
वे
जो दिल्ली गए थे
पिछले बरस
अपना अस्तित्व झोले में डालकर
वे लौट रहे हैं इस बरस
लौटकर वे
पत्नी को सौंप देंगे
अस्तित्व का झोला
कि लो नसीबो
बचा लाएं हैं अपना वजूद
वे
जो दिल्ली गए थे
पिछले बरस
झोले में भर अपनी हताशा
वापिस लौटकर
पिता के कदमो में रख देंगे झोला
कि लो बापू
उम्मीद से भर लाये हैं झोला
वे
जो दिल्ली गए थे
पिछले बरस
नारों के बीच खौफ लिए
कि लोकतंत्र में लोक सुनवाई का दौर चला गया है
वे लौटकर बताएंगे अपने बच्चों को
कि लौट गए दौर भी लाये जा सकते हैं वापिस
वे
जो दिल्ली गए थे पिछले बरस
लौट रहे हैं वापिस घर
अपना देश पाकर
अपनी जगह पाकर
वे अब
बेहतर समझ रहे हैं
कि उनका मुल्क उनका भी है
आवाज उनकी बेमानी नहीं जा सकती
बशर्ते कि
आवाज सुने जाने तक गुंजाये रखा जाए आसमान
वे लौट रहे हैं
गाते बजाते
गूंजते महकते
किसी शबद की तरह
किसी आयत की तरह
किसी श्लोक की तरह
आओ
हम सब उनका
इस्तकबाल करें
रचयिता - अज्ञात
प्रस्तुकर्ता - श्रीपाल भाटी , सक्रिय किसान आंदोलनकारी ,गाजीपुर बॉर्डर
संकलन - निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र,संपर्क-9910629632