अग्नि आलोक
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 हिंदुस्तानियत के हत्यारे हैं, इन्हें सलाम कैसे करूं?

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मुनेश त्यागी

कातिलों को वतन का रहबर कैसे कहूं
खून से सने हाथों को, सलाम कैसे करूं?

इन्होंने लूटी हैं अस्मत उजाड़े हैं सुहाग
ये रहजन हैं खुनी हैं, इन्हें सलाम कैसे करूं?

उजाड़ दी हैं फसलें जला डाले हैं खेत
फूंक दिए हैं घरबार, इन्हें सलाम कैसे करूं?

अपनों को ही बना दिया है दंगई और कातिल
साझी संस्कृति के दुश्मन हैं, इन्हें सलाम कैसे करूं?

विकास भ्रष्टाचार महंगाई मात्र नारे ठहरे
ये कुर्सी के भूखे हैं, इन्हें सलाम कैसे करू?

जल जंगल हवा सब कुछ सौंप रहे धनवानों को
ये पूंजी के प्यादे हैं, इन्हें सलाम कैसे करूं?

कभी कश्मीर में, कभी गुजरात में, फिर दिल्ली में
ये इंसानियत के हत्यारे हैं, इन्हें सलाम कैसे करूं?

वंदे मातरम अल्लाह हो अकबर तो बहाने हैं
ये तख्तोताज के पुजारी हैं, इन्हें सलाम कैसे करूं?

एक मंदिर डहाता है, दूसरा मस्जिद गिराता है
ये रामओरहीम के भी कातिल हैं इन्हें सलाम कैसे करूं?

एक हिंदू के खून का प्यासा है दूसरा मुसलमान के
ये हिंदुस्तान के हत्यारे हैं, इन्हें सलाम कैसे करूं?

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