था कि इस मेडिकल कॉलेज के फिजियोलॉजी विभाग में प्रोफेसर के अनारक्षित रिक्त पद पर विभागीय अभ्यर्थियों के आवेदन आमंत्रित किये गये थे। इसके आलोक में 28 जून, 2023 को हुए साक्षात्कार के लिए डॉ. वेस्ती रणदा, डॉ. अजय भट्ट व डॉ. अमरजीत सिंह छाबड़ा का नाम चयनित किया गया। इनमें डॉ. वेस्ती रणदा अनुसूचित जनजाति वर्ग से आती हैं।
बताया जाता है कि इनमें सबसे योग्य उम्मीदवार डॉ. वेस्ती रणदा थीं। इसके बावजूद उन्हें प्रोफेसर के पद पर पदोन्नत नहीं किया गया, जबकि डॉ. अजय भट्ट व डॉ. अमरजीत सिंह छाबड़ा को प्रोफेसर पद पर पदोन्नत कर दिया गया।
यह नियमों को ताक पर रख कर किया गया। डॉ. रणदा को प्रोफेसर के पद से वंचित करने के लिए गलत दस्तावेज तैयार किए गए, जिसे ‘प्रोराटा शीट’ कहते हैं। इसमें कॉलम 3 में अधिकतम 10 अंक थे, जिसमें डॉ. अजय भट्ट को 4 अंक मिलना चाहिए थे, क्योंकि उनके एमबीबीएस में तीन अटेम्प्ट थे। और नियमानुसार 1 अटेम्प्ट के 2 अंक कम किये जाते हैं। तो तीन अटेम्प्ट के 6 अंक कम हो जायेंगे। लेकिन डॉ. अजय भट्ट को 8 अंक दिए गए जो कि गलत है। कॉलम 4 में अधिकतम 20 अंक है। डॉ अजय भट्ट को 18 अंक मिलने चाहिए थे, क्योंकि एमडी में उनका एक एक्स्ट्रा अटेम्प्ट है। तो 2 अंक कम हो जाएंगे। लेकिन इनको पूरे 20 अंक दिए गए, जो कि गलत है। डॉ. अजय भट्ट ने शैक्षणिक योग्यताएं – प्रमाण पत्र एवं अंकसूची की सत्यापित छायाप्रति में खुद ही यह सब लिख कर दिए हैं। इसके बावजूद भी डीन ने कम अटेम्प्ट काउंट किया और गलत तरीके से ज्यादा नंबर दिए हैं। ऐसे ही कॉलम 6 में इनको जीरो (0) अंक मिलने चाहिए थे क्योंकि इनका रेगुलर एसोसिएट प्रोफेसर का 3 वर्ष भी पूरे नहीं हुए थे, जो अनिवार्य थे। लेकिन इनको 4 अंक दिए गए जो कि गलत है। इस प्रकार डॉ. अजय भट्ट को अनुचित लाभ देने के लिए डीन, स्क्रुटनी कमिटी एवं अन्य अधिकारियों द्वारा गलत दस्तावेज तैयार किया गया।
डॉ. वेस्ती रणदा बताती हैं कि वह राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान, आयोग नई दिल्ली द्वारा 14 फरवरी, 2022 को जारी टीइक्यू (टीचर्स एलीजीबिलिटी क्वालिफिकेशंस) के अनुसार प्रोफेसर पद के लिए सभी अर्हताओ के साथ उनका नियमित एसोसिएट प्रोफेसर का अनुभव 4 वर्ष था। इस नियम के अनुसार प्रोफेसर पद हेतु एसोसिएट प्रोफेसर के रूप मे 3 वर्ष का कार्यानुभव अनिवार्य है। डॉ. रणदा ने बताया कि वह पिछले 1 वर्ष 5 महीने से प्रभारी विभागाध्यक्ष का कार्यभार संभाल रही थीं। इन सबके आधार पर वह एकमात्र पात्र अभ्यर्थी थीं।
दिनांक 3 जुलाई, 2023 को डॉ. अलावा द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखे पत्र के हवाले से कहा गया है कि राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान, आयोग नई दिल्ली द्वारा दिनांक 14.02.2022 को जारी टीइक्यू के अनुसार डॉ. अजय भट्ट व डॉ. अमरजीत सिंह छाबड़ा प्रोफेसर पद की पात्रता शर्तों के अनुसार सभी आवश्यक योग्यताओं तथा अर्हताओं को पूर्ण नही करते थे। डॉ. भट्ट का मूल नियुक्ति पद बायोफिजिक्स है। जिसमें सिर्फ असिस्टेंट प्रोफेसर का पद है, इसमें एसोसिएट प्रोफेसर एवं प्रोफेसर का कोई भी पद नहीं है। इसकी वरिष्ठता सूची भी अलग ही बनती थी। बायोफिजिक्स मूल पद परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। मध्यप्रदेश शासन चिकित्सा शिक्षा विभाग मंत्रालय भोपाल का आदेश क्रमांक एफ 2-29/2017/1/55, दिनांक 12/07/2017 के अनुसार डॉ. भट्ट के मूल पद बायोफिजिक्स को फिजियोलॉजी में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। अधिष्ठाता, एमजीएमएमसी, इंदौर के पत्र-क्रमांक 2833-38/स्था/वि/स्व./2023 दिनांक-22.02.2023 द्वारा डॉ. भट्ट के समयबद्ध पदोन्नति आदेश के बिंदु-क्रमांक 4 एवं 5 में स्पष्ट लिखा है कि उन्हें एसोसिएट प्रोफेसर की वरिष्ठता सूची में स्थान नहीं दिया जाएगा। डॉ. भट्ट की एक वर्ष की बायोफिजिक्स में ट्रेनिंग नहीं थी फिर भी नियम विरुद्ध इनको असिस्टेंट प्रोफेसर बायोफिजिक्स के पद पर नियुक्ति दी गई, जबकि नियम के अनुसार ट्रेनिंग अनिवार्य थी। डॉ. भट्ट के द्वारा याचिका-क्रमांक 20645/2017 म.प्र. शासन व अन्य के विरुद्ध पद परिवर्तन (बायोफिजिक्स से फिजियोलॉजी) हेतु न्यायालय में विचाराधीन है। फिर भी इनको दो बार (एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर) पदोन्नती का अनुचित लाभ दिया गया।
इसी सिलसिले में इंदौर संभाग आयुक्त कार्यालय द्वारा दिनांक 20 दिसंबर, 2023 को अधिष्ठाता एमजीएमएमसी, इंदौर को प्रोफेसर पद की नियुक्ति में अनियमितता होने से की गई नियुक्ति निरस्त करने का पत्र लिखा गया। उक्त पत्र में कहा गया कि डॉ. अजय भट्ट की नियुक्ति प्रोफेसर फिजियोलॉजी, एमजीएमएमसी, इंदौर की विधि विपरीत होने की वजह से तत्काल निरस्त कर अवगत करावें। जिसके बाद 27 दिसंबर, 2023 को एमजीएमएमसी, इंदौर के अधिष्ठाता के आदेश द्वारा डॉ. अजय भट्ट की प्रोफेसर पद पर नियुक्ति निरस्त कर दिया गया।
डॉ. रणदा का आरोप है कि प्रोफेसर पद की नियुक्ति के समय प्रोराटा सूची में उनका नाम क्रमांक 2 पर है, अतः डॉ. अजय भट्ट की नियुक्ति अनियमितता के कारण निरस्त होने के बाद डॉ. रणदा द्वारा पुनः प्रोफेसर पद पर अपनी नियुक्ति के लिए आवेदन पत्र प्रस्तुत किया गया। लेकिन फिर भी उनको नियुक्ति नहीं दी गई, क्योंकि डॉ. अजय भट्ट की 27 दिसंबर, 2023 को नियुक्ति रद्द की गई थी और उनको पर्सनली नियुक्ति रद्द वाला पत्र दे दिया गया ताकि वह कोर्ट में जाकर स्टे ले आए और नियुक्ति रद्द वाला पत्र डिपार्टमेंट में 17 जनवरी, 2024 को दिया गया। डॉ. अजय भट्ट कोर्ट से स्टे लाकर अभी भी प्रोफेसर के पद पर ड्यूटी पर हैं।
खैर, यह मामला भी 19 फरवरी, 2024 को विधानसभा में उठा, जिसके जवाब में उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ने कहा कि प्रसंगाधीन साक्षात्कार के अनुसार डॉ. वेस्ती रणदा की समयबद्ध एसोसिएट प्रोफेसर पद का अनुभव 4 वर्ष से अधिक था। अमरजीत सिंह छाबड़ा का एसोसिएट प्रोफेसर का अनुभव 1 वर्ष 8 महीना था, और एनएमसी द्वारा दिनांक 8 जून, 2023 को उन्हें प्रोफेसर के पद हेतु अर्हता संबंधी प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया था। डॉ. अजय भट्ट का असिस्टेंट प्रोफेसर पद का अनुभव 1 वर्ष 8 महीने था, और समयबद्ध एसोसिएट प्रोफेसर का अनुभव 3 वर्ष 5 महीने से अधिक था। इस तरह डॉ. वेस्ती रणदा एकमात्र योग्य उम्मीदवार नहीं थीं, बल्कि तीनों ही अभ्यर्थी पात्र थे।
इस संबंध में विधायक डॉ. हिरालाल अलावा ने विधानसभा में प्रश्न पूछा कि डॉ अमरजीत सिंह छाबड़ा को प्रोफेसर पद हेतु एनएमसी द्वारा दिए गए अर्हता संबंधी प्रमाण-पत्र की प्रामाणिकता की जांच कब और कैसे की गई? जबकि उक्त पत्र की प्रतिलिपि किसी भी शासकीय चिकित्सा कार्यालय या मेडिकल कॉलेज को न भेजकर व्यक्तिगत पते पर भेजा गया। इसके जवाब में उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ने जवाब नहीं दिया और कहा कि जानकारी एकत्रित की जा रही है।
ऐसे ही डॉ. अलावा ने डॉ. अजय भट्ट को बायोफिजिक्स विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर पद से फिजियोलॉजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर एवं प्रोफेसर पद पर पदोन्नति को लेकर भी सवाल खड़ा किया तथा पूछा कि यह किस नियम के तहत किया गया, क्योंकि चिकित्सा शिक्षा विभाग, राज्य सरकार के आदेश द्वारा डॉ. भट्ट का मूल पद बायोफिजिक्स से फिजियोलॉजी में परिवर्तन अमान्य किया गया एवं अधिष्ठाता, महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, इंदौर के पत्र-दिनांक 22.02.2023 में बिंदु-क्रमांक 4 एवं 5 में स्पष्ट लिखा है कि उन्हें एसोसिएट प्रोफेसर की वरिष्ठता सूची में स्थान नहीं दिया जाएगा। साथ ही, डॉ. अलावा ने यह सवाल भी खड़ा किया कि डॉ. भट्ट की एक वर्ष की बायो फिजिक्स में ट्रेनिंग नहीं थी तो उन्हें असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति क्यों दी गई, जबकि नियम के अनुसार ट्रेनिंग अनिवार्य थी? और यह पद परिवर्तन का मामला (बायोफिजिक्स से फिजियोलॉजी) न्यायालय में विचाराधीन है, फिर भी इनको दो बार पदोन्नति का अनुचित लाभ क्यों दिया गया?
एक बार फिर उप मुख्यमंत्री सह लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने केवल इतना ही कहा कि उठाए गए प्रश्नों के संबंध में जानकारी एकत्रित की जा रही है।
ऐसा ही एक मामला वर्ष 2020 में शासकीय मेडिकल कॉलेज रतलाम के सर्जरी विभाग में देखने को मिला, जब अनारक्षित एसोसिएट प्रोफेसर पद पर एसटी कैंडिटेट के ज्यादा योग्य होने के बावजूद भी सामान्य वर्ग के कैंडिडेट को नियुक्ति दे दी गई।
दरअसल सर्जरी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर पद के लिए डॉ. विक्रम मुजाल्दे और डॉ. अतुल कुमार ने आवेदन दिया। डॉ. विक्रम मुजाल्दे एसटी वर्ग से आते हैं।
प्रोराटा शीट के अनुसार डॉ. विक्रम मुजाल्दे के अंक डॉ. अतुल कुमार के कुल अंक से 8 अंक ज्यादा थे। लेकिन इंटरव्यू में डॉ. विक्रम मुजाल्दे को 20 में से सिर्फ 8 अंक दिए गए, जबकि डॉ. अतुल कुमार को 16 अंक दिए गए। और इस तरह डॉ. अतुल कुमार का चयन एसोसिएट प्रोफेसर पद पर कर लिया गया।
यहां यह भी ध्यान देनेवाली बात है कि 2020 में रतलाम मेडिकल कॉलेज के अधिष्ठाता डॉ. संजय दीक्षित थे और वर्तमान में महात्मा गांधी स्मृति मेडिकल कॉलेज के अधिष्ठाता डॉ. संजय दीक्षित ही हैं।
सवाल शेष हैं
बहरहाल, मेडिकल कॉलेजों में अनियमितताएं और जातिगत उत्पीड़न की खबरें कम ही सामने आ पाती हैं। डॉ. हिरालाल अलावा का कहना गैरवाजिब नहीं कि एससी-एसटी वर्ग के जनप्रतिनिधियों को अपने वर्ग के हक-अधिकारों को लेकर विधानसभा और संसद में मुखर होना चाहिए। खासतौर से भाजपा द्वारा आरक्षण खत्म करने की साजिश और एससी-एसटी वर्ग के रिजर्व पदों को सामान्य में कनवर्ट करने के मुद्दों पर एससी-एसटी जनप्रतिनिधियों को खुलकर अपना पक्ष वहां रखना चाहिए। वे स्वीकारते हैं कि आरक्षित वर्गों के कई जनप्रतिनिधि मुखर नहीं हैं, तो इसकी वजह उनमें अपने समाज और अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी है। वहीं कुछ जागरूक होते हुए भी अनजान बन रहे हैं और निजी स्वार्थ के कारण हक-अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठा रहे हैं तो ऐसे जनप्रतिनिधियों को जनता और समाज को मिलकर सबक सिखाना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि एसटी-एससी के आरक्षित पदों को जब सामान्य वर्ग से भरा जा रहा है तो हमारी राष्ट्रपति महोदया, जो खुद आदिवासी हैं, एसटी आयोग और सुप्रीम कोर्ट को भी स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। इस देश की संवैधानिक व्यवस्था को बचाने एवं बनाए रखने के लिए अपनी ओर से विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका को एक्शन लेना चाहिए। एसटी और एससी वर्ग की भागीदारी स्वास्थ्य के प्रमुख पदों पर नहीं के बराबर होने से एसटी-एससी बाहुल्य क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जो नीतियां बननी चाहिए, वह नहीं बन रही हैं। खासतौर से ग्रामीण इलाकों में एसटी-एससी बाहुल्य इलाकों में अच्छे आधुनिक अस्पताल होने चाहिए। ग्रामीण-दूरदराज के इलाकों, ट्राइबल इलाकों में मेडिकल कॉलेज होना चाहिए। मध्य प्रदेश सरकार या केंद्र सरकार आदिवासी इलाकों में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं दे पाई। आदिवासियों का प्रतिनिधित्व स्वास्थ्य सेवाओं के प्रमुख पदों पर नहीं के बराबर है। नीति निर्माण में उनको शामिल ही नहीं किया जा रहा है।