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वे मरी गाय की खाल उतार रहे थे, बदले में उनकी खाल खींच ली

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राकेश कायस्थ

गाय मरी हुई थी, लेकिन इंसान जिंदा थे। वे मरी गाय की खाल उतार रहे थे, बदले में आपने उनकी खाल खींच ली।

आपका कदम पूरी तरह नैतिक था। गाय आपकी माता ठहरी, अपना परलोक सुधारने से लेकर दूसरो को परलोक भेजने तक आप जैसे चाहें उनके नाम का इस्तेमाल करें, आपका जन्मसिद्ध अधिकार है।

लेकिन हाय रे दुर्भाग्य! खाल आपने मुसलमानों की खींची थी,लेकिन वे बाद में ना जाने कैसे वे दलित हो गये। शायद वैसे ही जैसे फ्रिज में रखा बीफ कभी-कभी मटन हो जाता है।

सारा टंठा उनके मुसलमान ना होने की वजह से हुआ है। सबको पता है कि गाय अगर मरी हुई हो तब भी मुसलमानों से उसकी रक्षा करना धर्म है।

पेड़ पर टांगो या घर में घुसकर मारो मामला कुछ समय बाद रफा-दफा हो ही जाता है। लेकिन दलित! राम-राम ये कैसा प्रश्न है? दलित तो वे आध्यात्मिक पुरुष हैं, जो सदियों से अपनी स्वेच्छा से कचरा उठाते हैं और सिर पर मैला ढोते हैं।

मोदी जी ने अपनी किताब कर्मयोग में लिखा है कि कोई भी इस तरह के काम मजबूरी में नहीं कर सकता, दलित ये सब अपने आध्यात्मिक सुख के लिए करते हैं।

आपलोगो को उम्मीद है कि राम मंदिर की शिलाएं भी दलित खुशी-खुशी उठाएंगे। आपके हिंदू भारत का सपना इन्ही दलित, आदिवासियों और पिछड़ों पर टिका है। इन्हे निकाल दो तो हिंदू के नाम पर जो आबादी बचेगी वह माइनॉरिटी कहलाने लायक ही होगी।

आप जिस राजनीतिक हिंदू की कल्पना करते हैं, वह मुख से तो ब्राहण होगा, लेकिन पैरो से शूद्र होगा। मुख ही मुख्य है, लेकिन बिना पैरो के कोई खड़ा हो पाया है भला?  

इसलिए दलित और पिछड़े ज़रूरी हैं, कलियुग की मजबूरी हैं।

ताज्जुब नहीं अगर गुजरात में मरी गाय की खाल उतारते दलितों की निर्मम पिटाई हुई तो बीजेपी सरकार का दिल भर आया।

आनन-फानन कई आरोपी गिरफ्तार हुए। विश्व हिंदू परिषद तक ने कड़े शब्दों में निंदा की।

हमले का शिकार बने दलितों को लेकर हमदर्दी का जो सैलाब उमड़ा है, उसे देखते हुए अजरज नहीं होगा अगर उनके सामने खाल उतारने में मदद की पेशकश भी आने लगे।

कारसेवक बहुत दिन से खाली बैठे हैं, थोड़ी खालसेवा भी कर लें तो क्या बुरा है। आखिर महान आध्यात्मिक अनुभव पर दलितों का ही रिजर्वेशन क्यों रहे, सबको थोड़ा-थोड़ा मिले। दलितों ने इस खालसेवा पर अपना रिजर्वेशन छोड़ने का इरादा जता दिया है।

गुजरात में मरे हुए जानवर बड़े-बड़े अधिकारियों के दफ्तर पहुंचाये जा जा रहे हैं। कई जगहों से इस तरह की ख़बरें आ रही हैं। अब क्या करेंगे आप?

राजनीति हिंदू बचाना है तो इस महान आध्यात्मिक काम में दलितों का हाथ बंटाइये या फिर उन्हे हर्जाने का लॉलीपॉप थमाकर फुसलाइये।

लेकिन बहुत बड़ी आबादी है, इतनी आसानी से मानेगी नही।

कबीरदास ने कई सदी पहले कहा था—निर्बल को ना सताइये जाकी मोटी हाय/ मरे खाल की स्वास से लोहा भस्म हो जाये।

मरे खाल से उठती स्वास डरा रही है। आसार अच्छे नहीं हैं, उपर से अब ये लोग निर्बल भी नहीं रहे। हाय नहीं देते बल्कि हाय-हाय करने पर मजबूर कर देते हैं। 

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