पुष्पा गुप्ता
इलाहाबाद में चल रहे महाकुम्भ में प्रशासनिक अव्यवस्था और लापरवाही की वजह से होने वाली दुर्घटनाओं और मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।
इसी क्रम में कल देर रात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मचने की वजह से पांच बच्चों समेत कम से कम 18 लोगों (सरकारी गिनती) की मौत हो गयी और दर्ज़नों की संख्या में लोग घायल हैं।
यह वह संख्या है जिसे मीडिया दिखा रहा है। सोशल मीडिया पर चश्मदीदों के हवाले से जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक़ हताहत लोगों की संख्या इससे कहीं ज़्यादा है। दरअसल अचानक से रेलवे स्टेशन पर जुटी भीड़ को सम्भालने के लिए प्रशासन की पर्याप्त तैयारी नहीं थी। ऊपर से ऐन मौके पर इलाहाबाद जाने वाली गाड़ी का प्लेटफ़ॉर्म बदलने की वजह से भगदड़ हुई और दर्जनों लोग मौत के मुँह में समा गये।

कुम्भ में अव्यवस्था की वजह से होने वाली दुर्घटना की यह कोई पहली घटना नहीं है। इसके पहले 29 जनवरी को कुम्भ में एक के बाद एक तीन जगहों पर मची भगदड़ की वजह से लोगों को जान गवाना पड़ा था। कुम्भ में कई बार आगजनी की घटनाएं हो चुकी हैं, ट्रैफिक व्यवस्था पूरी तरह पंगु हो चुका है।
वास्तव में यह सब फ़ासीवादी प्रयोग का हिस्सा है। फ़ासीवादी मोदी-योगी सरकार और संघ परिवार द्वारा कुम्भ का इस्तेमाल अपने फ़ासीवादी एजेंडे को बड़े पैमाने पर प्रचारित करने के मद्देनज़र किया जा रहा है। इसी वजह से कुम्भ के 6 महीने पहले से ही संघ परिवार और भाजपा, गोदी मीडिया और अपने अनुषांगिक संगठनों के जरिये देश भर में कुम्भ के उन्मादी प्रचार में लगे हुए हैं।
इस बार संघ परिवार और भाजपा द्वारा 144 साल बाद लगे पूर्ण कुम्भ का शिगुफा छोड़ा गया है। एक हद तक फ़ासिस्टों को अपने इस प्रचार में सफलता भी मिल रही है। ऐसा शिगुफा पहले भी छोड़ा जा चुका है. कुम्भ का असली चेहरा यू ट्यूव पर रवीश कुमार के वीडियो में देखिए.
जीवन की तकलीफों और अनिश्चितता की असली वजहों से अनभिज्ञ बहुसंख्यक जनता का एक हिस्सा कुम्भ में डुबकी लगाकर अपना पापा धुल लेना चाहता है। इस रूप में फ़ासिस्टों द्वारा लोगों के धार्मिक भावनाओं को उभार कर समाज के एक बड़े तबके के सामूहिक फ़ासीवादीकरण की मुहिम चलायी जा रही है।
तमाम साम्प्रदायिक ढोंगी बाबा इस उन्मादी प्रचार का इस्तेमाल अपनी दुकान चलने के लिए कर रहे हैं। कोई हिन्दू राष्ट्र का राग अलाप रहा है तो कोई अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ जहर उगलने में लगा हुआ है।
वास्तव में इस बार का कुम्भ एक धार्मिक आयोजन से ज़्यादा फ़ासीवादी सरकारी राजनीतिक आयोजन बन गया है। वैसे तो किसी पूँजीवादी लोकतान्त्रिक राज्य को न तो कोई धार्मिक आयोजन करना चाहिए और न ही उसे प्रोत्साहित करना चाहिए।
राज्य की ज़िम्मेदारी केवल प्रशासनिक व्यवस्था सम्भालना है जिसमें की फ़ासीवादी सरकार बुरी तरह से असफल रही है।
विदेशी सैलानियों की तस्वीरें, जगमगाते सरकारी विज्ञापनों और बड़े-बड़े मठाधीशों के चकाचौंध से भरे फाइव स्टार पंडालों, पूँजीपतियों-नेताओं-मत्रियों की डुबकियों, नागा बाबाओं के चमत्कार और हिन्दुत्व के फ़ासीवादी प्रचार के नीचे इंसानीं ज़िंन्दगियाँ ख़त्म हो रही हैं, लोग अपनों से बिछड़ रहे हैं, तकलीफें बढ़ रहीं हैं; जिस पर कोई कान देने वाला नहीं है।