अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

नई सदी के लोकगीत हैं ये आजाद गीत

Share

दुष्‍यंत
भारत में गीतों की दुनिया बदल रही है। यूं दुनिया के हर कोने में लोकगीत होते हैं, पर भारत विलक्षण रूप से लोकगीतों का देश है। हमारी परंपरा में गीत महाकाव्यों के रूप में भी रहे हैं। इतिहास भी गीतों में लिखा गया, धर्म भी, नीतिशास्त्र भी, दर्शन भी। सिद्ध और प्रसिद्ध है कि कुछ भी अगर गीत में कह दिया जाए तो जनमानस तक आसानी से, तुरंत पहुंच जाता है। पिछली सदी में हिंदी पट्टी में गीतों की मुख्‍यधारा हमारे सिनेमा के गीतों की धारा रही है। संभव है कि इस सदी में यह सच बदल जाए, ऑल्‍टरनेटिव ही मेनस्‍ट्रीम हो जाए। साल भर से, लॉकडाउन में सिनेमा थिएटर तक नहीं आया। कुछ फिल्में ओटीटी पर आईं, उनके गीतों का वह पब्लिक मोमेंटम नहीं बना, जो हिंदी सिनेमा के गीतों का बनता है।

गीत की सिनेमा से इतर सत्ता पश्चिम में रही है। हमारे यहां क्योंकि महाकाव्यों में कहानी कहने की परंपरा रही, उसी से सिनेमा में गीत अनिवार्य हिस्सा बनकर रहे हैं। जब भारतीय और खासकर हिंदी सिनेमा में महाकाव्यात्मक कहानी कहने की परंपरा पश्चिमी कहानी कहने की परंपरा से पिछड़ रही है, तो गीतों का स्वरूप बदला है। गीत अब बैकग्राउंड में बजते हैं, लिप्सिंग नहीं होती।

कोरोना काल में लोगों के जीवन में संगीत की अहमियत और जरूरत फिर से स्‍थापित हुई। जितनी तसल्‍ली उनके मन को पुराने गानों से मिली होगी, उतनी ही भूख नए गानों की भी जागी होगी। तो आजाद गानों के लिए बड़ा अवसर बन गया। याद कीजिए सागर-मनोज वाजपेयी का ‘मुंबई में का बा’, नवाजुद्दीन सिद्दीकी का डेब्‍यू सिंगल ‘बारिश की जाए’ और गुलजार-विशाल भारद्वाज का ‘धूप आने दो’ इस समय के मशहूर सिंगल हैं, जो बॉलिवुड की तरफ से आए हैं। यहां गजेंद्र वर्मा का ‘इसमें तेरा घाटा’ को भी याद कर सकता हूं, जिसने हिंदी आजाद गीतों की परंपरा को नए सिरे से परिभाषित किया है।

हिंदी सिनेमा की मुख्य धारा ने हाल के सालों में गीतों के कथ्य की विविधता को सीमित कर दिया। हालांकि शुरू से ही यह बहुत विविध नहीं रहा, पर जितनी भी विविधता थी, वह संकुचित हो गई। प्रेम के दो तीन शेड जैसे प्रेम की तलाश, प्यार मिलने की खुशी या ग्रेटिट्यूड, प्रेमपात्र से तात्कालिक दूरी, तड़प और विरह, आइटम नंबर और कभी कभार कोई जीवन दर्शन का गीत- कुल मिलाकर आज का अधिकांश हिंदी सिनेमाई गीत-संगीत इसी तक सिमटा हुआ है। जीवन की कितनी ही दशाएं अब गीतों में नहीं ढलतीं। इसकी एक वजह तो यह है कि ऐसे गीत बनते हैं, जो किसी भी फिल्म में लग जाएं। हिंदी सिनेमा के गीतों से छूटता जीवन का बहुरंगीपन आजाद गीतों यानी गैर फिल्मी गीतों के लिए उर्वर जमीन बन रहा है। और इसीलिए मेरी विनम्र स्‍थापना यह है कि ये नए आजाद गीत ही नई सदी के लोकगीत हैं।

पिछले कुछ दशकों में हिंदी आजाद गीतों की परंपरा अलीशा चिनॉय, अताउल्ला खान, अल्ताफ राजा, लकी अली, शेफाली जरीवाला से होते हुए बादशाह, बी प्रैक तक आई है। यह हमारे समय का संयोग मात्र नहीं है कि जयपुर के पारस कुहाड़ वाया अमेरिका मुंबई पहुंचते हैं, तो अंग्रेजी आजाद गीतों की दुनिया में अपनी पहचान वैश्विक कर चुके होते हैं।

हिंदी से अलग उत्तर भारत की उन भाषाओं में जिनका सिनेमा बहुत व्यावसायिक, सक्रिय या समृद्ध नहीं है, आजाद गीतों की धमक बड़ी तेज है, जैसे- राजस्थानी और हरियाणवी। इस मामले में पंजाबी संगीत अपवाद है कि इस भाषा का सिनेमा भी सक्रिय और व्यावसायिक है और आजाद संगीत भी। यही कारण है कि वहां आजाद संगीत से लोकप्रिय होकर गायक बाद में फिल्म के नायक हो जाते हैं, जिसका हालिया उदाहरण सतिंदर सरताज का दिया जा सकता है, पर उन्हें आजाद संगीत से इतना प्रेम है कि सिनेमा के साथ उसे भी अपने जीवन में बनाए हुए हैं।

कहना यह भी चाहिए कि किसान आंदोलन की धमक आजाद गीतों में जितनी पंजाबी में सुनी गई है, हिंदी या उत्तर भारत की अन्‍य भाषाओं में नहीं दिखती। अगला पंजाबी आजाद गायक सेंसेशन ‘काका’ लगते हैं, जिन्होंने ब्लैक लाइव्ज मैटर के विश्वव्यापी आंदोलन के बीच अपनी श्याम छवि को सेलिब्रेट करते हुए गीत रचा है, जो पंजाबी संगीत उद्योग के इतिहास में इतनी तेजी से हिट होने वाले चुनिंदा गीतों में होगा। वहीं, हरियाणवी गीतों में जैसे विकास कुमार के ‘हट जा ताऊ पाछै’ ने राजस्थान, पंजाब, हिमाचल तक में धूम मचाई थी, रेणुका पंवार का ‘बावन गज का दामण’ और सपना चौधरी के ‘गजबण पाणी नै चाली’ गीत नई उड़ानों से ऊंचा आसमान नाप रहे हैं, राजस्‍थानी आजाद गीतों में धनराज दाधीच- राजा हसन का ‘बना जद चालै’ नया प्रस्‍थान बिंदु है।

यह जरूर है कि हिंदी पट्टी के आजाद गीतों की क्रीड़ास्‍थली, जन्‍मस्‍थली अभी भी मुंबई ही है। फिलवक्‍त इसकी तार्किक, वाजिब वजह इसका मनोरंजन जगत की राजधानी होना है, संगीत के स्‍थापित और नए लोगों की कर्मस्‍थली होना है, बेहतरीन उपलब्‍ध तकनीकी सुविधाओं का होना है। आने वाले समय में इसका विकेंद्रीकरण होगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

तो हिंदी पट्टी में आजाद गीतों की नई फसल लहलहा रही है। यूट्यूब के अलावा दर्जन भर संगीत के प्लैटफॉर्म इस फसल से लदे-फदे हैं। इस भौगौलिक परिक्षेत्र के अंग्रेजीदां नई पीढ़ी के जहन और दिल के लिए यह नया आजाद संगीत वह खुराक दे रहा है, जो न सिनेमा का संगीत दे पा रहा है और न पश्चिम का संगीत। तकनीक के नए अवसरों से आजाद गीतों का दायरा और पहुंच उस हद तक जाते दिख रहे हैं, जहां तक कि कल्पना भी उनके पीछे के कलाकारों ने नहीं की होगी। हम यह उम्‍मीद कर सकते हैं कि आने वाले समय में कई रॉकस्टार हमें आजाद गीतों की इस नई फसल से मिलेंगे, संभव है कि उनमें से कुछ हिंदी सिनेमा के गायकों, संगीतकारों, गीतकारों से ज्‍यादा लो‍कप्रिय हों।

(लेखक बॉलिवुड के चर्चित गीतकार और स्क्रिप्‍ट राइटर हैं)

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें