दिव्यांशी मिश्रा
जब आप
नस्ल के आधार पर
खुद को
गौरवान्वित करना शुरू करते हैं
तब आप
इंसानियत छोड़ कर
किसी नस्लवादी
झुंड में शामिल हो जाते हैं,
जब आप
अपनी जाती पर
इतराना शुरू करते हैं
तब आप मनुष्यता
की परिधि लांघकर
पशुओं के झुंड में
शामिल हो जाते हैं,
जब आप
राष्ट्र के नाम पर
अपनी
महानता का ढोंग करते हैं
तब आप
संवेदनाओं से मुक्त होकर
निर्ममता के
झुंड का हिस्सा हो जाते हैं,
जब आप
धर्म के नाम पर
खुद की श्रेष्ठता का ढोंग करते हैं
तब आप
मनुष्य होने की पहचान खोकर
किसी बीमार
झुंड में शामिल हो जाते हैं,
गौर से
खुद की मानसिकता को
टटोल कर देखिए
रंग नस्ल जात क्षेत्र भाषा
राष्ट्र और मजहब के नाम पर
आप भी
किसी न किसी झुंड में
शामिल नजर आएंगे,
दुनिया की सारी
सामाजिक समस्याएं
आपके और मेरे
झुंड बनने से ही
शुरू होती हैं
और राजनीति की बिसातें भी,
झुंड में कैद इंसान
जानवर बन जाता है
जानवर बनते ही
वह अपने झुंड पर
इतराना शुरू कर देता है
खुद के लिए बनाई गई
घेराबन्दियों पर
गर्व भी करने लगता है
और आखिरकार
गले की रस्सियों और घण्टियों
पर आस्था ही जिंदगी हो जाती है
इतना ही नहीं
झुंड से बाहर की दुनिया
दुश्मन हो जाती है
और उसे हांकने वाला चरवाहा
उसका हितैषी हो जाता है.
मनुष्य
सिर्फ मनुष्य बनकर जिये
तो ही मनुष्य की
मनुष्यता कायम रहेगी
और
स्वतंत्रता भी,
झुंड बनते ही
मनुष्य अपनी
स्वतंत्रता खो देता है
और
मनुष्यता भी,
आजादी का
वास्तविक अर्थ
झुंड से
बाहर निकलना ही तो है.
(चेतना विकास मिशन)