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महामारी की लहरें, निर्धंनता का सागर तथा अमीरी के शिखर

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डॉ. अभिजित वैद्य

मुठ्ठीभर लोगों को हाथों में जमा होनेवाली उबकाउ वाणी संपदा विश्व के अर्थकारण की
बहुत पुरानी चुनौती है l जब संपत्ति ऐसे लोगों के हाथ में संचित होने लगती है तब वह ज्यादातर लोगों
को दरिद्रता की ओर ढकेल देती है और उन्हें और अधिक दरिद्री बना देती है l संपत्ति निर्मिती एवं उसका
वितरण समताधिष्ठित प्रक्रिया नहीं होती l इतना होने पर भी मुट्ठीभर लोगों के पास अमर्यादित संपत्ति कैसे
इकठ्ठा होती है इसका अभ्यास करने पर एक बात आसानी से नजर आती है – संपत्ति का चरमसीमा का
केंद्रीकरण तब ही होता है जब किसी से वह छीन ली जाती है l अमीरी छीनकर ही निर्माण की जाती है और
दरिद्रता लाद दी जाती है l उबकाऊ वाणी संपदा की प्रक्रिया नैतिकता, कानून तथा मानवता पर आधारित
नहीं होती l हाल ही में प्रसिद्ध हुए ‘ग्लोबल औक्सफॅम दावोस रिपोर्ट २०२२’ ने इस सच को फिर एक बार
अधोरेखित किया है , इस अहवाल की भारतीय अर्थव्यवस्था का वास्तव सम्मुख लानेवाली पुरवणी तो हमें
नींद से खड़ा करनेवाली है l
गत दो सालों से पूरा विश्व शतीं में एकबार आनेवाली महामारी का सामना कर रहा है l इस महामारी ने
पृथ्वी के मानव-जाती को अनेक महिने जेरबंद किया, करोड़ों के प्राण लिए, अरबों का कामधंदा छीन लिया
l हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी का अहंकार, अज्ञान एवं तानाशाही प्रवृत्ति ने कोरोना महामारी पूरे देश को
आर्थिक दृष्टिकोन से रसातल में ले गई l देश की आर्थिक विषमता एवं बेकारी शिखरतक पहुँच गई l
भारतीय समाज में सामाजिक एवं आर्थिक विषमता का दुष्टचक्र हजारों सालों से है l महामारी एवं महागुरु
ने इसमें अकल्पनीय वृध्दि की l लेकिन भारतीय समाज महामारी की लहरों के प्रहार सहन करते समय
दरिद्रता के इस महासागर में अमीरों की मुट्ठीभर शिखरे अधिक ही चोटी पर पहुँच गईं l यह सब वास्तव
‘ग्लोबल औक्सफॅम दावोस रिपोर्ट २०२२’ की भारतीय पुरवणी द्वारा सम्मुख लाया है l
देश की कुल संपदा से केवल ६% संपदा नीचले स्तर के ५०% लोगों के पास है l महामारी के दरमियान देश
के ८४% परिवारों का उत्पन्न चिंतामय स्थिति में घट गया l बेकारी १५% तक पहुँची गत साल में कुल १२
करोड़ रोजगार चले गए l मनमोहनसिंह सरकार की जिस ‘मनरेगा’ योजना की मोदीजी ने हमेशा चेष्टा की
उस योजना में २०२१ में उच्चकोटी का पंजीयन हुआ l देश में बेकारी बढ़न का यह चिंताजनक निदर्शक है l ‘

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युनो के अन्न एवं कृषि संघटना ’ ने विश्व के ‘ अन्न सुरक्षा एवं पोषण ‘ की स्थिति का २०२१ में प्रसिद्ध किए
हुए अहवाल के अनुसार भारत में २० करोड़ से भी अधिक जनता कुपोषित है l भारत के न्यूनतम वेतन की
स्थिति भयानक है l सत्पथी आयोग ने जनवरी २०१९ में न्यूनतम वेतन प्रतिदिन रु.३७५/- तथा प्रति
महिना रु. ९७५०/- किया जाये ऐसी सिफारिश की थी l सरकारने पहले से ही जो रु.१७६/- इतना वेतन
था उसमें १.१३% वृध्दि करके वो प्रति दिन रु.१७८/- किया l अकुशल मजदूरों के लिए रु.४११/- से
प्रतिदिन रु.४१७/- किया l अर्धकुशल मजदूरों का रु.४४९/- से रु.४५५/- तथा कुशल मजदूरों का रु.४८८/-
से ४९५/- प्रतिदिन किया l गत जनगणना में यह नजर आया की रोजीना पर कमाई करनेवाले प्रतिदिन
केवल रु.१५०/- या इससे भी कम कमाते है l यह बात स्वाभाविक है की २०२० साल में हुई आत्महत्याओं
में सबसे ज्यादा लोग वही हैं जिनकी प्रतिदिन की आय इतनी कम है l भारत के उच्च श्रेणी की १०००
कंपनियां न्यूनतम वेतन के नियम दुतकारते हैं l ‘ प्यू संशोधन अहवाल ‘ के अनुसार ऐसा अनुमान लगाया
गया था की २०२० में भारत में करीबन ६ करोड़ लोग दरिद्र रेखा के नीचे होंगे लेकिन असल में महामारी
के कालावधि में १३.४ करोड़ लोग दरिद्र रेखा के नीचे आ गए l
रिजर्व बैंक के अंदाज के अनुसार देश की जीडीपी के वृध्दिका दर २०२०-२१ में – ८.१%-७% रहेगा l
निर्धनता वृध्दि के लिए महामारी एक कारण जरुर है लेकिन सही कारण गलत आर्थिक धोरण है l अर्थात
महामारी खत्म भी हुई तो दरिद्रता बढ़ती ही रहेगी l क्या महामारी शुरू होने से पहले ही देश की
अर्थव्यवस्था संकट में थी l देश की ज्यादातर जनता एक तरफ महामारी की लहरों का आघात झेल रही है ,
गलत आर्थिक नीति के कारण गरीबी के महासागर में गोता खाकर जिंदा है तो दूसरी ओर इस निर्धनता के
महासागर में अमीरी की सबसे ऊँचे शिखर खड़े हो रहे हैं l २०१५ से ही भारत की ज्यादा से ज्यादा संपदा
केवल १% अतिधनवान लोगों के हाथों में जमा हो रही है I २०२० में भारत के केवल १०% धनवान लोगों
के हाथों में देश की कुल संपदा में से ४५% संपदा है l भारत में २०२० में १०२ अरबपति थें , २०२१ में
उनकी संख्या १४२ हो गई l अर्थात भारत में अरबपतियों की संख्या महामारी के वर्ष में – २०२१ में
३९% से बढ़ गई l फ्रान्स, स्वीडन तथा स्वित्झर्लंड के अरबपतियों की कुल संख्या को हमने अरबपतियों की
तुलना में पीछे हटाया है l अब हमारा देश अरबपतियों की तुलना में चीन , रशिया के बाद में तीसरे स्थान
पर है l ( कोरोना बाधितों की तुलना में भी हम तीसरे स्थान पर हैं l ) फोर्ब्ज अरबों की सूचि अक्तूबर
२०२१ में प्रसिद्ध हुई l इस सूची में से १०० अति रईस भारतीय हस्तियों के पास ७७५ बिलियन डॉलर्स
इतनी संपत्ति है l इसमें ९८ अब्जाधिशों के पास देश की ५५.५% करोड़ अर्थात जो गरीबों के पास जीतनी
है उतनी अर्थात ६५७ बिलियन डॉलर्स संपत्ति है l इसमें से ८० परिवारों की संपदा गत वर्ष में अरबो रुपयों

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से बढ़ गई l इसमें भी लिंगभेद है l इस सूची में केवल ३ भारतीय महिलाएं है l और पहले १० में एकही
महिला उद्योजक हैं , सावित्री जिंदाल जी l
भारत के सभी रईस लोगों की संपत्ति की वृध्दि में १/५ संपदा गौतम अदानी नामक एक हस्ति के पास है l
नरेंद्र मोदीजी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उस समय के लोकसभा चुनाव में भाजपा के आगामी
प्रधानमंत्री के रुप में अदानी जी के हवाई जहाज मोदीजी सेवा में थे l अदानीजी का विश्व के रईस लोगों में
२४ वाँ तो भारत में दूसरा स्थान है l पहले मुकेश अंबानी हैं l भारत के अनेक हवाई अड्डे , बंदरगाह , रेल
आदि असंख्य सार्वजनिक मालमत्ता अदानी को निगलने के लिए दी है l कोरोना की कालावधि में अदानी की
संपदा में ८ गुना वृध्दि हो गई l उनकी संपत्ति २०२० के अंत में ८.९ बिलियन डॉलर्स थी वो २०२० में
५०.५ और २०२१ में ८२.२ बिलियन डॉलर्स इतनी विशाल हो गई l यह आँकड़ा भारतीय चलन में
६१,६८,८२,२३,००,०००/- इतना होता है l
इसी दरम्यान मुकेश अंबानी की संपत्ति भी ३६.८ बिलिय डॉलर्स से ८५.५ बिलियन डॉलर्स तक पहुँची l ये
दोनों भी गुजराती और देश चलानेवाले दोनों भी गुजराती यह संयोग विलक्षण है l देश कंगाल होते समय
इन लोगोंने ऐसा कौनसा पसीना बहाया , कौनसे श्रम किए या अपनी बुध्दी का इस्तेमाल किया कि जिसके
कारण उनकी संपदा इतना गुना बढ़ गई l वास्तव में उन्होंने इसमें से कुछ भी नहीं किया केवल सत्ताधरियों
के संपर्क में रहे और यह चमत्कार हुआ l २०१६ से मोदी सरकार ने संपत्ति कर तथा कॉर्पोरेट कर में बडी
मात्रा में कटौती की तो दूसरी और सामान्य जनता पर अप्रत्यक्षरूप में कर लगाने का सिलसिला जारी रखा l
२०१९-२० के दरमियान सरकार ने विदेशी निवेश को बढ़ावा देने का कारण बताकर कॉर्पोरेट कर ३०%
से २२% पर लाकर रखा l इससे देश का १.५ लाख करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ l लेकिन विदेशी निवेश
हुआ ही नहीं l इस कालावधि में जीएसटी का संकलन ५०% , आयकर का ३६% तथा कॉर्पोरेट कर का
२३% से घट गया l तब यह नुकसान वसुल करने के लिए सरकार ने क्या किया ? विश्व में पेट्रोल एवं डीजल
की कीमत कम हो रही थी तब हमारे देश ने इसके दाम बडी मात्रा में बढ़ा दिए l गत तीन सालों में जो
८.०२ लाख करोड़ कमाएँ उनमें से ३.७१ लाख करोड़ केवल गतवर्ष में कमाएँ l इसके कारण जीवनावश्यक
चीजों के दाम बारबार बढ़ाते रहे l बढ़ती हुई महँगाई ने सामान्य जनता का जीना हराम कर दिया l
अगर देश के अती धनवान परिवारों पर केवल ४% संपदा कर लगाया गया तो उन में से मिलनेवाले उत्पन्न
से २ वर्षों तक केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण खाता , या १७ वर्ष तक माध्यान्ह भोजन योजना या ६
वर्षों तक समग्र शिक्षा अभियान चलाया जा सकता है l या केवल १% कर लगाया जाए तो ७ वर्षों से
अधिक समय तक आयुष्यमान भारत योजना या १ वर्ष से ज्यादा समय तक स्कूल की शिक्षा एवं साक्षरता

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विभाग जारी रखा जा सकता है l लेकिन सरकार को सत्ता में आने के लिए एवं कायम रहने के लिए मदद
करनेवाले उद्योगपतियों के एहसानों की वापसी करनी थी इसलिए इसमें से कौनसा भी काम सरकार ने
नहीं किया l उलटा सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं शिक्षण क्षेत्र नजर अंदाज किए l जिस से देश की सार्वजनिक
अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई l प्राणवायु एवं दवाइयों के आभाव में तड़पती जनता को आत्मनिर्भर बनने की
सलाह दी गई l खासतौर पर जहाँ भाजप का शासन नहीं है उन राज्यों की ओर ध्यान ही नहीं दिया गया l
लेकिन दूसरी ओर टिका का उत्पादन, वितरण , दवाइयों का निर्माण आदि महत्वपूर्ण कार्य केंद्र ने अपने पास
ही रखे l सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था लड़खड़ा ने पर यह व्यवस्था खासगी क्षेत्र की ओर चली गई l गरीब
लोगों ने मृत्यु को अपनाया l मध्यमवर्ग के लोगों के सर पर कर्ज का पहाड़ बन गया l इसी कालावधि में
लोग इलाज हेतु खासगी अस्पतालों में प्रति दिन रु.४ लाख तक खर्च करते थे ऐसा एक परिक्षण में नजर
आया l १९८६-८७ में ४०% शहर की जनता खासगी स्वास्थ्य व्यवस्था पर निर्भर थी , २०१४ में ६८%
पर पहुँची , कोरोना की कालावधि में इसमें बडी मात्रा में वृध्दि हो गई l कोवीड पर किए जानेवाले इलाज
का खासगी अस्पतालों का खर्च देश की गरीब जनता की महिने की आय से ८३ गुना है और औसतन महीने
की आय की तुलना में ३१ गुना है l स्वास्थ्य पर होनेवाला खर्च निर्धन को अधिक निर्धन बनाता है और
मध्यमवर्गीय को गरीब बनाता है l इसी दरमियान रईसलोगों को तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की आरोग्यसेवा
तारांकित अस्पतालों में आसानी से उपलब्ध होती थी l उनकी आय की तुलना में यह खर्च उनके लिए कुछ
भी नहीं है l
महामारी ने पहले से ही उपेक्षित रही शिक्षाव्यवस्था की दुर्दशा हो गई l हजारों पाठशालाएँ बंद हुई l
ऑनलाईन शिक्षा व्यवस्था के कारण लाखों बच्चे शिक्षण व्यवस्था से परे हो गए l ग्रामीण इलाके के केवल
४% दलित एवं भटक्या समाज के बच्चों को ऑनलाईन शिक्षा प्राप्त करना संभव हुआ l ५०% स्थानांतर
किए हुए परिवार के बच्चे शिक्षा छोड़कर अपने माता-पिता का हाथ बँटने लगे l इस कालावधि में बाल
विवाह का प्रमाण ३३% से बढ़ गया यह बात सच्ची है l शिक्षण खासगी क्षेत्र में जा ही रहा था , कोरोना ने
यह प्रक्रिया पूरी की l शासकीय पाठशालाओं में केवल ४५% विद्यार्थी जा रहे हैं l खासगी शिक्षण पध्द्ति
सार्वजनिक शिक्षा से ९ गुना महँगा है l जिस देश में हजारों सलोंतक बहुसंख्य समाज को धर्म के आधार पर
शिक्षण नामंजूर किया गया अब इस नए संकट ने सामाजिक विषमता की यह दरार अधिक चौड़ा कर दी l
आम जनता के लिए दर्जाहीन शिक्षा तथा शालाबह्य बहुजन ऐसी नई व्यवस्था मनुस्मृति समर्थों के लिए
वरदान है l
हम अपने इस आर्थिक वास्तव का दारुण रूप लिखते समय अर्थमंत्री निर्मला सीतारमण जी केंद्रीय
अर्थसंकल्प प्रविष्ट करने की तैयारी कर रही है l भारतीय जनता की इस दशा का प्रतिबिंब उनके अर्थसंकल्प

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में समाविष्ट होगा इस तरह की कोई आशा हमें नहीं है l हम गरीबी का वितरण करने की माँग नहीं करते l
हमारा विरोध उबकाई हुई संपदा के प्रति है l अमीरी ऊँचे शिखर से बहकर नीचे तल की ओर नहीं आती l
हमारा विरोध संपदा की निर्मिति को नहीं है I संपदा की निर्मिती वैधता , शोषण विरहित तथा प्रकृति का
ध्वंस करके प्राप्त की गई नहीं हो इतना ही हमारा कहना है l रोजगार एवं संपदा का निर्माण हाथ में हाथ
डालकर होना चाहिए l रोजगार छिननेवाली संपत्ति की निर्मिती प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए और इसका
वितरण बड़ी विषमता से नहीं होना चाहिए l निर्माण होनेवाली संपदा का उचित हिस्सा स्वास्थ्य एवं
शिक्षा हेतु खर्च किया जाना चाहिए इसे देश के भविष्य का निवेश माना जाए l अतिधनवान लोगों की
संपदा पर अगर १% संपदाकर लगाया गया तो भी बहुत सारे मसले हल हो सकेंगे l
‘ मानवता के अब्जाधिश ‘ इस नाम से विश्व के ५० अब्जाधिशों द्वारा लिखा हुआ और प्रकट किया गया हुआ
पत्र विश्व को दिशा दिखानेवाला है l इस पत्र में वे लिखते हैं – ‘ आजी नीचे हस्ताक्षर करनेवाले हम
अब्जाधिश हमारी सरकार को कहना चाहते हैं कि हम जैसे अमीरों पर अति तत्काल कर बढ़ा दीजिए l
बहुत सारा और हमेशा के लिए l हम पर कर लाद दीजिए l यही उचित विकल्प है l हमारी संपदा से ज्यादा
मानवता महत्वपूर्ण है l ‘
इस पत्र पर हस्ताक्षर करनेवाले अब्जाधिशों में भारत का एक भी नहीं है l नफा पूँजीवाद की बुनियाद है l
केवल यही पूँजीवाद की प्रेरणा है l कोरोना महामारी के कारण विश्व के अर्थकारण पर जो आपत्ति आई ,
विश्व की विषमता की चिथड़े सम्मुख आ गई , अतः विश्व के कम से कम ५० अति धनवान लोग अंतर्मुख
होकर केवल नफा प्राप्त करने के विरुध्द जाकर मानवता के बारे में सोचने लगेंगे तो फिर भी वह आशा की
किरण साबित होगी l इस किरणकी हमारे देश में प्रतीक्षा है l

पुरोगामी जनगर्जना

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