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महिला सशक्तिकरण के मामले में अव्वल पश्चिम बंगाल और केरल में महिलाओं के यौन शोषण पर मचता बवाल 

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पश्चिम बंगाल और केरल में कौन से राजनीतिक दल राज कर रहे हैं? देश में महिला सशक्तिकरण के मामले में ये दोनों प्रदेश अव्वल माने जाते रहे हैं। लेकिन आज यही वे दो प्रदेश हैं, जहां पर सबसे बड़ा सियासी भूचाल देखने को मिल रहा है। पश्चिम बंगाल की घटना की जांच का काम तो एक सप्ताह के भीतर ही सीबीआई को सौंप दिया गया था, जबकि देश में ऐसे सैकड़ों मामलों को जमीन में गाड़कर भुला भी दिया गया है।

लेकिन असली सवाल यह है कि मीडिया चाहे तो किसी भी मुद्दे को सालभर तक राष्ट्र की चेतना में तरोताजा बनाये रख सकता है, और न चाहे तो कोविड-19 महामारी में लाखों परिवार अपने स्वजनों की अकाल मौत को भी एक-दो महीने में भुला सकते हैं। ये सारी बातें, कोरी गप्प पर आधारित नहीं हैं, कोई भी अपने दिमाग पर जरा सा जोर डालकर इसकी पड़ताल स्वयं कर सकता है।

यहां पर हम मलयालम फिल्म उद्योग में उठते एक नए बवंडर की आरंभिक पड़ताल करेंगे, जो जल्द ही राष्ट्र की चेतना पर छाने के लिए आतुर है। इस बवंडर में आवश्यक ज्वलनशील पदार्थ मिलने की संभावना इसलिए भी अधिक है, क्योंकि यही वह अंतिम ड्रीमलैंड है, जिसे आरएसएस चाहकर भी अपने कब्जे में नहीं कर सका है।

लेकिन अब यह भी संभव होने की परिधि के भीतर आ सकता है। ऐसा इसलिए नहीं कि भाजपा शासित राज्यों या देश के बाकी हिस्सों में सामाजिक-सांस्कृतिक विकास ने लंबी छलांग लगा ली है, और केरल जैसे राज्य ने कोई घोर पतन की राह पकड़ ली है, बल्कि ऐसा इसलिए क्योंकि केरल देश में पहला राज्य है, जिसने आगे बढ़कर मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा पर जांच कमेटी गठित करने का साहस दिखाया।

अक्सर आपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को कहते सुना होगा कि पूर्व पीएम राजीव गांधी ने खुद स्वीकार किया था कि 80 के दशक में सरकार यदि एक रुपया खर्च करती थी तो आम लोगों तक मात्र 15 पैसा पहुंचता था। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने नौकरशाही, रेड टेपिज्म को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए राष्ट्र को आगाह किया था, और इसे दूर करने की ईमानदार कोशिश की थी।

यह कितनी दूर हो पाई यह दीगर प्रश्न है, लेकिन आज तो यदि 100% भ्रष्टाचार हो रहा है तो भी यही दावा किया जाना है कि 100% सदाचार हो रहा है। 2014 में ही मोदी सरकार में नंबर दो रहे राजनाथ सिंह ने स्पष्ट कर दिया था कि हमारी सरकार में इस्तीफे नहीं होते।

क्योंकि पूर्व की मनमोहन सिंह सरकार में 2जी, कोयला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले के नाम पर कई केंद्रीय मंत्रियों के इस्तीफे हुए और कुछ ने तो जेल तक की सजा भुगती। इन सभी कथित घोटालों के आरोपों में कुछ भी ठोस नहीं निकला, लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार आम लोगों की निगाह में सबसे भ्रष्ट और निकम्मी साबित हो गई, और संभवतः कई लोगों के नजरों में आज भी बनी हुई है।

मौलीवुड ‘मी टू’ मूवमेंट की कहानी 

इस विवाद की शुरुआत 2017 से होती है, जब एक्टर दिलीप से जुड़े अपहरण-यौन उत्पीड़न मामले पर केरल में एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई, और इसने मलयालम फिल्म उद्योग के संचालन के तरीके पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए थे। केरल सरकार ने फिल्म उद्योग में महिलाओं के साथ होने वाले शोषण की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता केरल उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश, के. हेमा कर रही थीं, जबकि दो अन्य सदस्यों में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी, के.बी. वल्सला कुमारी और पूर्व अभिनेत्री शारदा थीं। 

दिसंबर 2019 में 5,000 पृष्ठ की यह रिपोर्ट राज्य सरकार को मिल चुकी थी, लेकिन रिपोर्ट में जो खुलासे देखने को मिले थे, उसे देखते हुए पिनाराई सरकार ने रिपोर्ट को सार्वजनिक न करने का फैसला लिया, जिसके चलते उसे काफी आलोचना का भी सामना करना पड़ा।

लेकिन आरटीआई एक्ट का कमाल देखिये, जिसके चलते राज्य सरकार को अंततः मजबूर होकर 19 अगस्त 2024 को इस रिपोर्ट को जारी करना पड़ा। कुल 295 पृष्ठ की आरंभिक रिपोर्ट के 63 पेज हटाकर (ताकि पीड़ितों की पहचान को गोपनीय रखा जा सके), जिस 233 पेज की रिपोर्ट को सरकार ने प्रकाशित किया है, उसने मलयालम फिल्म उद्योग ही नहीं पूरे केरल में कहर बरपा कर रखा है। 

मलयालम फिल्म उद्योग से जुड़े बड़े-बड़े नाम ताश के पत्तों की तरह बिखरते देखे जा सकते हैं। इसे Mollywood Me Too आंदोलन की संज्ञा दी जा रही है। अंग्रेजी और हिंदी के समाचारपत्रों में चटखारे लेती हुई खबरों के साथ हर खुलासे के साथ नई स्टोरी पेश की जा रही है। जैसे एक शीर्षक कुछ इस प्रकार से है, “यौन उत्पीड़न के आरोपों से हिली मलयालम फिल्म इंडस्ट्री, अब तक 17 मामले दर्ज हुए।” 

ताजातरीन मामला फिल्म अभिनेत्री सोनिया मल्हार से जुड़ा है, जिनका आरोप है कि साल 2013 में एक फिल्म के सेट पर एक अभिनेता ने उनके साथ छेड़छाड़ की थी। अभिनेत्री ने केरल सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दल के सामने अपनी शिकायत दर्ज कराई है। सोनिया मल्हार से पहले फिल्म अभिनेत्री मीनू मुनीर ने भी यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे।

आरोपों के बीच मलयालम मूवी आर्टिस्ट की एसोसिएशन AMMA को भी भंग कर दिया गया है। पुलिस आरोपों को लेकर मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के कई फिल्मी सितारों और फिल्म निर्माताओं से पूछताछ कर सकती है।

केवल एक्टर्स नहीं, मीनू मुनीर ने सत्तारूढ़ पार्टी मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (CPM) के विधायक (और अभिनेता) मुकेश के खिलाफ भी आरोप लगाया है कि उनके इशारों को मना करने की वजह से उन्होंने सदस्यता देने से इनकार कर दिया गया था, जिसके जवाब में मुकेश ने इस बारे में गहन जांच का स्वागत किया है। उन्होंने दावा किया है कि मुनीर ने उनसे पैसे मांगे थे और उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी। 

फिलहाल मुकेश को फ़िल्म पॉलिसी के सरकारी पैनल से हटा दिया गया है। 

इसमें सबसे सनसनीखेज मामला बंगाली फ़िल्म ऐक्ट्रेस श्रीलेखा मित्रा की शिकायत से बना जब उन्होंने प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक रंजीत पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि 27 अगस्त को AMMA ने नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए स्वंय को भंग किये जाने की घोषणा कर दी। मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के जाने-माने अभिनेता मोहनलाल ने चेयरपर्सन के पद से इस्तीफ़ा दे दिया।

हालांकि, आरोप अभी तक कमेटी के एक-दो सदस्यों पर ही लगे थे, लेकिन स्थिति की गंभीरता को देखते हुए समूची कमेटी ने ही सामूहिक इस्तीफ़ा देकर निष्पक्ष जांच की स्थिति को तैयार कर दिया है। 

सवालों के घेरे में मलयालम फिल्म जगत है, लेकिन निशाने पर सीपीआई(एम) सरकार है। उसका सबसे बड़ा अपराध यह है कि उसने जांच आयोग का गठन किया, और यूपीए सरकार के द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया।

भाजपा के लिए मानो कुबेर का खजाना हाथ लग गया है। जल्द ही केरला स्टोरी की तर्ज पर मौलीवुड स्टोरी भी रिलीज की जा सकती है, जिसमें बताया जायेगा कि किस प्रकार भारत में सिर्फ केरल ही वह राज्य है, जिसका अधोपतन उस सीमा तक हो चुका है, जिसके बारे में शेष राज्य कल्पना भी नहीं कर सकते। 

और ऐसा हो भी क्यों न! क्योंकि केरल ने भी आगे बढ़कर अपने फिल्म उद्योग की जांच कराने का फैसला लिया। इसकी सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए। वर्ना, बॉलीवुड, कोलीवुड से लेकर भोजपुरी फिल्म उद्योग में तो ये सब सोचना भी गोया पाप है।

हकीकत तो यह है कि हिंदी पट्टी में किसी राजनीतिक आयोजन को करने से पहले या उसकी सफलता की ख़ुशी में दर्शकों को बांधे रखने के लिए जिस प्रकार से महिला कलाकारों को मंच पर लाकर रातभर प्रदर्शन होता है, उसकी झलकियां अगले दिन लगभग हर रोज, सोशल मीडिया के माध्यम से देश देखता है।

लेकिन चूंकि, न ही इन विषयों पर समाज की त्योरियां चढ़ती हैं, क्योंकि वे इन कलाकारों को सस्ता मनोरंजन मानते हैं, इसलिए इनके अपराध कोई अपराध नहीं माने जाते। भोजपुरी फूहड़ और अश्लील गीत गाने वाले लगभग सभी कलाकार सांसद या विधायक हैं, जिनमें से अधिकांश भाजपा से सम्बद्ध हैं। 

चूंकि, मुंबई फिल्म उद्योग या भोजपुरी फिल्म उद्योग में महिलाओं के साथ होने वाले यौन अपराधों पर कोई कमेटी का गठन किया ही नहीं जायेगा, इसलिए देश को भी मनवा लिया जायेगा कि यहां पर सब कुछ चंगा है। अगर कुछ भी खराब है तो वह मलयालम और मल्लू बिरादरी में है। फिलहाल इस ‘मी टू’ आंदोलन का राजनीतिक हलवा यही बनने वाला है। 

इसका मतलब हर्गिज यह नहीं है कि केरल की तरह कोई भी अच्छी पहल शुरू ही नहीं होनी चाहिए। कत्तई नहीं। पिछले एक सप्ताह से, केरल फिल्म उद्योग में आये इस अंधड़ से बॉलीवुड भी सबसे अधिक सकते में होगा। सभी जानते हैं कि बॉलीवुड का कनेक्शन फिर देश के वित्तीय, कॉर्पोरेट जगत से लेकर राजनीति के शिखर से होते हुए अंडरवर्ल्ड तक जाता है।

बॉलीवुड ‘मी टू’ आंदोलन का सिरा यदि शुरू हुआ तो न जाने कितने महान विभूतियों को मुंह पर कालिख पोतने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। इसलिए जरुरी है कि मलयालम फिल्म उद्योग को कोई अलग परिघटना के तौर पर न देखकर हम व्यापक फलक में इसे देखते हुए मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिला सशक्तिकरण और पारदर्शिता की ओर बढें। ध्यान रहे, केरल का समाज शेष भारत की तुलना में ज्यादा संवेदनशील और पारदर्शी है। 

भाजपा सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री, सुरेश गोपी जो स्वंय मलयालम फिल्म उद्योग का ही उत्पाद हैं, इस पूरे प्रकरण से विचित्र स्थिति में हैं। उनके लिए तो आगे कुआं, पीछे खाई वाली स्थिति हो रखी है।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन के लिए तो इस प्रकरण से राज्य में पार्टी की लाटरी खुलने की संभावना दिख सकती है, और वे इसे बड़ा आंदोलन बनाने की तैयारी में लगे भी हुए हैं। आखिर हिंदू, मुस्लिम और ईसाई समुदाय वाले इस अनोखे राज्य में ऐसा मौका बार-बार शायद ही कभी मिले।

इसीलिये वे कहते देखे जा सकते हैं कि सुरेश गोपी यदि मीडियाकर्मियों के प्रश्नों पर पार्टी लाइन से अलग बयान देते हैं तो वह उनका निजी विचार है। वे एक सांसद होने के साथ-साथ फिल्म उद्योग से भी जुड़े हैं। अब समझना आपको है कि आपको इस बेहद जरुरी मुहिम से क्या लेना है और क्या फेंक देना है।   

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