.पति की मृत्यु के बाद ही उसकी विधवा को एक कटोरा भांग और धतूरा पिलाकर नशे में मदहोश कर दिया जाता था.
जब वह श्मशान की ओर जाती थी, कभी हँसती थी, कभी रोती थी और तो कभी रास्ते में जमीन पर लेटकर ही सोना चाहती थी और यही उसका सहमरण (सती ) के लिए जाना था.
इसके बाद उसे चिता पर बैठा कर कच्चे बांस की मचिया बनाकर दबाकर रखा जाता था क्योंकि डर रहता था कि शायद दाह होने वाली नारी दाह की यंत्रणा न सह सके ! चिता पर बहुत अधिक राल और घी डालकर इतना अधिक धुआँ कर दिया जाता था कि उस यंत्रणा को देखकर कोई डर न जाए और दुनिया भर के ढोल, करताल और शंख बजाए जाते थे कि कोई उसका चिल्लाना, रोना-धोना, अनुनय -विनय सुनने न पाए !
बस यही तो था सहमरण….. “( सनातनी परम्परा की एक घिनौनी प्रथा सती प्रथा का, शरत चन्द्र जी ने कुछ इस प्रकार से इसका वर्णन किया है आप भी पढ़ लीजिये इन्हें ) साभार- शरत् चंद्र की पुस्तक ‘नारीर मूल्य ‘ से उद्धृत
– सुप्रसिद्ध गाँधीवादी लेखक,श्री हिमांशु कुमार संपर्क-अनुपलब्ध
संकलन-निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र, संपर्क -9910629632