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अडानी समूह का इस तरह से हुआ विदेशों में व्यवसायिक विस्तार

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विस्तार पीएम मोदी की राजनयिक यात्रा के बिल्कुल पीछे चलते हुए हासिल किया गया

केनियाई हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह अडानी की उस प्रस्तावित डील को सस्पेंड कर दिया था जिसमें नैरोबी हवाई अड्डे को 30 सालों तक चलाने के लिए अडानी समूह को उसका अधिकार दिया गया था। भारत के बाहर यह पहला एयरपोर्ट वेंचर था। कोर्ट का आदेश समूह के वैश्विक फ्रंट पर कदम रखने की योजना के लिहाज से एक बड़ा झटका साबित हुआ।

ध्यान देने वाली बात यह है कि यह विस्तार पीएम मोदी की राजनयिक यात्रा के बिल्कुल पीछे चलते हुए हासिल किया गया। भारत के बाहर ज्यादातर अडानी के प्रोजेक्ट वह पड़ोसी देशों में हो या कि दूर की जगहों पर, मोदी के उस देश के दौरे या फिर उसके राष्ट्राध्यक्ष से मुलाकात के कुछ महीनों के भीतर घोषित किए गए हैं। विश्लेषण करने पर यह बात बिल्कुल स्पष्ट तौर पर सामने आती है।

उदाहरण के लिए केनियाई राष्ट्रपति ने दिसंबर, 2023 में दिल्ली की यात्रा की। तीन महीने बाद मार्च में अडानी समूह ने नैरोबी एयरपोर्ट को अपग्रेड करने और उसे विस्तारित करने का प्रस्ताव पेश किया। जून में केनियाई सरकार ने नेशनल एविएशन पॉलिसी को बदला और फिर इसके साथ ही एक एयरपोर्ट निवेश योजना को हरी झंडी दे दी।

ह्विसिलब्लोअर द्वारा इन दस्तावेजों को प्रकाश में लाए जाने के बाद केनियाई मानवाधिकार आयोग और बार एसोसिएशन ने यह तर्क देते हुए कि एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और मुनाफा देने वाले राष्ट्रीय एयरपोर्ट को एक निजी कंपनी को लीज पर देना बिल्कुल ही अतार्किक है और इसके साथ ही उन्होंने उसको कानूनी चुनौती दे दी। यह इसलिए और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यह सब बिल्कुल गुप्त रूप से किया गया। और उसके लिए किसी तरह की कोई नीलामी प्रक्रिया को भी नहीं अपनाया गया। हाईकोर्ट ने 9 सितंबर को प्रस्तावित डील को अस्थाई रूप से रोक दिया।

जैसा कि संसद में सवाल उठाया गया और सोशल मीडिया पर भी इसकी आलोचना की गयी। सरकार के एक सलाहकार ने कहा कि एयरपोर्ट के लिए अडानी को कोई कांट्रैक्ट नहीं दिया गया है। समूह को केनिया में हाईवोल्टेज पावर लाइन बनाने के लिए 1.3 बिलियन डॉलर की छूट दी गयी है।

केनिया में यह बवाल उस समय खड़ा हुआ जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने कहा कि वह अडानी के साथ हुए बिजली खरीद के समझौते पर फिर से विचार कर रही है। जिसके बारे में यह आमतौर पर कहा जा रहा था कि वह उद्योगपति के पक्ष में झुका हुआ है। यह डील भी मोदी की कूटनीतिक यात्रा का नतीजा थी।

जून, 2015 के अपने ढाका के पहले दौरे में पीएम मोदी ने कहा था कि बांग्लादेश के लिए उसकी बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए भारत एक प्रमुख साझेदार हो सकता है। दो महीने बाद झारखंड से बिजली निर्यात करने के लिए अडानी ने बांग्लादेश के साथ एक एमओयू दस्तावेज पर हस्ताक्षर किया। उसको लागू करने की प्रकिया दो साल बाद शुरू हुई और वह भी बांग्लादेश की तत्कालीन पीएम शेख हसीना के अप्रैल, 2017 में नई दिल्ली दौरे के दौरान।

सालों बांग्लादेश का विपक्ष यह आरोप लगाता रहा कि समझौता मोदी सरकार के दबाव में किया गया है। अब ढाका में सत्ता परिवर्तन के बाद डील के पलटे जाने का खतरा बढ़ गया है।

हालांकि अडानी समूह के एक प्रवक्ता ने कहा कि हमें इस बात के कोई संकेत नहीं मिले हैं कि बांग्लादेश की सरकार हमारे पीपीए पर फिर से विचार कर रही है। साझेदारी की भावना में हम बिजली की सप्लाई जारी रखेंगे जबकि बड़ी मात्रा में बांग्लादेश के ऊपर कंपनी का बकाया हो गया है।

अडानी के प्रवक्ता ने केनिया में होने वाली प्रगति पर कोई टिप्पणी नहीं की। या फिर विपक्ष के उस आरोप पर भी उसने चुप्पी साध ली जिसमें उसका कहना है कि देश के बाहर मोदी सरकार की कूटनीति अडानी के व्यवसायिक हितों को पूरा कर रही है।

2014 तक जब मोदी प्रधानमंत्री बने, अडानी के प्रोजेक्टों की संख्या भारत से बाहर सीमित थे और वह भी इंडोनेशिया और आस्ट्रेलिया में केवल कोल माइनिंग तक थे। अब उसके पास एशिया से लेकर अफ्रीका तक आधारभूत ढांचे का एक बड़ा क्षेत्र है।

दक्षिण एशिया में 

बांग्लादेश दक्षिण एशिया का अकेला देश नहीं है जहां अडानी प्रोजेक्ट को लेकर विवाद पैदा हुआ है।

श्रीलंका में इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड का एक अधिकारी संसदीय समिति के सामने कहा कि राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षा ने उसे नवंबर, 2021 में बताया था कि मोदी उन पर एक बड़े एनर्जी प्रोजेक्ट को अडानी समूह को देने का दबाव बना रहे हैं। यह ग्लासगोव में हुए क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस के दौरान राजपक्षा और मोदी की मुलाकात के बाद की बात है। खुलासा होने के बाद श्रीलंका में जमकर बवाल हुआ। उसके बाद अधिकारी अपने बयान से पीछे हट गया और उसने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

इसके पहले फरवरी, 2020 में प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षा ने दिल्ली में मोदी से मुलाकात कर उनके साथ महत्वपूर्ण आर्थिक मसलों पर बात की थी। महीने भर बाद मीडिया रिपोर्टों ने संकेत दिया कि भारत, श्रीलंका और जापान के बीच एक समझौते के हिस्से के तौर पर कोलंबो पोर्ट पर ईस्ट कंटेनर टर्मिनल के आपरेशन के लिए अडानी समूह सबसे विश्वसनीय है। यूनियनों और बुद्धिस्ट समूहों के विरोध के बाद श्रीलंका ने समझौते को रद्द कर दिया लेकिन अडानी समूह को एक और पोर्ट के टर्मिनल के संचालन का अधिकार मिल गया।

इस साल अडानी समूह नेपाल के अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट को हासिल करने के लिए नेपाल के अधिकारियों के साथ बातचीत कर रहा था। पोखारा और भैरहवा दो नये एयरपोर्टों का निर्माण चीन द्वारा लिए गए ऋण से हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि आर्थिक तौर पर यह अभी भी पहुंच के भीतर नहीं है क्योंकि जेट प्लेन के लिए भारत ने हाई एल्टीट्यूड एयर रूट्स को नहीं खोला है। नेपाल के प्रधानमंत्री ने जून, 2023 में मोदी के साथ बैठक में इस मुद्दे को उठाया था। देश के वित्त मंत्री के मुताबिक उसके बाद अडानी समूह के अधिकारियों ने नेपाली सिविल एविएशन के अधिकारियों से बातचीत के लिए काठमांडू का दौरा किया था।

तंजानिया से लेकर वियतनाम तक

यह केवल दक्षिण एशिया नहीं है जहां मोदी की कूटनीति अडानी के विस्तार से जुड़ी हुई है।

मार्च, 2017 में मोदी ने मलेशिया के प्रधानमंत्री नाजिब तुन रजक की दिल्ली में मेहमानवाजी की जहां दोनों ने इस बात पर विचार-विमर्श किया कि दोनों देशों के बीच व्यवसायिक संपर्क को कैसे मजबूत किया जाए। भारतीय कंपनियों की संभावनाओं को भी इसमें शामिल किया गया। एक महीने बाद अडानी समूह ने मलेशिया के आधारभूत ढांचे के मंच के साथ कैरी आइसलैंड में एक मेगा कंटेनर पोर्ट प्रोजेक्ट को विकसित करने के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किया।
जून, 2018 में मोदी ने सिंगापुर की यात्रा की जहां उन्होंने पीएम ली हीसेन लूंग से मुलाकात की। बाद में उसी महीने सिंगापुर की सरकारी इनवेस्टमेंट फर्म टेमासेक ने अडानी पोर्ट में 1000 करोड़ रुपये का निवेश किया।

मोदी ने अक्तूबर, 2023 में तंजानिया के राष्ट्रपति सामिहा सुलुहु की दिल्ली में अगवानी की। आठ महीने बाद मई, 2024 में अडानी समूह ने दार-ए-सलाम पर एक कंटेनर टर्मिनल को 30 सालों तक ऑपरेट करने के लिए छूट के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किया। इसके साथ ही कंपनी ने आबू धाबी के एडी पोर्ट समूह के साथ 95 फीसदी मालिकाना समेत टर्मिनल सेवा देने के लिए संयुक्त वेंचर में प्रवेश किया।

हाल ही में वियतनाम के प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह जुलाई-अगस्त, 2024 में दिल्ली की यात्रा पर आए। उसी दिन उन्होंने मोदी से मुलाकात की। वह अडानी से भी मिले और इस बात की घोषणा की कि अडानी समूह उनके देश के दो एयरपोर्टों में निवेश करने के बारे में सोच रहा है। और इसी के साथ ही एक समुद्री पोर्ट के निर्माण पर भी सहमति बन रही है।

पहले प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी की जुलाई, 2017 में इजराइल की यात्रा के साथ ही अडानी समूह ने इजराइल के साथ महत्वपूर्ण व्यवसायिक समझौते किये हैं। मोदी ने जनवरी, 2018 में इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का दिल्ली में स्वागत किया। उसी साल के दिसंबर में अडानी समूह ने इजराइली कंपनी एलबिट सिस्टम के साथ एक संयुक्त समझौते में गया और इसके साथ ही तेलंगाना में एरियल मिलिट्री ड्रोन के निर्माण की सुविधा का उद्घाटन हुआ। 2022 में अडानी समूह इजराइल में हायफा पोर्ट को हासिल कर लिया।

अडानी जी की विदेश नीति

अरबपति गौतम अडानी को प्रधानमंत्री पीएम मोदी के साथ अपने नजदीकी रिश्तों के लिए जाना जाता है। दोनों शख्स गुजरात से हैं। 2014 से जब से मोदी पीएम बने हैं अडानी समूह ने बेहद आक्रामक तरीके से अपने व्यवसाय को विस्तारित किया है। और इसके साथ ही अडानी समूह एयरपोर्ट्स, सीपोर्ट्स, कोल माइन्स, पावर स्टेशन और गैसे स्टेशन के क्षेत्र में भारत के सबसे बड़े घरानों में शामिल हो गया है।

इस पूरी तस्वीर ने क्रोनी कैपिटलिज्म के आरोपों को आमंत्रण दे दिया है और खासकर कांग्रेस पार्टी इस उद्योग समूह को इसी नजरिये से देखती है। फरवरी, 2023 में संसद के भीतर बोलते हुए कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने कहा कि यह भारत की विदेश नीति नहीं है। यह अडानी जी की विदेश नीति है।

तमाम दूसरे लोग भी भारत सरकार के इस रवैये की निंदा करते हैं जिसमें सरकार सभी उद्योगपतियों को बराबर की प्लेइंग फील्ड मुहैया कराने की जगह किसी एक उद्योगपति के पक्ष में खुल कर काम कर रही है।

(स्क्रोल से साभार लेकर अनुवाद किया गया है।)

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