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महंगाई और कर्ज से गरीबों एवं मध्यम वर्ग में हाहाकार

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-सनत जैन

भारत की अर्थव्यवस्था के विकास की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। इस आर्थिक प्रगति के बावजूद, देश का गरीब और मध्यम वर्ग एक ऐसे संकट की स्थिति में है जिसे अर्थशास्त्री मिडिल इनकम ट्रैप कहकर संबोधित कर रहे हैं। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब देश की अर्थव्यवस्था प्रारंभिक विकास के बाद रुकने लगती है। आय नहीं बढ़ती और उनके खर्च बढ़ते चले जाते हैं। इस जाल से बाहर निकलने के लिए मजबूत नीतिगत सुधारों और व्यापक संरचनात्मक परिवर्तनों की आवश्यकता है। मिडिल इनकम ट्रैप का मुख्य कारण, उत्पादन स्तर में ठहराव है। भारत में अमीर तबके के लिए सभी सुविधाजनक वस्तुएं और सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। उच्च वर्ग को ध्यान में रखते हुए सारा विकास और बुनियादी काम किये जा रहे हैं।

आम लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति लगातार कम होती जा रही है। यह आर्थिक असमानता देश की उत्पादन प्रणाली पर गंभीर प्रभाव डाल रही है। महंगाई, बढ़ते टैक्स, तरह-तरह के शुल्क लगने के कारण गरीब एवं मध्यम वर्ग के पास पर्याप्त खरीद शक्ति न होने के कारण बाजार में उत्पाद बढ़ा है और मांग कम होती जा रही है। बाजार में मांग बढाने के लिए गरीब और मध्यम वर्ग की आय बढ़ना जरूरी है। महंगाई नियंत्रित होना भी जरूरी है। उपभोक्ताओं के पास जब आय होगी, तभी वह खर्च कर पाएंगे। उत्पादकता को बढ़ाने के लिए आवश्यक है, सभी वर्गों की आय बढ़े। गरीबों और मध्यमवर्गीय आय या तो स्थिर है या घट रही है।

युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है। लघु एवं मध्यम क्षेत्र के रोजगार धंधे बंद हो रहे हैं। बाजार में मांग घटती चली जा रही है। इस कारण भारतीय अर्थव्यवस्था एक बड़े संकट में फंस गई है। महंगाई की मार और आर्थिक मंदी के कारण अब नए-नए संकट पैदा हो रहे हैं। गरीब एवं मध्यम वर्ग उद्देलित है। वह अपने जीवनयापन के लिए जरूरी सामान भी नहीं खरीद पा रहा है। इसका असर अब कारपोरेट कंपनियाँ पर भी पड़ रहा है, जो उपभोक्ता सामग्री बनाती हैं। इसके कारण इसका असर अब शेयर बाजार में भी पड़ रहा है और बड़ी-बड़ी कंपनियों की कमाई पर भी नकारात्मक असर पडना शुरू हो गया है। एक बड़ी समस्या रोजगार की है। करोड़ों युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के लाखों परंपरागत दुकानदारों की रोजी-रोटी चली गई है। छोटे और मध्यम उद्योग बड़ी तेजी के साथ पिछले सालों में बंद हुए हैं। भारत की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा युवा बेरोजगार है। इन युवाओं के पास रोजगार नही है। जब अर्थव्यवस्था बढ़ती है तो रोजगार भी बढ़ता है।

सरकार अर्थव्यवस्था बढ़ने के दावे करती है, लेकिन जिस तरह से बेरोजगारी बढ़ती चली जा रही है इसे लेकर यह कहा जा सकता है कि या तो सरकार के विकास के दावे गलत हैं यदि सरकार के दावे सही हैं तो इसका लाभ केवल उच्च वर्ग को मिल रहा है। आर्थिक विकास का लाभ मध्य और गरीब वर्ग को नहीं मिल रहा है। भारत में उत्पादन निम्न स्तर पर पहुंच गया है। औद्योगिक क्षेत्रों में विकास की गति धीमी हो गई है। रोजगार के नए अवसर उत्पन्न नही हो रहे हैं। रोजगार और नौकरियों में छटनी हो रही है। इस कारण, उच्च शिक्षा प्राप्त युवा और मजदूर भी बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हैं। जो भारत की आर्थिक स्थिरता के लिए चुनौती बन गई है। गरीब और मध्यम वर्ग के ऊपर कर्ज बहुत बढ़ गया है। अब जरूरत पूरी करने के लिए नया कर्ज भी नहीं मिल है। इस स्थिति से उबरने के लिए, आर्थिक नीतियों में बदलाव की आवश्यकता है।

शिक्षा और कौशल विकास पर अधिक ध्यान देकर, स्थानीय उत्पादन में कुशलता लाई जा सकती है। इसके अलावा, नवाचार और तकनीकी विकास को प्रोत्साहन देना बहुत जरूरी हो गया है। देश में आधुनिक उत्पादन प्रणाली के साथ-साथ स्थानीय आधार पर भी रोजगार और लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योग स्थापित हों। छोटे और मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहित करके ही रोजगार के नए अवसरों का सृजन किया जा सकता है। यदि भारत को आर्थिक मंदी और बेरोजगारी की समस्या से बाहर निकालना है तो सरकार को अपने आर्थिक ढांचे में बदलाव लाकर उत्पादन क्षमता में सुधार करने की नीति को लागू करना होगा। साथ ही आय वितरण में जो असमानता है उसको कम करने की दिशा में प्रयास करने होंगे।

समय रहते सरकार ने अपनी नीतियों और सोच में बदलाव नहीं किया तो ऐसी स्थिति में धनाडय वर्ग जिस तेजी के साथ और धनाडय होता चला जा रहा है, उसी तेजी से गरीब और गरीब होता चला जाएगा। कहना गलत न होगा कि मध्यम वर्ग और गरीब जिस तेजी के साथ गरीबी की ओर बढ़ रहा है, यह असमानता देश को गृह युद्ध की दिशा में भी ले जा सकती है। इस गंभीर स्थिति में सरकार को सजग होने की जरूरत है।

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