इंदौर के वरिष्ठ अधिवक्ता और समाजसेवी आनंद मोहन माथुर नहीं रहे। लंबे समय से बीमार चल रहे माथुर ने 97 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। उनका जन्म धार के मिशन अस्पताल में 23 जुलाई 1927 को हुआ था। वे जिंदादिल और बगावती तेवर रखने वाले व्यक्ति थे। वे गरीबों और मजबूरों की हमेशा मदद करते थे, लेकिन गलत बात को कभी सहन नहीं करते थे।70 से अधिक वर्षों का करियर, समाजसेवी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी…मध्यप्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता आनंद मोहन माथुर की पहचान मात्र इतनी ही नहीं थी। बात देश की आजादी की हो या व्यक्ति की स्वतंत्रता की आनंद मोहन माथुर ने अपना पक्ष हमेशा मुखरता से रखा। वे उन चुनिंदा लोगों में से हैं जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई भी लड़ी और जेपी मूवमेंट में सक्रिय योगदान भी दिया। आइए जानते हैं आनंद मोहन माथुर के जीवन से जुड़ी खास बातें..।

स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, परेशानियां झेली
आनंद मोहन माथुर का जन्म अंग्रेजी हुकूमत के दौरे में हुआ था। अंग्रेजों का अत्याचार देखकर वे बड़े हुए। किशोरावस्था में ही वे स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने लगे। इसके कारण उनके पिता को सरकारी नौकरी गंवानी पड़ी और खुद उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा। इससे उनका बचपन संघर्ष और गरीबी में बीता। उन्हें डॉक्टर बनना था, ऐसे में उन्होंने मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया, लेकिन रुपये नहीं होने के कारण कॉलेज की फीस नहीं भर पाए। इस कारण उन्हें जब भी किसी निर्धन होनहार छात्र के बारे में पता चलता था तो वे उसकी मदद करते थे। खुद डॉक्टर नहीं बन पाने पर उन्होंने अपने पिता से कहा था कि मैं तो डॉक्टर नहीं बन पाया, लेकिन आपकी पौती को डॉक्टर जरूर बनाऊंगा। उन्होंने अपना यह वादा निभाया भी, उनकी बेटी पूनम डॉक्टर हैं। अपने जीवन में आनंद मोहन माथुर ने देश और समाजसेवा को पहले महत्व दिया, फिर अपने परिवार की चिंता की।
मजदूरी की, कॉलेज में पढ़ाया, अधिवक्ता बने
इंदौर में बीते शुरुआती दिनों में आनंद मोहन माथुर ने मालवा मिल में बदली मजदूर के रूप में भी काम किया था। उन्होंने कॉलेज में बच्चों को भी पढ़ाया। अधिवक्ता बनने के बाद उन्हें जो केस फीस मिलती थी, उसका बड़ा हिस्सा वे समाजसेवा से जुड़े कामों में खर्च करते थे। उन्होंने अपने खर्च पर इंदौर की कान्ह नदी पर एक झूला ब्रिज बनवाया। साथ ही, आनंद मोहन माथुर सभागृह का निर्माण भी कराया। उन्होंने अपनी बेशकीमती जमीन समाज से जुड़े कामों के लिए दे दी थी।
बेटी को विदा कर भोपाल रवाना हुए
वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर के जीवन का एक किस्सा भोपाल गैसकांड से भी जुड़ा है। दरअसल, जिस दिन भोपाल में गैसकांड हुआ, उसी दिन उनकी बेटी पूनम माथुर की शादी थी। देर रात आनंदजी को भोपाल से बुलावा आया कि वे जितनी जल्दी हो सके, भोपाल आ जाए। ऐसे में माथुर ने बेटी पूनम को विदा किया और फिर तुरंत भोपाल के लिए रवाना हो गए। उन्होंने ही इस गैसकांड के खिलाफ कोर्ट में याचिका लगाई थी और डाउ केमिकल फैक्टरी पर मुआवजा देने के लिए दबाव बनाया।
बगावती तेवर रहे माथुर के
माथुरजी वैसे परोपकारी और दरियादिल थे। लेकिन, अन्याय के खिलाफ उनके तेवर हमेशा बगावती रहते थे। उन्होंने सरकार के खिलाफ कई याचिकाएं लगाईं और आंदोलनों में भी हिस्सा लिया। बिना कोई फीस लिए उन्होंने कई गरीब निर्धन परिवारों के केस लड़े और उन्हें न्याय दिलाया। कई जनहित याचिकाएं भी उन्होंने प्रदेश और शहर की भलाई के लिए लगाई। मच्छीबाजार सड़क निर्माण, शेखर नगर बस्ती हटाने के विरोध में उन्होंने सड़क पर आकर लड़ाई लड़ी।
94 साल की उम्र में सीखा हारमोनियम
आनंद मोहन माथुर संगीत प्रेमी भी थे। उन्होंने 94 साल की उम्र में हारमोनियम सिखा। इसके बाद वे हर दिन उस पर रियाज भी किया करते थे। वे हिंदी के अलावा अंग्रेजी, मराठी और गुजराती भाषा भी जानते थे।
जेपी मूवमेंट में सहयोग, अपनी फीस की दान..
आनंद मोहन माथुर ने अपने 70 से अधिक वर्षों के करियर में कानूनी क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे न केवल एक कुशल वकील थे, बल्कि सामाजिक न्याय और जनहित के मुद्दों पर कोर्ट से लेकर सड़क तक संघर्ष करने वाले व्यक्तित्व के रूप में भी जाने जाते थे। उन्होंने आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्गों के लोगों के लिए मुफ्त कानूनी सलाह और सहायता प्रदान की, जिसके कारण उन्हें समाज के शोषित और पीड़ित वर्गों के मसीहा के रूप में सम्मान मिला।
उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था और आपातकाल के दौरान जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। इसके अलावा, वे मालवा-निमाड़ सहित पूरे मध्य प्रदेश में आंदोलनकारियों के लिए कानूनी सलाहकार और मेंटर रहे। उनकी सामाजिक चेतना और निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर वे हमेशा मुखर रहे, जैसे कि भोपाल एनकाउंटर (2016) और विकास दुबे एनकाउंटर (2020) जैसे मामलों में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से जांच की मांग की थी। गरीब के कारण डॉक्टर नहीं बन पाए : आनंद मोहन माथुर शुरुआत से कानून नहीं बल्कि मेडिकल की पढ़ाई करना चाहते थे। उनका परिवार गरीब था। स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते पिता की नौकरी भी चली गई थी। इसके बाद पैसों की तंगी हुई और आनंद मोहन माथुर का डॉक्टर बनने का सपना अधूरा रह गया।
पढ़ाई पूरी करने के लिए मजदूरी की : आनंद मोहन माथुर सामान्य व्यक्तित्व के व्यक्ति नहीं थे। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी लेकिन उनके हौसले बुलंद थे। उन्होंने अपने संघर्ष के शुरुआती दिनों में इंदौर की मालवा मिल में बदली मजदूर के रूप में काम किया। इसके बाद मेहनत करके उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान उन्होंने कॉलेज में शिक्षक के रूप में भी सेवाएं दीं।
बेटी को बनाया डॉक्टर : खुद डॉक्टर नहीं बन सके इसलिए अपनी बेटी को उन्होंने डॉक्टर बनाने का निर्णय लिया। मेहनत और लगन से उन्होंने अपनी बेटी को मेडिकल की पढाई करवाई। इस समय आनंद मोहन माथुर की बेटी डॉक्टर के रूप में अपनी सेवाएं दे रहीं हैं।
भोपाल गैस कांड का केस भी लड़ा : आनंद मोहन माथुर की कहानी का एक अहम हिस्सा भोपाल गैस कांड से जुड़ा है। जिस दिन उनकी बेटी की शादी थी उसी दिन भोपाल में गैस कांड हुआ। बेटी को विदा कर वे तुरंत भोपाल के लिए रवाना हो गए। उन्होंने भोपाल गैस कांड मामले से जुड़ी याचिका कोर्ट में दायर की। उनके द्वारा डाउ केमिकल फैक्ट्री से पीड़ितों के लिए मुआवजे की मांग को भी प्रमुखता से उठाया गया।
समाजसेवा से जुड़े काम : आनंद मोहन माथुर जितने बड़े कानूनविद थे उतने ही बड़े समाजसेवी थे। अधिवक्ता के नाते मिली फीस का बड़ा हिस्सा वे दान कर देते थे। उन्होंने अपनी जमीन भी समाजसेवा से जुड़े कामों में दी। अपने खर्च पर कान्हा नदी पर ब्रिज बनवाया और आनंद मोहन माथुर सभागृह का निर्माण भी किया।
इंदौर की झोली में आईं अनूठी सौगातों का नाम है…आनंद मोहन माथुर
दिल में जब मदद का जज्बा हो तो उम्र मायने नहीं रखती। यह बात वरिष्ठ एडवोकेट और वर्षों तक महाधिवक्ता के रूप में सेवा दे चुके आनंद मोहन माथुर पर अक्षरश: सही साबित होती है। कद्दावर व्यक्तित्व के धनी माथुर साहब इंदौर को आनंद मोहन माथुर झूला पुल, आनंद मोहन माथुर सभागृह और कुंती माथुर सभागृह जैसी सौगातें दे चुके हैं। सहायता व सेवा का सिलसिला 94 वर्ष की उम्र में अब भी जारी है। इस उम्र में भी वे शहरवासियों की परेशानियों को लेकर विचलित हो जाते हैं और समस्या के हल के लिए सड़क पर उतरने को तैयार रहते हैं। इंदौर के इस शिल्पी का परिवार 1940 के दशक में शाजापुर से इंदौर आया और फिर यहीं का होकर रह गया।
इंदौर को करोड़ों रुपये की सौगातें देने वाले इस शिल्पी ने कभी मिल में मजदूरी की, तो कभी महाविद्यालय में शिक्षक की भूमिका भी निभाई। किसी दौर में इंदौर की भिंडी खाऊ जैसी मजदूर बस्ती में रहने वाले इस शिल्पी का बचपन अभावों में बीता। किंतु मुश्किलों को दरकिनार करता हुआ यह व्यक्तित्व मध्य प्रदेश का महाधिवक्ता भी बना और वर्षों तक आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए शासन से लड़ता भी रहा। माथुर साहब ने 1943 में हाई स्कूल पास किया, तो पिता ने इच्छा जताई कि बेटा डाक्टर बने और समाजसेवा करे। मेडिकल कालेज में एडमिशन भी करवा दिया, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते केपिटेशन शुल्क के रूप में एक हजार रुपये जमा नहीं किए जा सके इसलिए आनंद मोहन माथुर मेडिकल की पढाई नहीं कर सके। बाद में कुछ समय तक उन्होंने इंदौर की मालवा मिल में मजदूरी की।
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