और इस तरह
धीरे धीरे उन्होंने
धकेल दिया मुझे हाशिये पर
फुटपाथ की ज़िंदगी पर
छपे रिसालों में छपी हुई मेरी कविताएं
चकले पर रात बीताने वालों को पसंद नहीं आई
ये और बात है कि आमदनी घटने के बाद
ज़्यादातर लोगों ने यहां
अपने घरों को ही मुफ़्त का चकला समझ लिया
जहां आदमी का शरीर बस एक
कशकोल है
कशकोल में यदा कदा टपकते
सिक्कों की उठती खनक है
और राजा के प्रति कृतज्ञता दिखाती बत्तीसी
कशकोल कभी पुराना नहीं पड़ता
कबाड़ी हर जगह हैं
छेदयुक्त कशकोलों के अंबार को
श्मशान की भट्ठी में पिघला कर
रोप देता है जवान कोखों में
और इंतज़ार करता है तीन चौथाई साल
नए कशकोलों के पैदा होने का
हाशिये पर धकेले जाने के पहले
मैं इन कशकोलों में उंडेलना चाहता था प्रेम
जैसे बसंत भर देता है मधुछत्ते
हाशिये पर धकेले जाने के पहले
मैं एक भूख को जन्म लेते देख कर
दौड़ पड़ता था अनाज भरे खेतों की तरफ़
कशकोलों को भरने के लिए
उन चीज़ों से जिनका जन्म सिक्कों से नहीं
मिट्टी से हुई है
धीरे-धीरे लोगों को
पसंद आने लगे टकसाल
और टकसाल के जने
ज़मीन जब तक राजा की थी
मुझे अच्छा लगता था
उनमें उगे फसल को काटकर
ख़ाली कशकोलों को भरना
ज़मीन अब प्रजा की है
जहां अब वे गेंहूं नहीं टकसाल बोते हैं
घटवार
आज भी ले जा रहा है
गलाने के लिए
पुराने टकसाल में पुराने कशकोल
अद्वैत से द्वैत की इस यात्रा में
छिन गया है मेरा फुटपाथ
और खोती जा रही है मेरी आवाज़
आदमी अब कशकोल है
टकसाल है
हवन कुंड है
रति क्रिया के बाद
निर्वीय होने का चरम प्रमाद है
ऐसे में मेरा हाशिये पर बने रहना बनता है
हिसाब की उत्तर पुस्तिका के हाशिये पर उभरा
एक रफ़ वर्क की तरह
कभी परीक्षक की नज़र से गुज़र गया तो
परीक्षार्थी को शायद एकाध नंबर और मिल जाए
बेचारे ने कैलकुलेशन तो सही किया था
यद्यपि उत्तर ग़लत लिखा हाशिये के दाहिने तरफ़
बच्चों को इम्तिहान में
ख़ाली कशकोल पाने से बचाने का
बस यही एक आख़िरी रास्ता
बचा है मेरे पास.
- सुब्रतो चटर्जी